तंत्र के गण: बेटी पढ़ाने के लिए 40 वर्ष लच्छन कौर ने जलाई अलख Agra News
जूनियर को बालिका इंटर कॉलेज बनाने तक जूझती रहीं कौर। बरसाना में बालिका शिक्षा की गौरव गाथा गा रहा ब्रजेश्वरी विद्यालय।
आगरा, जेएनएन। बेटा- बेटी एक समान का नारा तो चंद वर्षो पहले ही लगाया गया, बरसाना की लच्छन कौर ने तो बेटों की तरह बालिका शिक्षा के लिए करीब 40 साल पहले ही अलख जगा दी थी। स्कूल में पढ़ाने के साथ ही घर-घर जाकर अभिभावकों को बालिका शिक्षा के प्रति जागरूक करती रहीं। उनकी लगन का ही नतीजा है कि जूनियर हाईस्कूल अब इंटर कॉलेज के मुकाम तक पहुंच गया।
हम बात कर रहे हैं 72 वसंत देख चुकीं बरसाना निवासी लच्छन कौर की। वर्ष 1970 में बरसाना में ब्रजेश्वरी जूनियर हाईस्कूल में प्रधानाध्यापक बनी थीं। चार कमरों का ये स्कूल वित्तविहीन था। बालिका शिक्षा को लेकर भी लोग उत्साहित नहीं थे। स्कूल से फुरसत मिलने के बाद लच्छन कौर गांव में घर-घर जातीं और बेटियों को भी पढ़ाने के लिए अभिभावकों को समझातीं। मेहनत रंग लाई, अभिभावक तैयार हो गए और छात्रओं की संख्या बढ़ने लगी।
अब दिक्कत बेटियों को यहां हाईस्कूल तक पढ़ाई की थी। 1986 में राधारानी के दर्शन करने आए तत्कालीन शिक्षामंत्री संकटा प्रसाद शास्त्री से लच्छन कौर ने मुलाकात की। उनकी पहल पर शिक्षामंत्री ने इस स्कूल को वित्त पोषित करने के साथ ही हाईस्कूल की मान्यता की भी घोषणा की। सिस्टम की इस प्रक्रिया में ढाई साल तक लच्छन कौर समेत पूरे स्टाफ को वेतन नहीं मिल सका। आर्थिक संकट से जूझते हुए लच्छन कौर अपने मिशन में जुटी रहीं। आखिर हाईस्कूल की कक्षाएं संचालित होने लगीं। छात्राओं की संख्या भी 15 सौ पार होने लगी। बस, यहीं से उम्मीदें और हौसला और बढ़ गया। अब लक्ष्य बालिका इंटर कॉलेज था। हाईस्कूल के बाद बेटियां पढ़ाई छोड़ देती थीं। लच्छन कौर ने इंटर कॉलेज के लिए लखनऊ से लेकर जनप्रतिनिधियों के चक्कर काटे। 1997 में इंटरमीडिएट की मान्यता भी मिल गई। 2006 में इस स्कूल में कंप्यूटर शिक्षा भी शुरू करा दी। ब्रजेश्वरी इंटर कॉलेज से वर्ष 2009 में प्रधानाचार्य पद से रिटायर्ड लच्छन कौर बताती हैं कि कंप्यूटर आने के बाद बेटियों का रुझान पढ़ाई के प्रति और बढ़ा। बेटियों की शिक्षा के प्रति उनकी लगन का नतीजा था कि लोग उन्हें बहन जी के नाम से ही जानते हैं।
अब घर पर लगातीं कक्षा
सेवानिवृत्ति के बाद लच्छन कौर घर पर ही बेटियों की कक्षाएं लगाती रहीं। वह कहती हैं कि मेरी पढ़ाई बेटियों में कोई शिक्षक है तो कोई बीटेक तक पढ़ी है। आखिर बेटों के मुकाबले बेटियों को पढ़ाने में भेद कैसा।