मातृशक्ति के हौसले से आई श्वेतक्राति
आगरा: मैनपुरी के गांव की रामा देवी ने अपने हौसले और मेहनत के चलते गांव में लाई श्वेतक्रांति।
अनुज पाडेय आगरा: लहरों से डर-डरकर नौका पार नहीं होती कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। कवि हरिवंश राय बच्चन की इसी कविता की लाइनों ने शायद रामा देवी को हौसला दिया था। जो उन्होंने परिवार की गाड़ी खींचने के लिए एक ऐसी कोशिश की जो आज सभी के लिए एक मिसाल बन गई है। वर्तमान समय में रामा देवी का नाम जिले के अच्छे पशुपालकों में शुमार है। मैनपुरी जिले के कुसमरा निवासी रामा देवी (50) ने पाच साल पहले अपने दम पर एक बड़ी डेयरी के संचालन का सपना देखा था, लेकिन उनके पास न तो पशु खरीदने के लिए रुपये थे और न ही आमदनी का कोई खास स्त्रोत। पति अमर सिंह राठौर सास की बीमारी से पीड़ित थे। ऐसे में घर का भार रामा देवी पर ही था। खेती-बाड़ी से जो कुछ मिलता उससे घर चलाना भी मुश्किल होता था। इसी बीच रामा देवी ने हाड़तोड़ मेहनत करके 20 हजार रुपये बचाए। इन रुपयों से एक गाय खरीदी। जिसका दूध बेचकर उन्होंने रुपये जमा करना शुरू कर दिया। छह महीने में ही उन्होंने दूसरी गाय खरीद ली। बस फिर क्या था दो गायों के बाद रामा देवी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। दो से चार, चार से आठ और इसी तरह आज उनके पास 50 गायें हैं। जिनसे प्रतिदिन दो कुंतल दूध का उत्पादन हो रहा है। जिससे रामा देवी ने न केवल परिवार का खर्च चलाया बल्कि अपनी चार बेटियों की शादी भी की। तीन माह पहले उनके पति की मौत हो गई। जिसके बाद अब रामा देवी ही डेयरी का काम देख रही हैं। आसपास की महिलाओं के लिए भी वे एक मिसाल हैं। पशुपालन विभाग द्वारा भी उन्हें सम्मानित किया जा चुका है।
हाथोंहाथ हो जाती है दूध की बिक्री
रामा देवी बताती हैं कि उनके दूध की बिक्री हाथोंहाथ हो जाती है। क्योंकि वे शुद्ध दूध बेचती हैं। वे बताती हैं कि आज डेयरी एक ऐसा कारोबार है, जिसमें आसानी से सफलता प्राप्त की जा सकती है। क्योंकि खपत के सापेक्ष दूध का उत्पादन लगातार घटता जा रहा है। ऐसे में अगर आप दूध का उत्पादन करते हैं तो ये आपके लिए बेहतर होगा। जरूरी नहीं है कि डेयरी को कई जानवरों से भी शुरू किया जाए, अगर इच्छा शक्ति हो तो एक जानवर से भी इसकी शुरुआत की जा सकती है।
डेयरी से पाच लाख तक की होती है आमदनी
रामा देवी बताती हैं कि डेयरी से उन्हें सालाना चार से पाच लाख रुपये की आमदनी होती है। क्योंकि पशुओं की देखरेख में खर्च भी काफी आता है। हा एक बात का जरूर ध्यान रखना पड़ता है कि पशुओं का टीकाकरण समय पर होना चाहिए। अगर बीमारी फैलती है तो दूध का उत्पादन घट जाता है।