International Day of Older Persons: कानून के बाद भी हालात की बेड़ियों में जकड़े बुजुर्ग, दौलत नहीं प्यार के हैं मोहताज
International Day of Older Persons अंतरराष्ट्रीय बुजुर्ग दिवस पर विशेष। अपनों के बावजूद गैरों के बीच रहने को मजबूर वृद्धजन। कांउसिलिंग के बाद भी बुजुर्गों को घर ले जाने को तैयार नहीं होते बच्चे। कानून ने दिया है अधिकार पर नहीं करते इस्तेमाल।
आगरा, अली अब्बास। रेलवे से सेवानिवृत्त होने से पहले पति ने पत्नी के साथ मिलकर तमाम सपने बुने थे। बच्चों के साथ एक छत के नीचे नाती-पाेते खिलाने का खवाब देखा था। तीन साल पहले सेवानिव़ृत्ति के कुछ समय बाद ही उनका यह सपना टूट गया। बेटे और बहू ने परेशान करना शुरू कर दिया। इस पर दंपती ने नाती को गोद ले लिया, लेकिन उसका भी ध्यान उनकी देखभाल से ज्यादा पेेंशन पर रहता था। बच्चों की बेरुखी से दंपती ने आश्रम को बेहतर समझा। एक महीने से दोनाें यहां आकर रह रहे हैं।
केस दो: शमसाबाद रोड स्थित एक कॉलोनी में रहने वाली 65 वर्षीय बुजुर्ग महिला पति की मौत के बाद बेटे-बहू के साथ रहती हैं। बेटे-बहू से विवाद के बाद वह वृद्ध आश्रम में रहने चली गई थीं। व्यापारी बेटा समाज में बदनामी के डर से मां को दो साल पहले काउंसिलिंग के बाद उन्हें अपने साथ ले आया। मगर, परिवार में रहते हुए भी वह अकेली हैं। बहू दिन भर ताने मारती है, नाती-नातिन को भी दादी के पास नहीं फटकने देती है। बीमार होने पर कोई दवा भी समय पर नहीं देती है। महिला परिवार के बीच भी खुद को अकेला पाती हैं।
यह सिर्फ दो बुजुर्ग की कहानी नहीं है। ताजनगरी के कई सौ बुजुर्गों की व्यथा है। जो अपने हक में कानून बनने के बाद भी हालात की बेड़ियों में जकड़े हुए हैं। बच्चों ने उनकी देखभाल करने की जगह रिश्तों को स्वार्थ की खूंटी पर टांग दिया। खुद को पत्नी और बच्चों तक सीमित कर लिया।बुजुर्ग माता-पिता को बोझ मानकर उनकी उपेक्षा करने लगे। इससे माता-पिता घर में रहने के बावजूद अकेलेपन को अभिशप्त हैं।
ये है कानून
भारत में 2007 में माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण विधेयक संसद में पारित किया गया। विधेयक में माता-पिता के भरण-पोषण, वृद्ध अाश्रमों की स्थापना, चिकित्सा सुविधाओं की व्यवस्थाओं, वरिष्ठ नागरिकों के जीवन एवं संपत्ति की सुरक्षा का प्रावधान किया गया था।
कानून की मुख्य विशेषताएं
- वर्ष 2019 में बिल में संशोधन किया गया। माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण और कल्याण (संशोधन) बिल, 2019 में बच्चों की परिभाषा में साैतेले बच्चे दत्तक (जिन्हें गोद लिया गया है ।) बच्चे, बहू-दामाद और नाबालिग बच्चों के कानूनी अभिभावकों को भी शामिल किया गया है।
- एक्ट के अंतर्गत भरण-पोषण ट्रिब्यूनल बच्चों को इस बात के निर्देश दे सकता है कि वे अपने माता-पिता को अधिकतम दस हजार रुपये महीने भरण-पोषण की राशि दें। बिल इस राशि की अधिकतम सीमा को हटाता है।
-एक्ट में वरिष्ठ नागरिकों के लिए यह प्रावधान है कि वे भरण-पोषण ट्रिब्यूनल के फैसलों के खिलाफ अपील कर सकते हैं। बिल बच्चों और संबंधियों को ट्रिब्यूनल के फैसलों के खिलाफ अपील करने की अनुमति देता है।
-एक्ट में यह प्रावधान है कि अगर बच्चे या संबंधी भरण-पोषण के आदेश का पालन नहीं करते हैं तो ट्रिब्यूनल देय राशि की वसूली के लिए वारंट जारी कर सकता है। यह जुर्माना न भरने पर एक महीने तक या जब तक भुगतान नहीं किया जाता तब तक की सजा दे सकता है।
महत्वपूर्ण तथ्य
- संयुक्त राष्ट्र ने दुनिया में बुजुर्गों के प्रति हो रहे अन्याय को समाप्त करने के लिए और लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए 14 दिसंबर को 1990 को अंतरराष्ट्रीय बुजुर्ग दिवस मनाने का निर्णय किया। इससे कि उनको समाज में सही स्थान दिलाया जा सके।
- पहली बार अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस एक अक्टूृबर 1991 को मनाया गया था। इसका उद्देश्य अपने बुजुर्ग नागरिकों का सम्मान करना, उनके बारे में चिंतन करना और उनकी मूलभूत सुविधाओं का ध्यान रखना है।
- वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की कुल जनसंख्या में 60 साल से अधिक आयु के नागरिकों का हिस्सा 8.6 फीसद है।
- वर्ष 2050 तक दर कुल जनसंख्या का 21 फीसद होने का अनुमान है।
- वृद्धजन सम्मान समिति, अंतरराष्ट्रीय के अनुसार आगरा जिले में करीब चार लाख बुजुर्ग हैं।
- बुजुर्गों में 60 फीसद महिलाएं और 40 फीसद पुरुष हैं।
- डेढ़ लाख बुजुर्ग फीसद अकेले रहते हैं।
कानून तो बन गया, अमल नहीं हुआ
वृद्धजन सम्मान समिति अंतरराष्ट्रीय के सह संस्थापक डॉ. गिरीशचंद गुप्ता कहते हें माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों की सुरक्षा के लिए कानून ताे बन गया, लेकिन उस पर अमल नहीं हुआ। इससे बच्चे बुजुर्गों के प्रति अपनी जिम्मेदारी नहीं समझ रहे हैं। कानून पर सख्ती से अमल होना चाहिए। डॉ. गुप्ता कहते हैं सरकार को एंटी रोमियाे स्क्वाड की तरह ही बुजुर्ग सेफ्टी स्क्वाड बनानी चाहिए।