ताजमहल के बंद होने का ऐसा सदुपयोग, गुबंद की 372 वर्ष में पहली बार हो रही सफाई
कोरोना के कारण बंद ताजमहल में एएसआइ ने शुरू किया काम। सितम्बर के अंत तक गुंबद को मड पैक कर निखारा जाएगा।
आगरा, निर्लोष कुमार। ताजमहल बनने के 372 वर्षों में पहली बार उसके गुंबद की सफाई की जाएगी। मडपैक तकनीक से इसे साफ करने का काम भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) की रसायन शाखा ने शुरू कर दी है। सितंबर के अंत तक इस काम को पूरा कर लिया जाएगा।
ताजमहल संगमरमर से बना है। पत्थर भी सलामत रहे और सफाई भी हो जाए इसकी सबसे अच्छी विधि मडपैक है। इसमें मुल्तानी मिïट्टी का लैप किया जाता है। लैप पत्थर पर जमा गंदगी को सोख लेता है। लैप के सूखने पर उसे धो दिया जाता है। कोरोना वायरस के चलते ताजमहल 31 मार्च तक के लिए बंद है। इधर, पर्यटन सीजन भी खत्म हो गया है। इस समय को विभाग सफाई के लिए माकूल मान रहा है। शुक्रवार को गुबंद पर पाड़ बांधने का काम शुरू कर दिया गया है। इसके लिए लोहे के पाइप इस्तेमाल किए जा रहे हैं। पूरे गुम्बद पर नीचे से ऊपर तक पाड़ बांधी जाएगी। अभी सामने की तरफ से इसकी शुरुआत की गई है। आगरा में पर्यटन सीजन अक्टूबर से शुरू होता है। अगर कोरोना वायरस के चलते कोई व्यवधान नहीं आता है तो गुंबद पर मड पैक का काम सितम्बर के अंत तक कर लिया जाएगा। इस काम पर करीब 30 लाख रुपये व्यय होंगे।
ताजमहल पर 2015 में हुआ था मडपैक
ताजमहल का निर्माण शहंशाह शाहजहां ने वर्ष 1632-1648 के बीच कराया था। वर्ष 2015 में गुंबद को छोड़कर पूरे ताजमहल पर मडपैक किया गया था। गुंबद पर मडपैक से पहले छत की धारण क्षमता (कैरिंग कैपेसिटी) को परखना जरूरी थी। एएसआइ की इंजीनियरिंग शाखा ने इसका अध्ययन किया। उसने अपनी रिपोर्ट में सफाई के लिए जरूरी पाड़ बांधने के लिए एल्यूमीनियम के पाइप का इस्तेमाल करने का सुझाव दिया था। एल्यूमीनियम की कम मजबूती के कारण अब लोहे के पाइप ही इस्तेमाल किए जा रहे हैं।
मडपैक की राह में बड़ी चुनौती
ताज का गुंबद मकबरे की छत पर बने 11.45 मीटर ऊंचे ड्रमनुमा ढांचे पर आधारित है। गुंबद 22.86 मीटर ऊंचा है। इसके ऊपर 9.89 मीटर ऊंची फिनियल (कलश) है। इतनी ऊंचाई पर हवा का दबाव मडपैक ट्रीटमेंट में बाधा बनेगा। मई-जून में अत्यधिक तापमान भी बाधा खड़ी करेगा।
1941-44 में हुआ था गुम्बद का संरक्षण
ताज की छत और गुंबद पर वर्ष 1941-44 के बीच संरक्षण का काम किया गया था। तब गुंबद के चटके पत्थरों को बदला गया था। इस पर 92 हजार रुपये खर्च हुए थे। वर्ष 1975-76 में भी कुछ काम किया गया था।