आपके सीने में हिंदुस्तान होना चाहिए, देर रात तक बजती रहीं तालियां Agra News
दैनिक जागरण की ओर से सूर सदन में आयोजित हुआ कवि सम्मेलन। डॉ नवाज देवबंदी के साथ नसीम अख्तर विनीत चौहान ने भी पढ़े कलाम।
आगरा, जागरण संवाददाता। ‘रोशनी का कुछ ना कुछ इमकान होना चाहिए / बंद कमरे में भी रोशनदान होना चाहिए / वो जो अनपढ़ हैं, चलो हैवान हैं तो ठीक है / हम पढ़े लिखों को इंसान होना चाहिए / हिंदू मुस्लिम चाहे जो लिखा हो माथे पर मगर / आपके सीने में हिंदुस्तान होना चाहिए।’
दैनिक जागरण द्वारा सूरसदन में आयोजित कवि सम्मेलन में शायर डॉ. नवाज देवबंदी ने जब इन पंक्तियों को श्रोताओं की तरफ उछाला तो उन्होंने खड़े होकर हौसलाअफजाई की। वीर रस की कविताओं पर भारत माता की जय की हुंकार, प्रेम पगी कविताओं पर राधे-राधे की गूंज और हास्य की कविताओं पर न थमने वाले ठहाकों से सूरसदन गूंज उठा।
मशहूर शायरा मुमताज नसीम ने इश्क के दर्द को ईद और मुहर्रम से जोड़ा-‘जब से तेरी नजर मुझसे बरहम हुई/ बेकली बढ़ गई, जिंदगी कम हुई / मिट गईं मेरी दुनिया की रंगीनियां/ ईद मेरी तेरे बिन मुहर्रम हुई।’ श्रोताओं की हौसलाअफजाई के साथ वह आगे बढ़ीं- तुङो कैसे इल्म न हो सका, बड़ी दूर तक ये खबर गई / कि तेरे ही शहर की शायरा, तेरे इंतजार में मर गई।’ उनकी इन कविताओं पर श्रोताओं ने खूब तालियां बजाईं।
अशोक साहिल ने ‘जो याद हमेशा रखनी थी/ उस बात को अक्सर भूल गए / हम लोग कलश के चक्कर में बुनियाद का पत्थर भूल गए’ सुनाकर वाहवाही लूटी। प्रियांशु गजेंद्र ने प्रेम और वियोग के भाव को चुटीले अंदाज में पेश किया-इतने निर्मोही कैसे सजन हो गए / किसकी बाहों में जाकर मगन हो गए / लौटकर न आए वो परदेश से / आदमी न हुए काला धन हो गए।
ओज और वीर रस के सशक्त हस्ताक्षर कवि विनीत चौहान जैसे ही मंच पर आए पूरा सदन तालियों से गूंज उठा। विनीत चौहान ने मौजूदा दौर पर लोगों के दिल की बात कही- ‘पूरी घाटी दहल रही थी आतंकी अंगारों से / कश्मीर में आग लगी थी पाकिस्तानी नारों से / इन दो घटनाओं का निपटाना मजबूरी था और 370 हटना बहुत जरूरी था।’ उनकी अगली कविता थी-‘बहुत दिनों के बाद देश में ऐसा मौसम आया है / अमर तिरंगा काश्मीर में खुलकर के लहराया है।’
हास्य कवि पवन आगरी ने ‘केसर की घाटी में अब खुशहाली छा गई है / जंगली कुत्ताें को गुजराती बिल्ली खा गई है/ इधर हम प्रियंका में इंदिरा ढूंढते है रहे/ उधर शाह में पटेल की आत्मा आ गई है’ सुनाकर लोगों की दाद लूटी।
भारत माता की जय के साथ शुभारंभ
