Mini Tajmahal: कोरोना ने काटे 'ताज' बनाने वालों के हाथ, अब नहीं बन रहे 'मिनी ताज'
डेढ़ वर्ष से खाली बैठे हैं ताजमहल का माडल बनाने वाले शिल्पी। विदेशी पर्यटकों के नहीं आने की वजह से नहीं मिल रहा है काम। आगरा आने वाले विदेशी पर्यटक अपने साथ ले जाते थे मिनी ताज। साथ ही यहां होने वाली कांफ्रेंस में भी दिया जाता था उपहार स्वरूप।
आगरा, निर्लोष कुमार। मुगल शहंशाह शाहजहां ने तो ताजमहल की तामीर कराने वाले कारीगरों के हाथ नहीं काटे थे, लेकिन कोरोना महामारी ने ताजमहल के माडल बनाने वाले शिल्पियों के हाथ जरूर काट दिए हैं। डेढ़ वर्ष से वो खाली बैठे हैं और उनके पास कोई काम नहीं है। विदेशी पर्यटकों के नहीं आने की वजह से हैंडीक्राफ्ट्स आइटम की बिक्री कम होने से उन्हें काम नहीं मिल पा रहा है, जिससे उनके समक्ष जीविकोपार्जन का संकट गहराता जा रहा है।
आगरा आने वाले भारतीय और विदेशी पर्यटक यहां से यादगार के रूप में मार्बल हैंडीक्राफ्ट्स के आइटम ले जाना पसंद करते हैं। इन्हें वो अपने मित्रों व परिचितों को उपहार के रूप में भी देते हैं। मार्बल हैंडीक्राफ्ट्स की बात करें तो यह काम दो हिस्सों में बंटा हुआ है, एक पच्चीकारी और दूसरा ताजमहल के माडल बनाने का। पच्चीकारी वर्क के हैंडीक्राफ्ट्स आइटम के साथ ताजमहल के माडल भी कोरोना काल से पूर्व खूब बिकते थे। तीन इंच से लेकर 24 इंच तक के ताजमहल के माडल पर्यटक खरीदते रहे हैं। इसके साथ ही आगरा में दो वर्ष पहले तक तमाम कांफ्रेंस हुआ करती थीं। इनमें भाग लेने आने वाले प्रतिनिधियों को उपहार स्वरूप ताजमहल का मॉडल दिया जाता था। कोरोना वायरस संक्रमण के चलते कांफ्रेंस भी अब वेबिनार के रूप में सिमटकर रह गई हैं।
कोरोना काल में ताजमहल के माडल बनाने और पच्चीकारी का काम बुरी तरह प्रभावित हुआ है। मार्च, 2020 से टूरिस्ट वीजा सर्विस और इंटरनेशनल फ्लाइट के अभाव में विदेशी पर्यटक यहां नहीं आ पा रहे हैं। इससे हैडीक्राफ्ट्स आइटम की बिक्री बुरी तरह प्रभावित हुई है। ताजमहल के माडल भी नहीं बिक रहे हैं। जिसके चलते एंपोरियम, शोरूम व दुकानों में पुराना माल भी बचा हुआ है। इसका सबसे अधिक असर मजदूरी पर ताजमहल के माडल बनाने वाले कारीगरों पर पड़ा है। उनके लिए गुजर-बसर करना दिन-प्रतिदिन मुश्किल होता जा रहा है।
फैक्ट फाइल
-ताजमहल के माडल बनाने का प्रमुख केंद्र गोकुलपुरा है।
-करीब 150 कारखाने हैं। घरों में भी माडल बनते हैं।
-3 से 24 इंच तक के माडल सामान्यत: बनाए जाते हैं।
-कोरोना काल से पूर्व करीब दो हजार माडल प्रतिदिन बिकते थे।
-हैंडीक्राफ्ट्स के काम से करीब 35 हजार शिल्पी जुड़े हैं।
40 वर्षों से ताजमहल के माडल बना रहा था। कभी ऐसे दिन नहीं देखे। कोरोना वायरस के संक्रमण काल में पिछले डेढ़ वर्ष से काेेई काम नहीं है। विदेशी पर्यटकों का आना शुरू होने के बाद ही काम शुरू हो सकेगा। सरकार को इस बारे में सोचना चाहिए।
-देवेंद्र कुमार वर्मा, गोकुलपुरा
करीब 30 वर्ष से ताजमहल के माडल बना रहा था। डेढ़ वर्ष से कोई काम नहीं है। कोई और काम आता नहीं है, जो दूसरा काम कर सकें। लड़का घर का खर्चा चला रहा है। जब तक विदेशी पर्यटकों का आना शुरू नहीं होगा, तब तक काम की उम्मीद कम है।
-संजय यादव, गोकुलपुरा