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अपने बच्‍चे पर रखें नजर कहीं इस भंवर में डूब न जाए बचपन

इंटरनेट गेम में उलझा बचपन। ऑनलाइन गेम खेलने की लगी लत। मानसिक व शारीरिक रूप से हो रहे बीमार।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Mon, 29 Apr 2019 11:16 AM (IST)Updated: Mon, 29 Apr 2019 11:16 AM (IST)
अपने बच्‍चे पर रखें नजर कहीं इस भंवर में डूब न जाए बचपन
अपने बच्‍चे पर रखें नजर कहीं इस भंवर में डूब न जाए बचपन

आगरा, जागरण संवाददाता। कुछ दिनों पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बोर्ड परीक्षा में बैठने वाले बच्चों के साथ मन की बात की थी। इसमें एक अभिभावक ने अपने बच्चे को लेकर प्रश्न किया था तो उन्होंने पूछा कि पबजी वाला बच्चा तो नहीं है। यह केवल एक बच्चे की कहानी नहीं बल्कि आज मोबाइल रखने वाले अधिकांश बच्चे और युवा इंटरनेट के जंजाल में फंस गए हैं। कोई पबजी खेल रहा है तो कोई एप से अपने वीडियो बना रहा है। कोई आनलाइन वीडियो देख रहा है तो कोई पोर्न। अपने भीतर जानकारियों का समंदर समेटे इंटरनेट की जिस दुनिया को देश का भविष्य कहे जाने वाले बच्चों को संवारना और निखारना था, वह उनका दुश्मन बन बैठा है। इंटरनेट के आदी बच्चे मानसिक व शारीरिक रूप से बीमार हो रहे हैं।

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केस-1 रामबाग के अविनाश का पांच वर्षीय बेटा दिनभर मोबाइल पर गेम खेलता है। मोबाइल लेते ही रोने लगता है। जब तक मोबाइल हाथ में न हो सोता नहीं। घर वाले परेशान हैं।

केस-2 बीएससी के छात्र सुनीत को पबजी खेलने की लत लग गई है। उनका किसी काम में मन नहीं लगता। वह कमरे से बाहर नहीं निकलते और ज्यादातर वक्त मोबाइल पर गेम खेलते रहते हैं। घरवाले परेशान हैं।

ब्लू व्हेल पर लगानी पड़ी थी रोक

पबजी से पहले ब्लू व्हेल गेम ने बच्चों को अपने मायाजाल में फंसा लिया था। इस गेम के चलते कई बच्चों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। अंतत: गेम पर रोक लगानी पड़ी थी। इसी तरह पबजी गेम पर भी गुजरात में पाबंदी लग चुकी है।

स्कूलों में साइबर एजूकेशन की चर्चा

पिछले कुछ सालों में स्कूल और कॉलेज के बच्चे ऑनलाइन गेम्स की लत, सोशल मीडिया, पोर्न कॉन्टेंट देखने की लत, साइबर बुलिंग जैसे इंटरनेट इविल्स का शिकार हुए हैं। इसके चलते स्कूलों और कॉलेजों में साइबर एजूकेशन लागू किए जाने को लेकर चर्चा शुरू हो गई है। पिछले दिनों मद्रास हाई कोर्ट ने भी इस पर चिंता जाहिर की थी।

इंटरनेट एडिक्शन बना बीमारी

साइबर एक्सपर्ट रक्षित टंडन ने बताया कि बच्चों में साइबर एडिक्शन पिछले चार-पांच साल में ज्यादा बढ़ा है। इंटरनेट पर ऐसे-ऐसे गेम आ रहे हैं, जिनसे बच्चों में ङ्क्षहसक प्रवृत्ति बढ़ रही है। पबजी 16 प्लस गेम है, लेकिन हमारे यहां नौ-10 साल के बच्चे भी खेल रहे हैं। इसी तरह सोशल मीडिया एडिक्शन भी बहुत बढ़ रहा है। इंस्टाग्राम बच्चों में बहुत पॉपुलर है। उसमें कई बार बच्चे आपत्तिजन फोटो भी शेयर कर देते हैं। इसके अलावा पोर्नोग्राफी एडिक्शन और साइबर बुलिंग के मामले भी खूब देखने को मिल रहे हैं।

अभिभावकों के लिए सुझाव

- बच्चे को पर्सनल मोबाइल फोन न दें। यदि देना जरूरी ही है तो की-पैड वाले बेसिक फोन दें।

-बच्चे पर नजर रखें कि वह इंटरनेट या मोबाइल पर कितने घंटे बिताता है। उम्र के हिसाब से उसका स्क्रीन टाइम लिमिट करें।

- बच्चा कौन-कौन से एप्स इस्तेमाल कर रहा है, यह देखें। उसके फोन के पासवर्ड की जानकारी रखें।

- फोन पर पैरेंटल सेफ्टी कंट्रोल रखें। पॉपअप ब्लॉकर्स यूज करें। सामान्य यूट्यूब या गूगल के बजाय बच्चों के लिए सुरक्षित यूट्यूब फॉर किड और किडल ब्राउजर डाउनलोड करके दें।

- हेलिकॉप्टर पैरेंटिंग मत कीजिए। अगर हर वक्त बच्चों के सिर पर मंडराते रहेंगे तो वे आपसे चीजें छिपाएंगे।

- बच्चों का भरोसा जीतें, ताकि वह अपनी दिक्कतें आपसे शेयर करें। अगर वह बातें छिपा रहा है तो एक्सपर्ट की मदद लें।

- मां-बाप अक्सर टेक्नोलॉजी के मामले में बच्चों से कम जानते हैं। ऐसे में खुद भी नई टेक्नोलॉजी सीखते रहें।

विशेषज्ञ की राय

पिछले कुछ महीने में इंटरनेट इविल्स के मामले बढ़े हैं। अभिभावक पहले नोटिस नहीं करते और समस्या बढऩे पर चिकित्सक के पास आते हैं। अभिभावकों को बच्चों पर नजर रखनी चाहिए। ऐसे बच्चे भावनात्मक रूप से कमजोर और रोबोट की तरह हो जाते हैं।

डा. विशाल सिन्हा, मनोचिकित्सक 


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