भारत माता की जय, वंदेमातरम की गूंज और तालियों की गड़गड़ाहट के साथ कवि सम्मेलन का शुभारंभ हुआ। कवि सम्मेलन का उद्घाटन दैनिक जागरण के एसोसिएट एडिटर उमेश शुक्ल, महाप्रबंधक अखिल भटनागर, मेयर नवीन जैन, विधायक पुरुषोत्तम खंडेलवाल, विधायक रामप्रताप सिंह चौहान ने मां सरस्वती की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित कर किया। इसके बाद जैसे ही विनीत चौहान ने संचालन के लिए मंच संभाला तो सदन तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। सरस्वती वंदना मुमताज नसीम ने प्रस्तुत की।
..और गूंजता रहा वन्स मोर
कवि सम्मेलन में कवियों की रचनाएं श्रोताओं को खूब पसंद आईं। स्थिति ये थी कि जब कवि काव्य पाठ करके वापस अपने स्थान पर जाने लगे तो श्रोताओं की तरफ से बार-बार वन्स मोर, वन्स मोर की गूंज सुनाई दी। इस दौरान श्रोताओं ने कवियों के सामने अपनी फरमाइश रखी, जिन्हें कवियों को सुनाना पड़ा।
ये रहे मौजूद
कार्यक्रम में सांसद एसपी सिंह बघेल, एसएसपी बबलू कुमार, एएसपी सौरभ दीक्षित, सीओ एलआइयू ह्रदेश कुमार कठेरिया, महेश शर्मा, चेयरमैन आगरा पब्लिक स्कूल, सुशील गुप्ता, प्रिल्यूड पब्लिक स्कूल,जितेंद्र गोयल बालाजी ऑप्टिकल्स, मनोज अग्रवाल, किशन गुप्ता, मनमोहन चावला मौजूद रहे।
ये रहे प्रायोजक
विजय बंसल, आगरा फुटवियर मैन्यूफेक्चर्स एंड एक्सपोटर्स चैम्बर, ओपी चैन्स ग्रुप, एंथम,डॉ. एमपीएस ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यशंस, डॉ. नरेश शर्मा एमडी.डीएम न्यूरोलॉजी, भावना क्लार्क्स इन, प्रिल्यूड पब्लिक स्कूल, संत रामकृष्ण ग्रुप, श्री तुलसी, आगरा पब्लिक ग्रुप, कलाकृति, मुन्शी पन्ना मसाले, माही इंटरनेशनल स्कूल, बलूनी पब्लिक स्कूल, ब्लॉसम सुपर स्पेश्यलिटीज, बालाजी ऑप्टिकल्स कंपनी, डिंपल कलेक्शन, आगरा हर्ट सेंटर,डीआरवी मोटर्स, लक्ष्मी अन्नपूर्णा, गुप्ता एंड को।
देश को मोहब्त, सांप्रदायिक सौहार्द और एकता की जरूररत: देवबंद
‘एक आखों के पास है, एक आंखों से दूर, बेटा हीरा होता है तो बेटी कोहिनूर’ इन पंक्तियों के माध्यम से मशहूर शायर डॉ. नवाज देवबंदी ने बेटियों की महत्ता के बारे में बताया। मंगलवार को होटल क्लार्क्स इन में दैनिक जागरण से बातचीत में उन्होंने कहा कि बेटियों की शिक्षा बहुत जरूरी है, क्योंकि जिसकी मां पढ़ी लिखी होती है उसकी औलाद खुद पढ़ी लिखी होती है। बेटियों के लिए दो दर्जन से अधिक शिक्षण संस्थान चला रहे डॉ. देवबंदी का मानना है कि बेटियों की शिक्षा से ही समाज में क्रांति आएगी।
मौजूदा दौर की कविताओं पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि साहित्य के संस्कार भी समाज के संस्कार की तरह दम तोड़ रहे हैं। इसकी एक वजह हमारी नई पीढ़ी पढ़कर नहीं आ रही है। इसलिए उनके पास परोसने के लिए कुछ नया नहीं है। उन्होंने कहा कि हमारी नई पीढ़ी में प्रतिभा बहुत है लेकिन उनके प्रशिक्षण का कोई प्रबंध नहीं है। पहले गोष्ठियां होती थीं, नये लोग