Agra Lockdown Update Day 5:: कोरोना काल की एक और समस्या, अब ये परिवर्तन बना जानवरों के खूंखार होने का कारण
लॉकडाउन में भोजन न मिलने से हो रहे आक्रोशित। ज्यादा दिन भूखे रहने पर सड़क चलते करेंगे हमला।
आगरा, जेएनएन। लॉकडाउन का असर केवल मनुष्यों पर ही नहीं पड़ा। बेसहारा कुत्ते और बंदर भी इस लॉकडाउन की जद में आ गए हैं। सड़कों पर पसरे सन्नाटे में उन्हें खाने को नहीं मिल रही है। भूख के कारण उनमें साइकोलॉजिकल वाइल्ड चेंज आ रहा है। भूख उन्हें खूंखार बना रही है। ज्यादा दिन यही स्थिति रही, तो ये भूख मिटाने के लिए सड़क चलते लोगों पर भी हमला कर सकते हैं।
लॉकडाउन के कारण सड़कों पर लोगों की आवाजाही नहीं हो पा रही है। ऐसे में सबसे बड़ी दिक्कत उन बेसहारा कुत्तों और बंदरों के सामने आ गई है, जो दूसरों द्वारा दिए गए भोजन पर ही निर्भर थे। इन्हें भोजन नहीं मिल पा रहा है। भोजन की तलाश में उन्हें भटकना पड़ रहा है। धीरे-धीरे उनके अंदर साइकोलॉजिकल वाइल्ड चेंज आ रहा है। मथुरा की वेटेरिनरी यूनिवर्सिटी के कोठारी पशु अस्पताल के आचार्य डॉ. रामसागर कहते हैं कि ये परिवर्तन खासकर कुत्तों और बंदरों को हमलावर तथा खूंखार बना देगा। भूखे होने के कारण वह चिड़चिड़े हो जाते हैं। लॉकडाउन के जैसे-जैसे बढ़ेंगे, वैसे-वैसे उनके स्वभाव में परिवर्तन दिखेगा। वह कहते हैं कि सड़क पर घूमने कुत्ते भूख के कारण दो-तीन दिन से सड़क चलते लोगों पर हमला कर रहे हैं। किसी भी व्यक्ति के हाथ में कोई सामग्री देखते हैं, तो उसे छीनने की कोशिश कर रहे हैं, जिस तरह से मनुष्य अधिक भूख लगने पर सामान तक छीनकर खा लेते हैं, यही प्रवृत्ति कुत्तों और बंदरों में भी होती है। अधिक बेचैन होने पर ये अन्य छोटे जानवरों पर भी हमला कर उन्हें खा सकते हैं।
इनका भी रखें ध्यान
डॉ. रामसागर कहते हैं कि लॉकडाउन में हम घरों पर कैद हैं लेकिन हमें ये भी ध्यान रखना है कि कुत्ते और बंदरों का भी प्रकृति का संतुलन बनाने में अहम योगदान है। इसलिए इन्हें हिंसक बनाने से रोकने के लिए भोजन का इंतजाम जरूर करें। वह कहते हैं कि जो बंदर और कुत्ते जंगलों में रहते हैं वह फल आदि खा लेते हैं, इसलिए वह ङ्क्षहसक नहीं होते हैं, लेकिन शहर में रहने वालों के सामने ये समस्या है।
पक्षियों को मिला बेहतर वातावरण
डॉ. रामसागर कहते हैं कि प्रदूषण कम होने के कारण पक्षियों को बेहतर वातावरण मिल गया है। वह पेड़ों पर लगे फल खाकर अपनी भूख मिटा रहे हैं, वहीं प्रदूषण कम होने के कारण खुली हवा में सांस ले रहे हैं।