उत्तर प्रदेश के आगरा में कदम कदम पर लिखी मौसम की तबाही कहानी
उत्तर प्रदेश में बुधवार को आए भीषण तूफान कू तबाही कई दिन तक आगरा की गलियों, अस्पतालों और सड़कों पर गूंजती रही।
आगरा (जेएनएन)। उत्तर प्रदेश में बुधवार को आया भीषण तूफान अपने पीछे तबाही के निशान छोड़ गया है। आगरा शहर में गलियां, अस्पताल और सड़क इसकी गवाह हैं। बारिश के साथ तूफानी हवा से खेरागढ़ के गोरऊ निवासी मजदूर पोखन सिंह काम पर गए थे। उनका परिवार ईंटों की दीवार पर पड़े टिन शेड के नीचे था। तूफान से बचने को उनकी पत्नी सूरजमुखी अपनी आठ साल की बेटी रोशनी और चार साल की जाह्नवी के साथ चारपाई के नीचे छिप गईं। मगर, तूफान की चपेट में आकर दीवार और टिन शेड गिर पड़े और तीनों नीचे दब गए। जब तक आसपास के लोगों ने उन्हें बाहर निकाला, तब तक उनकी बेटी जाह्नवी की मौत हो चुकी थी। जबकि रोशनी और सूरजमुखी घायल हो गईं। सूरजमुखी के हाथ में चोट है, लेकिन बेटी की मौत के गम में वे अस्पताल तक नहीं गईं। दुपट्टे से हाथ को बांधकर वे दोपहर तक पोस्टमार्टम हाउस के बाहर बैठी रहीं।
गुरुवार को नौ घंटे में तीन टीमों ने एक के बाद एक 44 शवों का पोस्टमार्टम किया। इसमें से 43 शव तूफान की तबाही से मरने वालों के ही थे। पोस्टमार्टम गृह में शव पहुंचना शुरू हुए, सुबह 10 बजे तक 42 शव पहुंच चुके थे। यहां पहले से पांच शव रखे हुए थे। पोस्टमार्टम गृह के दोनों कमरे भर जाने पर गैलरी में शव रखने पड़े। डॉक्टर, फार्मेसिस्ट और सफाई कर्मचारियों की तीन टीमें लगाई गईं। सुबह 10.30 बजे पोस्टमार्टम शुरू हुए। अंदर से आवाज आती, मृतक का नाम पुकारते, पुलिसकर्मी थाना क्षेत्र बताते। इसके बाद शव पहचानने के लिए परिजनों को अंदर बुलाया जाता। पोस्टमार्टम गृह के दो कमरों में रखे शवों में से अपने शव की तलाश करनी थी। किसी का चेहरा कुचला था तो कई का सिर फटा था।
कमरे के बीच में खड़े होकर नजर घुमाते रहे, एक बार में शव की पहचान नहीं हुई तो दोबारा देखा। इसके बाद दूसरे कमरे में गए। शव की पहचान होते ही परिजनों को बाहर जाने के लिए कह दिया जाता। चार कर्मचारियों ने एक साथ दो से तीन शव विछेदन किए। डॉ. सुधांशु यादव, डॉ. जितेंद्र लवानिया, डॉ. केपी सिंह फार्मेसिस्ट एसपी सिंह, योगेश त्यागी और अरुण ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट तैयार की। सीएमओ डॉ. मुकेश वत्स ने बताया कि शाम साढ़े सात बजे तक 44 पोस्टमार्टम किए गए। इसमें से 43 पोस्टमार्टम तूफान में मरने वालों के थे। अधिकांश केस में मौत का कारण ट्रॉमा, फेफड़े और हार्ट फटना और दम घुटना आया है।
महिलाएं बिलखती रहीं, हाथ में उठाकर बाहर लाए शव
पोस्टमार्टम गृह पर पुरुषों के साथ महिलाएं भी काफी संख्या में थीं। वे रोती बिलखती रहीं। अमूमन पोस्टमार्टम होने के बाद एंबुलेंस गेट तक पहुंच जाती है और शव उस में रख दिए जाते हैं। शव अधिक होने पर पोस्टमार्टम गृह से बाहर तक लोग अपने हाथों पर शव को लेकर आए और अपने वाहन या एंबुलेंस से शव लेकर गए।