वहां अपनी कविता और शायरी सुनाते थे उसमे कोई कमी होती थी तो उस्ताद उसे सुधारते थे। अब जरूरी है कि इस क्षेत्र में जो लोग आ रहे हैं वो पढ़कर आएं। उन्होंने कहा कि शायरी दो चार साल के लिए नहीं होती बल्कि ये सदियों के लिए होती है। मीर और गालिब अपनी शायरी के कारण ही आज भी हमारे दिलो में जिंदा है। उन्होंने कहा कि हमारा देश साहित्य प्रधान देश भी रहा है, इसे फिर सोने की चिड़िया बनाना है तो हमें देश को साहित्यिक मानसिकता देनी होगी। उन्होंने कि आज हमारे देश में मुहब्बत सांप्रदायिक सौहार्द और एकता की बहुत जरूरत है। कुदरत ने हमारे हंिदूुस्तान को हर मौसम दिया है। हमारा देश एक गुलदस्ते की तरह है, कुदरत की मर्जी है कि इसमें हर तरह के फूल एक साथ रहे। हमारी जिम्मेदारी है इस गुलदस्ते को गुलदस्ता बनाएं रखें।
कविताएं हमेशा से परिवर्तनशील: गजेंद्र
कवि गजेंद्र प्रियांशु ने कहा कि कवि सम्मेलन के मंचों पर अब प्रयोग बहुत कम हो रहे हैं। इसकी एक बड़ी वजह है कि कवि मंच पर कोई नई कविता सुनाकर रिस्क नहीं लेना चाहते। कविताओं में प्रयोग न होने की वजह श्रोता भी है। श्रोता जो पसंद करते हैं, कवि वही कविताएं सुनाते हैं। उन्होंने कहा कि कविताएं हमेशा परिवर्तनशील रहती हैं। जो कवि समय के अनुसार अपनी कविताओं में प्रयोग करता है, वह हमेशा मंच और इतिहास में जिंदा रहता है। उन्होंने कहा कि मैं अब आधुनिकीकरण का प्रयोग अपनी कविताओं में कर रहा हूं, जो आज की जरूरत भी है और सुनी भी जा रही हैं। मानव प्रेम में कई जगह लिखा, पाकिस्तान के व्यवहार पर भी मैंने लिखा है। हमें समय के साथ अपनी कविताओं में प्रयोग करना ही होगा। एक समय ऐसे आ गया था कि टीवी के प्रति लोगों का आकर्षण बढ़ा था लेकिन धीरे-धीरे लोग उससे बोर होने लगे। ऐसे में कविता ही कुछ नयापन ला सकती है।
जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटना एक सुखद आश्चर्य: विनीत चौहान
वीर रस के कवि विनीत चौहान मानते हैं कि जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटना अकल्पनीय, अविश्वसनीय और एक सुखद आश्चर्य है। सबको लगता था कि अनुच्छेद 370 ऐसा कोढ़ है जिसे हटाया नहीं जा सकता, लेकिन हमने पुरखों का कलंक धो दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह इसके लिए बधाई के पात्र हैं।
विनीत कहते हैं कि अभी वहां स्थितियां सामान्य नहीं हैं लेकिन धीरे-धीरे सुधार हो रहा है। होटल भावना क्लार्क्स इन में मंगलवार को जागरण से वार्ता में कवि विनीत चौहान ने कहा कि कवि सम्मेलन के मंचों से साहित्य की कविता गायब हो गई है और ये मनोरंजन की तरफ बढ़ गया है। कवि सम्मेलन के मंच और कविताओं का भी व्यवसायीकरण हो गया है। मंचों पर पैसा आना बुरा नहीं है लेकिन साहित्य पर पैसा हावी होना बुरा है। पैसा जहां भी गया है वहां पतन निश्चित है।
