Move to Jagran APP

88 साल की 'बेबी' आज भी 'दुल्हन', पढिय़े अनोखे प्यार की अनोखी दास्तान

बेलनगंज के भूषण नारंग फैमिली की शान है 1931 मॉडल की बेबी आस्टीन कार। लाड़ली कटरा के ब्रजेंद्र स्वरूप के लिए अभी भी जान से प्यारी है 52 साल की बुलेट।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Tue, 08 Jan 2019 06:01 PM (IST)Updated: Tue, 08 Jan 2019 06:01 PM (IST)
88 साल की 'बेबी' आज भी 'दुल्हन', पढिय़े अनोखे प्यार की अनोखी दास्तान
88 साल की 'बेबी' आज भी 'दुल्हन', पढिय़े अनोखे प्यार की अनोखी दास्तान

आगरा, विनीत मिश्र। करीब 88 साल पहले बड़े-बड़े घरानों की शान के लिए लॉन्च की गई बेबी ऑस्टन कार बेलनगंज की नांरग फैमिली के लिए आज भी 'दुल्कन' से कम नहीं है। वर्ष 1941 में खरीदी ये कार इस फैमिली की जान है। इसका निरंतर मेंटीनेंस ही है जो इतने साल बाद भी पूरी तरह से फिट है। लाल रंग की ये कार जब सड़क पर चलती है तो देखने वाले दंग रह जाते हैं।

loksabha election banner

बेलनगंज निवासी भूषण नारंग का बेयङ्क्षरग का कारोबार था। वर्ष 1931 में जब बेबी आस्टीन कार लॉन्च हुई तभी से वो इस कार के दीवाने थे। उनके बेटे बबल्स बताते हैं कि पापा बताया करते थे कि वर्ष 1944 में उन्हें ये कार खरीदने का मौका मिला। किसी परिचित से ये कार खरीदी तो पूरे घर में खुशियां मनाई गई थी। उस जमाने में भी ये कार सोशल स्टेट्स मानी जाती थी। बकौल बबल्स, पापा इस कार की मेंटीनेंस का पूरा ध्यान रखते थे। कार पर धूल का एक कण भी नहीं आने देते थे। कार में जरा सी खराबी होती, तो उसे तुरंत ठीक कराते और फिर चलाते। बबल्स नारंग बताते हैं कि जब उनकी कार सड़क पर निकलती, तो लोग एक टक देखते ही रह जाते थे। कार का तकनीकी सिस्टम ऐसा है कि स्थानीय स्तर के मैकेनिक मामूली खराबी भी बड़ी मुश्किल से दूर कर पाते हैं। एक बार कार खराब हुई, तो उसे राजकोट भेजकर सही कराया गया।

चाबी के बिना हाथ के हैंडल से स्टार्ट होने वाली ये कार कई विटेंज रैली में भी शामिल हो चुकी है। बबल्स बताते हैं कि दो साल पहले पिता का निधन हो गया। पिता की यादगार इस कार को संवारने की जिम्मेदारी अब हमारी है।

जानदार बुलेट, शानदार सवार

शहर के लाडली कटरा निवासी ब्रजेंद्र स्वरूप कुलश्रेष्ठ के पास 52 साल पुरानी बुलेट है। वे बताते हैं कि पिता से जिद कर 4 अप्रैल 1966 को बुलेट खरीद ली। उस वक्त उनकी उम्र करीब 20 साल थी। आगरा कालेज से बीएससी कर रहे थे। वे उस समय बुलेट लेकर कॉलेज जाने वाले अकेले छात्र थे। जब उनकी बुलेट कॉलेज जाती, तो साथी घेरकर खड़े हो जाते। साथियों में पीछे बैठकर घूमने की होड़ मचती। वह बताते हैं कि उस वक्त आगरा में केवल चार बुलेट मोटरसाइकिल ही थीं। समय बीतता रहा, बाजार में नए वाहन आ गए, लेकिन ब्रजेंद्र का इस बुलेट से प्यार कम न हुुआ। बुलेट खराब होती, फिर उसे सही कराकर सड़क पर दौड़ाते। दिल्ली गेट पर उनका मेडिकल स्टोर है। घर से मेडिकल स्टोर आज भी इसी बुलेट से ही जाते हैं। वह कहते हैं कि कभी किसी को बुलेट चलाने को नहीं दी, खुद ही उसकी सफाई से लेकर चलाने का काम करते हैं। जब बेटे चोरी से ले जाकर उससे सीखते थे, तो बहुत नाराज होते। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.