मृतकों का तीन दिन में हो पाया था पोस्टमार्टम
इससे पहले 24 मई 2002 में जीवनी मंडी स्थित श्रीजी फैक्ट्री अग्निकांड के बाद पोस्टमार्टम गृह शवों से भर गया था। कर्मचारी बनवारी ने बताया कि उस समय इससे भी ज्यादा पोस्टमार्टम हुए थे, लेकिन समय अधिक लगा था। वरिष्ठ अधिवक्ता संजय शर्मा कप्तान ने बताया कि श्रीजी फैक्ट्री अग्निकांड में मृतकों की संख्या 55 रही थी। शवों के पोस्टमार्टम में तीन दिन का समय लगा था।
चंद मिनटों में जिंदगी को शिकस्त दे गई मौत
एक पीडि़त का कहना था कि बेटी को उन्होंने सीने से लगाकर बचाने की कोशिश की, लेकिन मौत उनसे उसे छीन ले गई। गोरऊ के ही 62 वर्षीय धनीराम छत पर चारपाई पर लेटे थे। तूफान आते देखकर वे नीचे उतरने को खड़े हुए। तभी तेज हवा के साथ वे छत से नीचे गिरे और पत्थर में सिर टकराने से उनकी मौत हो गई। तूफान आने के समय पर धौलपुर के कोलारी निवासी 55 वर्षीय गणपति और 25 वर्षीय रेवती ट्रैक्टर ट्रॉली से चीत से खेरागढ़ की ओर जा रहे थे। उन्होंने ट्रैक्टर रोका और जान बचाने को ट्रॉली के नीचे बैठ गए। मगर, तूफान में ट्रॉली ही उनके ऊपर पलट गई और दोनों की जान चली गई। ये तो चंद मामले हैं। भविष्य के तमाम सपनों को बुनती जिंदगी की डोर, यकायक ऐसी टूटी कि तमाम लोगों को आंसुओं का वह समंदर दे गई, जो ताजिंदगी सूखेगा नहीं।
गोद में घायलों को लेकर दौड़े लोग
आगरा में तूफान का कहर थमने के बाद, जिसको जो सूझा उसने वह किया। मलबे से घायलों को बाहर निकाल, बरसात के बीच ही गोद में घायलों को लेकर लोग दौड़ पड़े। बाइक और ट्रैक्टर में घायलों को लिटा दिया लेकिन पेड़ गिरने से रास्ते बंद थे। ग्रामीणों ने पेड़ हटाए, इसके बाद ऑटो, बाइक और अपने वाहन से एसएन इमरजेंसी में बुधवार रात 11.25 बजे के बाद घायलों को लेकर पहुंचने लगे। गुरुवार शाम तक घायलों का एसएन में आना जारी रहा। तूफान के बाद हुए हादसों को देखते हुए एसएन के प्रमुख अधीक्षक डॉ. अजय अग्रवाल के नेतृत्व में डॉक्टरों की टीम लगाई गई है। घायलों की संख्या बढऩे पर नई सर्जरी बिल्डिंग में स्पेशल वार्ड बनाया गया है। गुरुवार शाम तक एसएन में 34 और जिला अस्पताल में पांच घायल भर्ती हुए हैं।
ककुआ में सोते ही रह गए तीन बच्चे
आगरा के ककुआ निवासी चंद्रभान के पड़ोसी की दीवार गिरने से टिन शेड के नीचे सो रहे तीन बच्चे दब गए। इन्हें ग्रामीणों ने बाहर निकाला। पेड़ गिरने से रास्ते बंद होने पर ग्रामीण गोद में ब'चों को लेकर दौड़े और ग्वालियर हाईवे पर पहुंच गए। बाइक से ब'चों को लेकर रोहता पहुंचे, यहां से एक ऑटो किया और रात 11.25 बजे इमरजेंसी में आशु और दिव्यांश को भर्ती कराया। इसके बाद घायलों के एसएन आने का क्रम लगातार बना रहा। घायलों की अधिक संख्या होने के चलते स्ट्रेचर पर मरीज लिटाने पड़े और नई सर्जरी के स्पेशल वार्ड में भर्ती कराया गया। सांसद चौधरी बाबूलाल, कमिश्नर के. राम मोहन राव, डीएम गौरव दयाल ने मरीजों से जानकारी ली। प्राचार्य डॉ. सरोज सिंह ने बताया कि डॉक्टरों की टीम लगाई गई है।
