कर लें शुभ काम, आज के बाद लग जाएगा मांगलिक कार्यों पर चार माह का ब्रेक Agra News
देवशयनी एकादशी आज। चार मास कहलाए जाते हैं चातुर्मास।
आगरा, जागरण संवाददाता। हिंदू कैलेंडर के अनुसार आषाढ़ माह के शुक्लपक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहा जाता है। पुराणों के अनुसार इस दिन से चार माह तक भगवान विष्णु योग निंद्रा में रहते हैं। कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान विष्णु की योग निंद्रा पूर्ण होती है। इस एकादशी को देवउठनी एकादशी कहा जाता है। देवशयनी एकादशी इस बार शुक्रवार को (आज) है। इसी दिन से चातुर्मास भी शुरू हो जाता है। आज के बाद अगले चार माह तक मांगलिक कार्य नहीं होंगे। चातुर्मास के दौरान पूजा-पाठ, कथा, अनुष्ठान से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। यह भजन, कीर्तन, सत्संग, कथा, भागवत के लिए श्रेष्ठ समय माना जाता है।
ज्योतिषाचार्य पं. चंद्रेश कौशिक के अनुसार पुराणों में बताया गया है कि देवशयनी एकादशी से लेकर अगले चार माह के लिए भगवान देवप्रबोधनी तक निंद्रा में चले जाते हैं। हिंदू धर्म में देव सो जाने की वजह से कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है। उनका कहना है कि वामन पुराण में बताया गया है कि असुरों के राजा बलि ने अपने पराक्रम से तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया था। राजा बलि के आधिपत्य को देखकर इंद्र देवता घबराकर भगवान विष्णु के पास मदद मांगने पहुंचे। भगवान विष्णु वामन अवतार लेकर राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंच गए। भगवान वामन ने बलि से तीन पग भूमि मांगी। पहले और दूसरे पग में भगवान ने धरती और आकाश को नाप लिया। तीसरा पग रखने के लिए कुछ बचा नहीं तो राजा बलि ने कहा कि तीसरा पग उनके सिर पर रख दें। भगवान विष्णु राजा बलि के दान-धर्म से बहुत प्रसन्न थे। उन्होंने राजा बलि से वरदान मांगने को कहा तो बलि ने पाताल में उनके साथ बसने का वर मांग लिया। बलि की इच्छापूर्ति के लिए भगवान को उनके साथ पाताल जाना पड़ा। राजा बलि को दिए वरदान के कारण ही आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी से कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तक पाताल लोक में वास किया। पाताल लोक में उनके रहने की इस अवधि को योगनिंद्रा माना जाता है।
ये है चातुर्मास
हिंदू धर्म में श्रावण से लेकर कार्तिक तक चार माह के समय को चातुर्मास कहा जाता है। इस साल चातुर्मास 12 जुलाई से शुरू हो रहा है। अषाढ़ के शुक्लपक्ष की एकादशी पर भगवान विष्णु योग निंद्रा मे चले जाते हैं। इसी के साथ चातुर्मास शुरू हो जाता है। हिन्दू धर्म के तीज-त्योहार और मांगलिक कार्यों में व्यस्तता के चलते हम खुद के लिए समय नहीं निकाल पाते हैं। इसके लिए हमारे धर्म में अलग से व्यवस्था की गई है। जिसमें हर मनुष्य को वर्ष में लगातार चार का समय खुद के लिए मिलता है। धर्मग्रंथों के अनुसार ये चार माह का समय सेहत, संयम और स्वाध्याय के लिए है। जिसमें सेहत का ध्यान रखने के लिए कम से कम और संतुलित भोजन किया जाता है। इसके साथ ही खुद की बढ़ती इच्छाओं को नियंत्रित करने के लिए संयम से रहना होता है, वहीं जप-तप, ध्यान और आध्यात्म की मदद से परमात्मा के करीब जाने का अवसर मिलता है।
दुर्लभ योग : 149 साल बाद गुरु पूर्णिमा पर होगा चंद्र ग्रहण
16 जुलाई की रात चंद्र ग्रहण होगा। ये ग्रहण भारत में दिखाई देगा। इस बार आषाढ़ मास की पूर्णिमा यानी गुरु पूर्णिमा पर चंद्र ग्रहण हो रहा है। भारत के साथ ही ये ग्रहण आस्ट्रेलिया, अफ्रीका, एशिया, यूरोप और दक्षिण अमेरिका में दिखाई देगा। ज्योतिषाचार्य के अनुसार मंगलवार, 16 जुलाई 2019 की रात करीब 1.30 बजे से ग्रहण शुरू हो जाएगा। इसका मोक्ष 17 जुलाई को सुबह करीब 4.30 बजे होगा। पूरे तीन घंटे ग्रहण रहेगा। 149 साल पहले ऐसे दुर्लभ योग बने थे। 12 जुलाई, 1870 को 149 साल पहले गुरु पूर्णिमा पर चंद्र ग्रहण हुआ था। उस समय भी शनि, केतु और चंद्र के साथ धनु राशि में स्थित था। सूर्य, राहु के साथ मिथुन राशि में स्थित था।