उन्होंने टीवी पर परोसी जा रही कविताओं पर टिप्पणी करते हुए कहा कि कविता एक दिन या कुछ समय में नहीं लिखी जा सकती। कविता संवेदनशीलता का परिचायक है। कविता लिखने के लिए संवेदनात्मकता, भावनात्मकता और विषय परिस्थिति की जरूरत होती है। अच्छी बात ये है कि युवाओं का रुझान भी अब कवि सम्मेलनों और कविताओं की ओर बढ़ा है। इसका बहुत बड़ा कारण मोबाइल और इंटरनेट है। मोबाइल और इंटरनेट ने कवियों को युवाओं के करीब पहुंचाया है।
विनीत चौहान ने कहा कि राजनीति के साथ हर क्षेत्र में बड़े बदलाव देखने को मिल रहे हैं। आज संबंध अर्थ पर आधारित हो गए हैं और हर व्यक्ति आर्थिक संबंध ही निभा रहा है। राजनीति भी अब व्यापार का रूप ले चुकी है। राजनीति, पत्रकारिता, काव्य पाठ हर जगह अर्थ नीति ने अपना वर्चस्व बना लिया है।
हिंदू, उर्दू को कोई खतरा नहीं: मुमताज
कवियत्री मुमताज नसीम कहती हैं, मैं मुहब्बत की नगरी में कविता पढ़ने आई हूं। मुल्क को प्रेम की कविताओं से अमन का संदेश देना चाहती हूं। होटल भावना क्लार्क्स इन में मंगलवार को जागरण से बातचीत में कवियित्री मुमताज नसीम ने कहा कविता की तरफ लोगों का रुझान बढ़ने लगा है और इसे देखकर लगता है कि हंिदूी और उर्दू जुबान को कोई खतरा नहीं है। उन्होंने कहा कि मंचों से फूहड़ता परोसना गलत है लेकिन एक सच ये भी है कि लोग उसे पसंद कर रहे हैं अगर लोग उसे पसंद न करें तो फूहड़ता अपने आप मंचों से गायब हो जाएगी। उन्होंने कहा कि एक समय ऐसा आया था जब टेलीविजन हावी हो गया था। उस दौर में लोग कवि सम्मेलन के मंच से दूर हो रहे थे। लेकिन अब माहौल बदला है। कवि सम्मेलनों की संख्या बढ़ी है। उन्होंने कहा कि खास बात ये है कि अब युवा कविताओं से जुड़ रहा है।
फूहड़ता हास्य नहीं: पवन आगरी
हास्य व्यंग्यकार पवन आगरी का मानना है कि कुछ लोग फूहड़ता को हास्य मान लेते हैं लेकिन यह ठीक नहीं। अश्लील टिप्पणियों को व्यंग्य नहीं कहा जा सकता। उन्होंने कहा कि सामाजिक विसंगतियों और राजनीतिक विद्रुपताओं को हास परिहास के साथ लोगों के बीच में लाना ही हास्य व्यंग्य है। टीवी चैनलों पर फूहड़ कार्यक्रमों पर उन्होंने कहा कि कवि सम्मेलन से उठाई हुई मौलिक टिप्पणियों के बलबूते इन लोगों ने अपने व्यावसायिक फायदे के लिए इसका दोहन किया। जबकि गोपाल प्रसाद व्यास, काका हाथरसी, ओम प्रकाश आदित्य माणिक वर्मा और सुरेंद्र शर्मा ने हास्य व्यंग्य को कवि सम्मेलन के मंचों पर स्थापित किया था। आगरा निवासी होने के नाते उन्होंने न केवल सरनेम आगरी लिखा। बल्कि ब्रज भाषा उत्थान में भी महती भूमिका निभाई है। आगरा से जुड़े होने के नाते उन्होंने अपना सरनेम आगरी ही रखा।