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आठ सालों तक चली जंग, वाणिज्य कर अधिकरण न्यायालय ने दिया विश्वविद्यालय को आठ करोड़ रुपये वापस करने का आदेश

Ambedkar University Agra 2010-11 में वाणिज्य कर विभाग ने फार्म बिक्री के डा बीआर आंबेडकर विश्वविद्यालय से वसूले थे आठ करोड़ रुपये। खाते को किया गया था कुर्क तत्कालीन कुलपति प्रो.डीएन जौहर ने मामले का लिया था संज्ञान।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Fri, 11 Dec 2020 03:49 PM (IST)Updated: Fri, 11 Dec 2020 03:49 PM (IST)
आठ सालों तक चली जंग, वाणिज्य कर अधिकरण न्यायालय ने दिया विश्वविद्यालय को आठ करोड़ रुपये वापस करने का आदेश
2010-11 में वाणिज्य कर विभाग ने फार्म बिक्री के डा बीआर आंबेडकर विश्वविद्यालय से वसूले थे आठ करोड़ रुपये।

आगरा, जागरण संवाददाता। डा. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय की वाणिज्य कर अधिकरण न्यायालय में आठ साल तक चली जंग के बाद सुखद फैसला हुआ। 2010-11 में वाणिज्य कर विभाग द्वारा फार्म बिक्री पर विश्वविद्यालय से वसूले गए लगभग आठ करोड़ रुपये वापसी के आदेश पारित हो चुके हैं। इस खबर से विश्वविद्यालय के सभी अधिकारी काफी खुश हैं।

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सत्र 2010-11 में विश्वविद्यालय द्वारा तीन लाख प्रवेश फार्म की बिक्री की गई थी। इस पर उत्तर प्रदेश मूल्य संबर्धित कर अधिनियम की धारा 28 के तहत तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर डा. भारती योगेश ने इलाहाबाद बैंक में विश्वविद्यालय के खाते को कुर्क करते हुए लगभग साढ़े आठ करोड़ रुपये वसूले थे।उस समय के तत्कालीन कुलपति प्रो. केएन त्रिपाठी व वित्ताधिकारी रामसागर पांडेय की तरफ से कोई कार्यवाही नहीं की गई। प्रो. केएन त्रिपाठी के जाने के बाद प्रो. डीएन जौहर ने कुलपति का कार्यभार संभाला। उनके संज्ञान में यह मामला आया तो उन्होंने विश्वविद्यालय के अधिवक्ता डा. अरुण कुमार दीक्षित को पैसा वापस लाने की जिम्मेदारी सौंपी। अधिवक्ता डा. दीक्षित ने वाणिज्य कर अधिकरण न्यायालय में 2012 में सेकेंड अपील दाखिल की। वहां से केस की सुनवाई डिप्टी कमिश्नर वाणिज्य कर को करने के लिए आदेश हुए। सुनवाई के दौरान डा. दीक्षित ने दलील दी कि विश्वविद्यालय को डीलर नहीं माना जा सकता। आठ करोड़ रुपये गलत लिए गए हैं।इसे लेकर उन्होंने सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के कई निर्णय दाखिल गए। इस मामले की बुधवार को हुई सुनवाई में डिप्टी कमिश्नर वाणिज्य कर खंड 20 ने विश्वविद्यालय को पूरा पैसा ब्याज सहित वापस देने का आदेश पारित किया। इस पूरे मामले पर कुलपति प्रो. अशोक मित्तल ने अधिवक्ता डा. दीक्षित को बधाई दी। कुलपति का कहना है कि आठ सालों की जंग के बाद यह महत्वपूर्ण फैसला विश्वविद्यालय के हक में हुआ है। 


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