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'मैं' से होता विनाश, 'हम' से ही होगा विकास

आगरा: 'मैं' से विनाश और 'हम' से विकास होता है। अहंकार से ही शक्तिशाली रावण का पतन हो गया था।

By JagranEdited By: Published: Fri, 21 Sep 2018 08:00 AM (IST)Updated: Fri, 21 Sep 2018 08:00 AM (IST)
'मैं' से होता विनाश, 'हम' से ही होगा विकास
'मैं' से होता विनाश, 'हम' से ही होगा विकास

आगरा: 'मैं' से विनाश और 'हम' से विकास होता है। अहंकार से ही शक्तिशाली रावण का पतन हो गया था। ये बातें एमडी जैन इंटर कालेज के प्रधानाचार्य जीएल जैन ने कहीं।

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दैनिक जागरण की संस्कारशाला में गुरुवार को शिक्षक डॉ. घनश्याम सिंह ने कहा कि वर्तमान में युवा पीढ़ी संस्कारों से दूर होती जा रही है। घरों में बच्चों को संस्कार नहीं दिए जा रहे। यह चिंता का विषय है। घरों में मोबाइल से चिपके रहने वाले बच्चों को पारिवारिक मूल्यों की समझ होनी चाहिए। ये बने विजेता

संस्कारशाला में सुनाई गई कहानी के बाद छात्र-छात्राओं से प्रश्न भी पूछे गए। इनमें सही जवाब देने वाले संस्कार शर्मा, निखिल पाल, तनिष्क अग्रवाल, अल-इन्शाल मुसर्रत को संस्कारशाला की पुस्तक भेंट की गई।

बड़ों का सम्मान और बेजुबानों का ख्याल रखना चाहिए। इससे हमें ऊंचाई मिलती है और हम जीवन में सफल कहलाते हैं।

दिव्यांश जैन गुरुजनों की डांट हमें सफलता दिलाती है। इसे गलत नहीं लेना चाहिए। जो शिष्य अपने गुरु का कहना नहीं मानता। वह सफलता प्राप्त नहीं कर सकता।

नमन जैन संस्कारवान हम तभी कहे जाएंगे, जब हम घर वालों की सभी बातें मानेंगे। क्योंकिसंस्कारों की शुरुआत घर से ही होती है। घर के माहौल से ही संस्कार सिखाते हैं।

निपुण जैन अहंकार को त्यागकर सबके सहयोग की भावना जागृत करनी चाहिए। इसमें हमारे परिवार की बड़ी भूमिका होती है। यही हमें सम्मान दिलाती है।

मधु सुमन शर्मा मैं सबसे अधिक समय अपने परिवार के साथ बिताती हूं। इससे मुझे संस्कार व पुराने जमाने के बारे जानकारियां मिलतीं हैं। यही हमे संस्कारवान बनाते हैं।

ओम अग्रवाल एकता के सूत्र में बंधकर ही राष्ट्र और समाज का उत्थान हो सकता है। इसके लिए हमें तो संघर्ष करना पड़ेगा, लेकिन जीवन सफल हो जाएगा।

अभिषेक शर्मा कबीर का दोहा 'जब मैं था तब हरी नहीं, अब हरी है मैं नाही' भी हमें अहंकार से दूर रहने की सीख देता है। गुरु के ज्ञान से ही अपने भीतर का अंधियारा मिटाया जा सकता है।

स्पर्श गर्ग बच्चे के संस्कारवान होने से उसके घर परिवार के बारे में भी पता चलता है। इसके लिए अनुशासन और ईमानदारी जरूरी है। तभी हम सफल कहलाएंगे।

रोहित धाकड़ संस्कारवान बनने लिए हमें ईष्र्या मिटानी होगी। गुरुजनों की बातों को मानने से ही हमारा संपूर्ण विकास होगा। इस भावना से जीवन सफल हो जाता है।

सचिन सिंह द्वेष की भावना को दूर करना चाहिए। घर से हमारे संस्कारों की शुरुआत होती है और गुरुजन इसकी दूसरी सीढ़ी हैं। हमें उनकी बातें माननी चाहिए।

लकी बघेल


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