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पितृ पक्ष 2019: कागग्रास कर रहा इंतजार, नहीं आ रहे अटेरिया पर पितृ Agra News

श्राद्ध पक्ष में महत्‍वपूर्ण होता है कागग्रास। छत पर नहीं आने की स्थिति में अन्‍य पशु पक्षियों को दिया जा रहा उनका भाग।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Tue, 17 Sep 2019 09:07 AM (IST)Updated: Tue, 17 Sep 2019 09:07 AM (IST)
पितृ पक्ष 2019: कागग्रास कर रहा इंतजार, नहीं आ रहे अटेरिया पर पितृ Agra News
पितृ पक्ष 2019: कागग्रास कर रहा इंतजार, नहीं आ रहे अटेरिया पर पितृ Agra News

आगरा, तनु गुप्‍ता। पितरों के धरती पर आगमन के दिन पितृ पक्ष को आरंभ हुए चार दिन हो चले हैं। कुछ परिवारों में प्रतिदिन तो कुछ में तिथि विशेष पर पितृोंं को तर्पण और भोजन के ग्रास निकालने की प्रथा प्रचलित है। विशेषकर तिथि विशेष पर ब्राहमण को भोजन से पहले पांच ग्रास निकाले जाते हैं। पांच ग्रासों में से सबसे बेकदरी हो रही है तो कागग्रास की। श्राद्ध का अनुष्‍ठान पूरा करने के लिए लोग छतों पर इंतजार करते रह जाते हैं लेकिन पांच ग्रासों में से एक मुख्‍य कागग्रास रखा ही रह जाता है। थक हार लोग अन्‍य पशु पक्षियों को कागग्रास समर्पित कर वापस अपने काम में लग जाते हैं। इसका मुख्‍य कारण है काग यानि कौवों की विलुप्‍ति।

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पर्यावरण के बिगड़ते संतुलन की मार कौवोंं पर भी भारी पड़ रही है। स्थिति ऐसी हो चुकी है कि हर वर्ष श्राद्धपक्ष में अनुष्‍ठान पूरा करने के लिए कौवों की सघन तलाश लोगों को करनी पड़ती है। यही हाल इस वर्ष भी देखने को मिल रहा है। शहर में खुले स्‍थान, पार्क, यमुना किनारा, दयालबाग आदि जगहों को छोड़ दें तो लोगों को छतों पर कौवों का अंतहीन सा इंतजार करना पड़ रहा है। इंतजार से थक हार कर कौवे का भाग लोग बंदर, गाय और अन्‍य पक्षियों को देकर अनुष्‍ठान की इतिश्री कर रहे हैं। कौवे जितना धार्मिक महत्‍व के लिए आवश्‍यक हैं उतने ही महत्‍वपूर्व पर्यावरण के लिए भी हैं।

भोजन की कमी ने विलुप्‍त कर दिए काग

कुछ वर्ष पहले गांवों से लेकर शहर तक कौवों के झुंड के झुंड दिखाई देते थे लेकिन अब ये धीरे धीरे विलुप्‍त होते जा रहे हैं। बायोडायवर्सिटी एंड क्‍लाइमेट चेंज पर पुस्‍तक लिख चुके स्‍कूल ऑफ लाइफ सांससेज के पूर्व डीन डॉ एसवीएस चौहान के अनुसार कौवों की प्रजाति वातावरण में प्रदूषण की अधिकता और भोजन की कमी के कारण तेजी से घट रही है। वातावरण में जैसे जैसे प्रदूषण बढ़ रहा है गौरेया और बयां की तरह कौवों की प्रजातियां भी विलुप्‍त हो रही हैं। इसमें से काला कौवा तो बहुत ही कम रह गया है। आज जहां दाना पानी मिलता है वहीं ये विलुप्‍त प्रजातियां दिखाई देती हैं। सीमेंटिड एयरटाइट मकानों के जमाने में आज लोगोंं के पास अपनी छतों पर जाने की फुर्सत ही कहां है। पक्षियों की बची कुछ प्रजातियां चंद जागरुक लोगों की वजह से हैं। आज भी यमुना किनारा, पोइया घाट अन्‍य पार्कों में लोग पक्षियों को दाना, सेव आदि डालते हैं। ऐसी स्‍थानों पर ही पक्षियों के झुंड देखे जा सकते हैं। इसके आलावा हाइटेंशन लाइन और मोबाइल टावर भी इन‍की विलुप्ति के कारण हैं। टावर्स से निकलने वाला रेडिएशन और घर्षण बहुत अधिक होता है। इनसे संपर्क में आने पर पक्षी मर जाते हैं। इनकी किरणों से पक्षियों की प्रजनन क्षमता पर भी बुरा असर पड़ रहा है।

श्राद्ध में इसलिए है महत्‍वपूर्ण काग

धर्म वैज्ञानिक पंडित वैभव जोशी के अनुसार पुराणों में वर्णित हैं कि व्‍यक्ति मृत्‍यु के बाद सबसे पहले कौवे का जन्‍म ही लेता है। कौवों को खाना खिलाने से पितृों का खाना मिलता है। इसके अलावा पक्षियों को भोजन खिलाने से ग्रह दोष भी मिटता है। शास्‍त्रों में लिखा पक्षियों के महत्‍व को देखते हुए लिखा है कि हर व्‍यक्ति को अपने भोजन में से पशु पक्षियों के लिए कुछ भाग अवश्‍य निकालना चाहिए।

पितृ दूत हैं काग

ज्‍योतिषाचार्य पवन मेहरोत्रा बताते हैं कि शास्त्रों में उल्लेख है कि कौवा एक मात्र ऐसा पक्षी है जो पितृ-दूत कहलाता है। यदि दिवंगत परिजनों के लिए बनाए गए भोजन को यह पक्षी चख ले, तो पितृ तृप्त हो जाते हैं। कौवा सूरज निकलते ही घर की मुंडेर पर बैठकर यदि वह कांव- कांव की आवाज निकाल दे, तो घर शुद्ध हो जाता है। श्राद्ध के दिनों में इस पक्षी का महत्व बढ़ जाता है। यदि श्राद्ध के सोलह दिनों में यह घर की छत का मेहमान बन जाए, तो इसे पितरों का प्रतीक और दिवंगत अतिथि स्वरुप माना गया है। गरुण पुराण में भी कौवों का महत्‍व बताया गया है। 

इसीलिए श्राद्ध पक्ष में पितरों को प्रसन्न करने के लिए श्रद्धा से पकवान बनाकर कौओं को भोजन कराते हैं। हिंदू धर्मशास्त्रों ने कौए को देवपुत्र माना है और यही वजह है कि श्राद्ध का भोजन कौओं को अर्पित करते हैं।

काग की खास बात

कौवों का दिमाग लगभग चिंपैंजी और मनुष्‍य की तरह की काम करता है। कौवे इतने चतुर होते हैं कि आदमी का चेहरा देखकर ही जान लेने हैं कि कौन खुराफती है। एक शोध में पाया गया कि कौवे खुद के लिए खतरा पैदा करने वाले चेहरे को पांच साल तक याद रख सकते हैं।


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