हाथों को काम देकर बनाया मजबूत, जानिए कैसे
कांता माहेश्वरी निर्धन परिवारों की महिलाओं को देती हैं रोजगार
आगरा, जागरण संवाददाता।
कहते हैं कि भूखे को खाना खिलाने से बड़ा कोई पुण्य नहीं होता। लेकिन अगर उसी भूखे इंसान के हाथों को काम मिल जाए तो वह किसी का आश्रित नहीं रहेगा। इसी सोच के साथ कांता माहेश्वरी ने मजबूर परिवारों की महिलाओं को स्वावलंबी बनाने में मदद की।
1980 में शादी होकर भरे-पूरे परिवार में आईं कांता माहेश्वरी को सास का साथ नहीं मिला। ससुर ने उनके हर फैसले पर उनका साथ दिया। ससुर की मृत्यु के बाद मानसिक रूप से टूटी कांता ने ऐसे परिवारों की मदद का जिम्मा उठाया तो आर्थिक रूप से कमजोर थे। 2000 में उन्होंने अन्नपूर्णा समिति की स्थापना की। इस समिति के तहत एक मुट्ठी आटा मुहिम की शुरुआत की गई। इस मुहिम में घरों से सिर्फ एक मुट्ठी आटा मांगा जाता था। जितना आटा इकट्ठा होता था, उसे हर उस परिवार में बांटा जाता था जो भूखे रहने को मजबूर थे। उनकी इस मुहिम में तब मोड़ आया जब एक सितारवादक के परिवार को गोद लिया। तब कांता माहेश्वरी ने सोचा कि ऐसे परिवारों की महिलाओं को मजबूत करना होगा। उन्हें रोजगार देना होगा, जिससे वे भूखे न रहें। फिर शुरू हुआ एक ऐसा सिलसिला, जिसने न जाने कितने परिवारों को रोजगार उपलब्ध कराया। महिलाओं को उनकी रुचि के हिसाब से काम करने में मदद की जाती है। जैसे मंगोड़ी-पापड़ बनाने से लेकर बुटीक तक और लड्डू-मठरी बनाने से लेकर स्वेटर बनाने तक का काम इन महिलाओं को शुरू कराया गया। इस सोच ने सैंकड़ों परिवारों की जिंदगी की दिशा ही बदल दी।
इतना ही नहीं, कांता माहेश्वरी संस्कृति और संस्कार को बच्चों में बरकरार रखने के लिए स्कूलों में हवन करवाती हैं, तुलसी-सालिगराम का विवाह करवाती हैं। पर्यावरण संरक्षण के लिए पौधे लगाने से लेकर स्कूलों में बच्चों को ईको ब्रिक बनाना तक सिखवाती हैं। ऐसे बच्चों की भी मदद करती हैं, जो एमबीए की फीस नहीं दे पाते हैं। एसएन मेडिकल कॉलेज में हर रोज सुबह दलिया बांटती हैं। समाज सेवा के इस काम में उनका पूरा परिवार मदद करता है। बहुएं भी पूरा सहयोग करती हैं। कांता माहेश्वरी कहती हैं कि मुझे बिल्कुल पसंद नहीं है कि कोई भी हाथ किसी के सामने कुछ मांगने के लिए फैले।