मैटल ने कम कर दी चूडिय़ों की खनक, सुहाग नगरी में ठंडी पड़ रही कारखानों में आंच
20 फीसद तक कम हुआ कांच की चूडिय़ों का कारोबार। दुकानों पर सजी हैं सीप और लाख की चूडिय़ां।
आगरा, जेएनएन। देश भर में प्रसिद्ध फीरोजाबाद का चूड़ी कारोबार मुश्किलों में है। कांच की खनकती चूडिय़ों से न सिर्फ युवतियों का बल्कि सुहागिनों का भी मोह कम हो रहा है। फीरोजाबाद की पहचान मानी जाने वाली हिल्ल और खरे कांच की चूडिय़ों का उत्पादन न के बराबर रह गया है। एक तरफ जहां कांच की चूडिय़ों की लागत बढ़ रही है, वहीं आसानी से न टूटने वाली मैटल और सीप की चूडिय़ां कम कीमत में बाजार में मिल जाती हैं।
बदलते वक्त और फैशन की मार से कांच की चूडिय़ों की खनक भी अछूती नहीं रह सकी है। एक समय था जब महिलाएं एक हाथ में 12 से 18 तक चूडिय़ां पहनती थीं। यही वजह थी, जिसके कारण फीरोजाबाद में 'दर्जनÓ शब्द की परिभाषा ही बदल गई थी। यहां अब भी एक दर्जन चूड़ी मांगने पर 24 चूडिय़ां दी जाती हैं, लेकिन अब हालात बदल गए हैं। महिलाओं ने भी चूडिय़ों की संख्या घटाकर चार से छह कर दी है। इसमें भी मैटल, सीप, ब्रास और लाख की चूडिय़ां व कड़े कांच को कड़ी टक्कर दे रही हैं। इससे चूड़ी कारोबार को हर साल करोड़ों की चपत लग रही है। हालात ये है कि कांच की चूडिय़ों के शहर में चूड़ी की दुकान चलाने वालों को भी दुकानदारी बरकरार रखने के लिए मैटल, सीप आदि की चूडिय़ां व कड़े रखने पड़ रहे हैं।
आंकड़ों की नजर में चूड़ी
- 125 कारखाने हैं चूड़ी के।
- 800 करोड़ से अधिक का है कारोबार।
- 20-22 लोगों के हाथ से गुजरती है एक चूड़ी।
- दो लाख श्रमिक जुड़े हैं इस कारोबार से।
कांच की चूडिय़ां हर लिहाज से फायदेमंद हैं। कांच की चूड़ी प्रसन्नता और सुहाग की प्रतीक होती है। इसे पहनने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। मैटल व सीप की चूडिय़ां त्वचा को नुकसान पहुंचाती हैं। इसके बाद भी फैशन हावी है।
आनंद अग्रवाल, चूड़ी के थोक व्यापारी
महिलाओं में चूडिय़ों का क्रेज कम हो गया है। अब कड़े अधिक पसंद किए जा रहे हैं। कड़े कांच के भी उपलब्ध हैं, लेकिन महिलाएं व युवतियां सीप, मैटल और लाख से बने कड़े को टिकाऊ होने के कारण वरीयता देती हैं।
संजय अग्रवाल, चूड़ी विक्रेता
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