पूरन देवी के लिए अंतिम सांस तक लड़ी जंग
आगरा के गांव हिरनेर, थाना शमसाबाद निवासी पूरन देवी पति स्वर्गीय चरन सिंह आंधी आने पर पेड़ के नीचे बंधी भैंस देखने के लिए गईं थीं, उनके साथ 18 साल साल की बेटी शिवानी भी थी। इसी दौरान दीवार गिर गई। उन दोनों को बाहर निकाला गया। चचेरे भाई शमसाबाद रोड से गांव में अपनी गाड़ी लेकर पहुंचे। वे होश में थीं और हादसे के बारे में बता रही थीं। परिजनों ने उन्हें जीआर हॉस्पिटल में भर्ती कराया, उन्हें बचाने की कोशिश की लेकिन चार घंटे इलाज के बाद उनकी मौत हो गई।
मलबे में दबी रह गई चार मासूमों की चीख
छत पर पड़े टिनशेड में बैठकर हवा का आनंद ले रहे दो भाइयों का परिवार तूफान की चपेट में आ गया। छत ढहने से मलबे में दबकर चार बच्चों की मौत हो गई, जबकि उनके माता-पिता समेत छह घायल हो गए। मासूमों पर मौत ने ऐसा झपट्टा मारा कि उनकी चीख तक दबकर रह गई। आगरा के सैंया के कुकावर निवासी राजवीर और उनके छोटे भाई प्रेमपाल अपनी पत्नियों और बच्चों के साथ बुधवार रात आठ बजे खाना खाकर छत पर टिन शेड के नीचे चारपाइयों पर बैठे थे। अचानक तूफान आने पर राजवीर ने छोटे भाई से बच्चों को लेकर नीचे जाने को कहा। मगर, उन्होंने सोचा कि थोड़ी देर तेज हवा चलने के बाद थम जाएगी, इसलिए नहीं गए। थोड़ी देर बाद तूफान आ गया, टिन शेड और दीवार टूटकर उनके ऊपर गिरी। इसके बाद छत भी टूट गई। दोनों भाइयों के परिवार मलबे में दब गए। आसपास के लोगों ने पहुंचकर सभी को बाहर निकाला। तब तक राजवीर के बेटे अंकित (9) व भोला (7), बेटी तनु (5) और पे्रमपाल के बेटे अंकित (4) की मौत हो गई। उनको चीखने तक का मौका नहीं मिला। जबकि राजवीर, उनकी पत्नी माया, पे्रमपाल की पत्नी उर्मिला और बेटे कान्हा, अजय घायल हो गए। ग्रामीणों ने किसी तरह घायलों को देर रात अस्पताल पहुंचाया। उर्मिला की हालत गंभीर बनी हुई है।
दो घंटे में रास्ते साफ कर घायल पहुंचाए अस्पताल
चार बच्चों की मौत के बाद परिवार के अन्य घायल सदस्य इलाज को तड़प रहे थे। पड़ोसी नरेश ने बताया कि ग्रामीणों ने एंबुलेंस को फोन किया, लेकिन एंबुलेंस नहीं आई। इसके बाद उन्होंने पुलिस कंट्रोल रूम में कॉल किया। मगर, पुलिस भी गांव से पांच किमी पहले तेहरा पर फंसी रह गई। एसओ सैंया बाइक से गांव पहुंचे। उनके साथ ट्रैक्टर-ट्रॉली से गांव के दो दर्जन युवा गांव से निकले। कुछ पेड़ कुल्हाड़ी और आरी से काटकर सड़क से हटाए तो कुछ ट्रैक्टर से बांधकर हटा दिए। इस तरह दो घंटे में रास्ता साफ किया। इसके बाद पुलिस की गाड़ी से घायलों को अस्पताल तक पहुंचाया गया।