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मथुरा लोकसभा क्षेत्र: ड्रीम गर्ल के सामने मतदाताओं के ड्रीम पूरे करने की चुनौती

मथुरा- गोवर्धन डीग बरसाना मार्ग आज तक ज्यों का त्यों पड़ा है। अखिलेश सरकार में शुरू हुई योजना भाजपा ने बिसरा दी है। इसको एक बार फिर गति देने की जरूरत है।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Mon, 27 May 2019 02:54 PM (IST)Updated: Mon, 27 May 2019 02:54 PM (IST)
मथुरा लोकसभा क्षेत्र: ड्रीम गर्ल के सामने मतदाताओं के ड्रीम पूरे करने की चुनौती
मथुरा लोकसभा क्षेत्र: ड्रीम गर्ल के सामने मतदाताओं के ड्रीम पूरे करने की चुनौती

आगरा, जेएनएन। एक बार फिर मथुरा की जनता ने कृष्ण से सखा भाव रखने वालीं सिने स्टार हेमा मालिनी पर भरोसा जताया है। अगले पांच साल में ड्रीम गर्ल के सामने मतदाताओं के कई ड्रीम पूरा करने की चुनौती होगी।

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मथुरा- गोवर्धन, डीग, बरसाना मार्ग आज तक ज्यों का त्यों पड़ा है। अखिलेश सरकार में शुरू हुई योजना भाजपा ने बिसरा दी, यह जाने बिना उसमें जनहित कितना है। इसको एक बार फिर गति देने की जरूरत है। युवाओं ने हेमा मालिनी को अधिक वोट डाले हैं। युवा चाहते हैं कि सेल्फी के लिए उनके साथ मौका तो मिले ही साथ ही जिले का बेहतर ढंग से विकास भी हो।

युूवा मतदाताओं के विचार

पांच साल के बाद फिर से पांच साल तक उसी सरकार और उसी सांसद पर मथुरा की जनता ने भरोसा जताया है। लोगों की उम्मीदें पूरी होंगी।

- सुमित सैनी

युवाओं की ख्वाहिश होती है कि वह जिस प्रत्याशी को अपना सांसद चुनकर आए हैं, उसके साथ सेल्फी ले सकें, हेमा मालिनी से मिलना ही बड़ा कठिन, लेकिन काम होने चाहिए, जिससे विकास हो।

-युवराज सिंह

यह हैं 10 मुद्दे

1-यमुना को प्रदूषण से मुक्ति।

2-मथुरा को एनसीआर में शामिल कराया जाए।

3-बंदरों के उपद्रव से मथुरा-वृंदावन को मुक्त कराया जाए।

4-किसानो को बेसहारा पशुओं से कब तक मिलेगी राहत।

5-जिले को सरकारी विश्वविद्यालय की दरकार है।

6-पर्यटन पुलिस स्टेशन की जरूरत है।

7-प्राचीन मल्ल विद्या को वरीयता के इंतजाम।

8-टीटीजेड के कारण बड़े इंडस्ट्रीज की कमी।

9-ट्रोमा सेंटर और बर्निंग यूनिट की जरूरत।

10-अधिकांश इलाकों में मीठे पानी की कमी।

सांसद प्रतिनिधि में बदलाव संभव

-सांसद हेमा मालिनी के प्रतिनिधि को बदला जा सकता है। पार्टी चाहती है कि सांसद अपना प्रतिनिधि कैडर वेस कार्यकर्ता को बनाएं, जिससे कार्यकर्ता और पदाधिकारी भी अपनी समस्याओं के समाधान करा सकें। भाजपा में दो पूर्व जिलाध्यक्ष सहित एक पूर्व चेयरमैन के प्रतिनिधि बनने की चर्चा है, सभी ने चुनाव में मेहनत की, जो हेमा को रिजल्ट में बेहतर लगेगा, उसे वे यह तमगा पहनाएंगी। इधर, कांग्रेस विधानमंडल दल के नेता प्रदीप माथुर कहते हैं कि जनप्रतिनिधि का प्रतिनिधि कोई संवैधानिक पद नहीं है। सांसद और विधायक को संवैधानिक रूप से निजी सहायक रखने का प्रावधान है। इन्हें सांसद के रूप में प्रतिनिधित्व का अधिकार नहीं। शासन से विधायक के पीए के लिए छह हजार रुपये प्रतिमाह मानदेय विधायक के खाते में भेज दिया जाता है। यही प्रक्रिया सांसद में होगी, बशर्ते धनराशि बढ़ जाएगी।

सोशल इंजीनियरिंग में अव्वल रही भाजपा

मथुरा लोकसभा सीट पर जातिवाद का समीकरण फेल हो गया। भाजपा प्रत्याशी हेमा मालिनी ने रालोद के जाट और रालोद प्रत्याशी के सजातीय ठाकुर मतों में खूब सेंधमारी की। साथ ही बसपा के आधार वोट को भी नहीं बख्शा। एक अनुमान के अनुसार वह 50 हजार से ज्यादा एससी वोट पाने में सफल रहीं। 

रालोद के लिए यह दुर्भाग्य है कि पिछले लोस चुनाव में तीनों दल रालोद, सपा और बसपा को पड़े कुल मत भी नहीं पा सका। सोशल इंजीनियङ्क्षरग में भाजपा गठबंधन पर हावी रही।

इस चुनाव में रालोद प्रत्याशी कुंवर नरेंद्र सिंह को कुल तीन लाख 77 हजार 820 वोट मिले। 2014 के लोकसभा चुनाव में रालोद को दो लाख 43 हजार, बसपा को एक लाख 73 हजार और सपा को 33 हजार से ज्यादा वोट मिले थे। तीनों दलों को कुल मिलाकर चार लाख 49 हजार से ज्यादा वोट मिले थे। इस बार उन्हें पहले की तुलना में में 72 हजार से ज्यादा वोट कम मिले हैं।

रालोद नेताओं में चर्चा है कि यदि बसपा का उसे पूरा वोट मिला है तो सपा और ठाकुर मत कहां चला गया। लिहाजा माना जा रहा है कि भाजपा को बसपा वोट खूब मिला। इसके अलावा भाजपा ने उसने ठाकुर और जाट मतों में भी खूब सेंधमारी की। तभी हेमा मालिनी छह लाख 71 हजार से ज्यादा वोट हासिल करने में सफल रही हैं।

उनका कहना है कि ईवीएम में बसपा का चुनाव चिह्न हाथी न होने से भी अंतर पड़ा और उसकी अनुपस्थिति में बसपा के ग्रामीण वोटरों ने कमल के सामने का बटन दबाना ज्यादा उचित समझा। रालोद नेताओं का दावा है कि बसपा ने अपने वोटर को गठबंधन के प्रति जागरूक नहीं किया, इसका खामियाजा इस बुरी हार से भुगतना पड़ा है।

दूसरी तरफ बसपा नेताओं का मानना है कि बसपा का पूरा वोट ट्रांसफर हुआ, लेकिन रालोद अपने आधार जाट और ठाकुर मतों को एकजुट रखने में असफल हो गया।

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