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Destination For Outing: कहीं घूमने का है मन तो एक बार ब्रज के इस नजारे का भी लें आनंद, महाबक का परिवार कर रहा आकर्षित

Destination For Outing महाबक (स्टाॅर्क) परिवार की चार प्रजातियों के रंग में रंगा आगरा का जोधपुर झाल।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Tue, 04 Aug 2020 03:41 PM (IST)Updated: Tue, 04 Aug 2020 03:41 PM (IST)
Destination For Outing: कहीं घूमने का है मन तो एक बार ब्रज के इस नजारे का भी लें आनंद, महाबक का परिवार कर रहा आकर्षित
Destination For Outing: कहीं घूमने का है मन तो एक बार ब्रज के इस नजारे का भी लें आनंद, महाबक का परिवार कर रहा आकर्षित

आगरा, तनु गुप्ता। ये शहर है मोहब्बत का, इमारतों का, सफेद संगमरमरी हुस्न का...बस इतनी भर नहीं है मेरे शहर की खूबसूरती, यहां के दरख्त भी सुंदर हैं और परिंदे भी सतरंगी छटा बिखेरते हैं। जी हां, ब्रज क्षेत्र महज ताज या मंदिरों का ही नहीं बल्कि प्राकृतिक नजारों का भी क्षेत्र है। कीठम से 12 किमी दूर मथुरा जिले में जोधपुर झाल प्रकृति की अद्भुत सुंदरता का खजाना है। स्वच्छ व कम गहरे पानी की झील, घास का मैदान, 6-8 नहरों का जाल, आसपास कृषि भूमि और जंगल के बड़े बड़े पेड़। ऐसा ही तो निवास चाहिए स्टाॅर्क फैमिली के पक्षियों के लिए जहां भोजन भरपूर हो और प्रजनन के अनुकूल स्थान हो। 

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स्टाॅर्क फैमिली की चार प्रजातियों को जोधपुर झाल का हेविटाट भा गया है। पेन्टेड स्टाॅर्क, ब्लैक नेक्ड स्टाॅर्क, बूली नेक्ड स्टाॅर्क और ओपन बिल स्टाॅर्क जैसे रंग बिरंगे पक्षियों की मौजूदगी से जोधपुर झाल भी इनके रंग में रंग गया है। यह चारों प्रजातियां भरतपुर और कीठम झील के अलावा यहां दिख रही हैं।

देश में पाई जाती है स्टाॅर्क परिवार की आठ प्रजातियां

बायोडायवर्सिटी रिसर्च एंड डवलपमेंट सोसायटी के अध्यक्ष एवं पक्षी विशेषज्ञ डॉ केपी सिंह ने बताया कि पूरे विश्व में स्टाॅर्क फैमिली की 20 प्रजातियां पाई जाती है। भारत में 8 प्रजातियां मौजूद हैं। स्टाॅर्क की ये आठ प्रजातियां ग्रेटर एडजुटेंट, लेसर एडजुटेंट, एशियन ओपनबिल, बूली नेक्ड स्टाॅर्क, ब्लैक नेक्ड स्टाॅर्क, पेन्टेड स्टाॅर्क, व्हाइट स्टाॅर्क एवं ब्लैक स्टाॅर्क प्रजातियां भारतीय उपमहाद्वीप एवं दक्षिण-पूर्व एशिया में पाई जाती है। भारत में पाई जाने वाली इन आठ प्रजातियों में से दो प्रजातियां व्हाइट स्टाॅर्क एवं ब्लैक स्टाॅर्क भारत में माइग्रेशन करके आती हैं। अन्य छ प्रजातियां भारत की स्थानीय हैं।

क्या है स्टाॅर्क  

पक्षी विशेषज्ञ डॉ केपी सिंह के अनुसार स्टाॅर्क को जन्तु विज्ञान के वर्गीकरण में साइकोनिडा फैमिली और सिसियोनिफोर्मस आर्डर में रखा गया है। भारत में उत्तर के पहाड़ों एवं पश्चिम में रेगिस्तान को छोड़ लगभग पूरे देश में इनकी उपस्थिति दर्ज की गई है। केवल ओपनबिल स्टाॅर्क को कुछ बर्षों से पश्चिम भारत में थार के रेगिस्तान में भी देखा जा रहा है। इसका कारण इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर नहरों का निर्माण किया जाना है।

जोधपुर झाल का संरक्षण हो तो बढ जाएगी स्टाॅर्क की जनसंख्या

डॉ केपी सिंह ने बताया कि जोधपुर झाल का हेविटाट स्टाॅर्क फैमिली की इन चार प्रजातियों के अनुकूल है। यह चारों प्रजातियां पूरे साल यहां दिखती हैं। अगर यहां एक झील के बीच में कुछ आई लेन्ड बनाकर देशी बबूल के पेड़ लगा दिये जाए तो पेन्टेड स्टाॅर्क की संख्या में वृद्धि हो सकती है और इनके प्रजनन स्थलों में भी वृद्धि हो जाएगी। 

