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किसानों से रतजगा करा रहे बेसहारा गोवंश और वन गायें

झुंड में 50 से अधिक होती हैं वन गायें पलक झपकते ही कर देती हैं फसल बर्बाद

By JagranEdited By: Published: Mon, 17 Jan 2022 06:05 AM (IST)Updated: Mon, 17 Jan 2022 06:05 AM (IST)
किसानों से रतजगा करा रहे बेसहारा गोवंश और वन गायें
किसानों से रतजगा करा रहे बेसहारा गोवंश और वन गायें

जागरण टीम, आगरा। बाह तहसील क्षेत्र में बेसहारा गोवंश और वन गायें किसानों के लिए मुसीबत बने हुए हैं। दिन-रात उन्हें खेतों पर ही रतजगा करना पड़ रहा है। नजर बचते ही बेसहारा गोवंश का झुंड खेत में घुसकर फसल बर्बाद कर देता है। बाह तहसील यमुना, चंबल और उटंगन नदी से घिरी हुई है। इन नदियों का कई किलोमीटर एरिया में जंगल भूमि है। इनमें अनेक प्रकार के जीव रहते हैं। उनमें वन गाय भी शामिल है। खास बात यह है कि झुंड में विचरण करने वाली वन गायों की संख्या 50 से अधिक होती है। रात होते ही ये बीहड़ से निकलकर गांव की ओर आकर खेतों में लहलहाती फसल को पलक झपकते ही नष्ट कर देती हैं। फसल नष्ट करने वालों में पालतू गायें भी हैं। लोग इनका दूध दुहकर छोड़ देते हैं। ये पूरे दिन तो खेत में फसल खाती हैं और सुबह-शाम पशुपालक के पास पहुंच जाती हैं। रात भर खेत पर कर रहे रखवाली

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किसान जयप्रकाश, रामसिंह, रामकेश, राजभान सिंह, राम संजीवन, पप्पू, हौराम सिंह, गजेंद्र सिंह, रूमाल सिह आदि का कहना है कि निगाह हटने से पूरी साल की मेहनत पर पानी फिर जाएगा। इसलिए वे भीषण सर्दी में पूरी रात खेत पर ही रखवाली कर रहे हैं। कंटीले तार की बाड़ के बावजूद खेतों में घुस रहे

आर्थिक रूप से संपन्न किसान फसलों की सुरक्षा के लिए कंटीले तार की बाड़ के अलावा अन्य व्यवस्था भी कर रहे हैं। बावजूद इसके बेसहारा गोवंश खेतों में घुस जाते हैं। इन गांव में अधिक खौफ

बड़ागांव, नहटौली, गोपालपुरा, शाहपुर ब्राहृमण, चित्राहाट, पई, बैदपुरा, चौरंगाहार, कान्हरपुरा, पुरा बाघराज, गुमानसिंह पुरा, तिन्नेत पुरा, हरलाल पुरा, पुरा चक्रपान समेत 100 से बेसहारा गोवंश व वन गायों का खौफ है। इन फसलों को नुकसान

इस समय खेत में आलू, सरसों व गेहूं की फसल हो रही है। अभी तक वन गाय सरसों की फसल उजाड़ रही थी। अब आलू व गेहूं को बर्बाद करने में लगी हैं। गोशाला बनवाने की घोषणा नहीं चढ़ी परवान

प्रदेश में भाजपा की सरकार बनते ही मुख्यमंत्री ने गांव-गांव गोशाला बनवाकर इनसे निजात दिलाने की घोषणा की थी। जगह के अलावा गांव भी चिन्हित किए गए लेकिन योजना जमीन पर न उतरकर कागजों में ही सिमटकर रह गई।


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