इन चार प्रजातियों की शरणस्थली बनी है जोधपुर झाल

पेन्टेड स्टाॅर्क

जिसे हिंदी में चित्रित महाबक या जंघिल (माइक्टेरिया ल्यूकोसेफला) कहते हैं। पेन्टेड स्टाॅर्क समूह बनाकर रहते हैं। सदैव अधिक संख्या में दिखाई देते हैं। भरतपुर के घने में इनकी काॅलोनी आकर्षण का केंद्र है। यह बड़े आकार का, लंबी नुकीली और पीले रंग की चोंच, एडल्ट पक्षी के पंखों के पिछले भाग का रंग गुलाबी जैसे ब्रुश से रंग कर दिया हो इसकी प्रमुख पहचान है । पेन्टेड स्टाॅर्क की जनसंख्या घटती हुई और संकट के निकट है । इसका आकार 36-40 इंच व बजन 2-3 किलो ग्राम होता है। यह स्थानीय माइग्रेशन करता है। नर आकार में मादा से बडा होता है। इसका भोजन मुख्यतः मछली, मेंढक और घोंघा सहित अन्य जलीय जीव होते हैं। इनका निवास कम गहरे पानी की झील , बडे तालाबों और छिछले पानी के निकट ऊँचे पेड़ों पर होता है। पेन्टेड स्टार्क का प्रजनन काल अगस्त से मार्च तक रहता है मादा 2-4 अंडे तक देती है।

ब्लैक नेक्ड स्टार्क (एफिफ़ोरहाइन्चस एशियाटिकस)

हिन्दी नाम लोह सारंग है। यह भारतीय उपमहाद्वीप में पाया जाता है। काली नुकीली चोंच, लंबी काले रंग की गर्दन, सफेद रंग का उदर और पंख नीचे के छोर पर काले रंग के, आंखो पर पीले रंग का घेरा इसकी प्रमुख पहचान है। इसकी जनसंख्या घटती हुई व संकटग्रस्त है । आकार मे यह 51 से 59 इंच और वजन 3 से 4 किलोग्राम होता है। प्रजनन काल मानसून के सितंबर से नवंबर तक होता है। अंडों की संख्या 1 से 5 तक होती है। यह कूट, लिटिल ग्रीव, शोवलर, जेकाना के साथ मछली,घोंघा, मेंढक आदि जलीय जीवो का भोजन करता है । यह अधिकतर अकेला, जोड़े में या अपने परिवार के साथ दिखाई देता है।

बूली नेक्ड स्टाॅर्क (सिसोनिया एपिस्कोपस)

 हिन्दी नाम सितकंठ महाबक या लगलग है। यह भारत से इंडोनेशिया तक पाया जाता है। इसकी जनसंख्या संकटग्रस्त है । इसकी चोंच और पंखों का रंग क्रिम्सन रेड या रेड वाइन जैसा होता है। गर्दन का रंग सफेद और रुई की तरह दिखने वाली होती है। सर पर मेहरून रंग की क्रस्ट होती है।आकार में यह 75 से 92 सेंटीमीटर तक होता है। जलीय जीवो के साथ सरीसृपों व कीड़े मकोड़े इसका भोजन होते हैं। मादा 2-5 अंडे देती है। यह नहरों के पास कृषि क्षेत्र , स्वच्छ पानी की झील , घास के मैदान , बड़े पेड़ो के जंगलों में पाया जाता है । प्रजनन काल मानसून के समय में होता है।

एशियाई ओपनबिल स्टॉर्क (एनास्टोमस ऑसिटिटंस)

इसे घोंघिल भी कहते हैं। इनकी चोंच के मध्य खाली स्थान होने के कारण इन्हें ओपनबिल कहा जाता है। घोंघिल एक बड़े आकार का पक्षी है जो पहाड़ी क्षेत्रों को छोड़कर पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में पाया जाता है। यह पक्षी, थाइलैंड, चीन, वियतनाम, रूस आदि देशों में भी मौजूद हैं। लम्बी गर्दन व टाँगे तथा चोंच के मध्य खाली स्थान इसकी मुख्य पहचान हैं। इसके पंख काले-सफ़ेद रंग के होते हैं जो प्रजनन के समय अत्यधिक चमकीले हो जाते है और टाँगे गुलाबी रंग की हो जाती है। प्रजनन के उपरान्त इनका रंग हल्का पड़ जाता है और गन्दा सिलेटी रंग हो जाता है। किन्तु प्रजनन काल के बाद फिर से चमकीला हो जाता है। इनके पंख सफेद व काले रंग के और पैर लाल रंग के होते हैं। यह संकटग्रस्त पक्षियों की श्रेणी में रखा गया है। ओपनबिल स्टाॅर्क का मुख्य भोजन घोंघा, मछली, केंचुऐ व अन्य छोटे जलीय जन्तु हैं। यह घोसले मुख्यतः इमली, बरगद, पीपल, बबूल, आदि के पेड़ों पर बनाते हैं। प्रजनन काल जून से अक्टूबर तक रहता है। मादा 4 से 5 अण्डे देती है ।

किसान मित्र है एवं परजीवी संक्रमण को रोकता है ओपनबिल स्टाॅर्क

यह ओपनबिल स्टाॅर्क प्लेटीहेल्मिन्थस संघ के परजीवियों से होने वाली बीमारियों को नियन्त्रित करता है। इन परजीवियों का वाहक घोंघा (मोलस्क) होता है, जिसके द्वारा खेतों में काम करने वाले मनुष्यों और जलाशयों व चरागाहों में चरने व पानी पीने वाले वाले पशुओं को यह परजीवी संक्रमित कर देता है। फलस्वरूप मनुष्य व उनके पालतू जानवरों में बुखार, यकृत की बीमारी पित्ताशय की पथरी, स्नोफीलियां, डायरिया, डिसेन्ट्री आदि पेट से सम्बन्धित बीमारी हो जाती हैं। इनका भोजन घोंघा होता है अतः परजीवी अपना जीवनचक्र पूरा नहीं कर पाते और इनसे फैलने वाला संक्रमण रूक जाता है। इनके मल में खेती के लिए लाभकारी तत्व होते हैं जैसे फास्फोरस, नाइट्रोजन व कार्बनिक तत्व।


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