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Holi Special: गोवर्धन में जीवंत होंगे इतिहास के वो स्वर्णिम लम्हे

22 को मुखराई में चरकुला तो गोवर्धन में हरदेवजी के प्राकट्योत्सव में रहेगी होली की धूम।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Wed, 20 Mar 2019 03:56 PM (IST)Updated: Wed, 20 Mar 2019 07:55 PM (IST)
Holi Special: गोवर्धन में जीवंत होंगे इतिहास के वो स्वर्णिम लम्हे
Holi Special: गोवर्धन में जीवंत होंगे इतिहास के वो स्वर्णिम लम्हे

आगरा, जेएनएन। श्रद्धा और विश्वास के दम पर चलती परंपरा इतिहास के दावों की मोहताज नहीं होती। ब्रजभूमि इतिहास के स्वर्णिम लम्हों का संग्रह है। चरकुला नृत्य ब्रज संस्कृति की अनूठी कला में शुमार है। 108 जलते दीपों को सिर पर रखकर नाचने की कलात्मक परंपरा गोवर्धन के समीप राधारानी की ननिहाल मुखराई से जुडी है, उनकी नानी के नाम मुखरा देवी से इस गांव का नाम पड़ा है।

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मान्यता के अनुसार पिता वृषभानु और माता कीरत के घर जन्मीं राधारानी की खुशी में मुखरा देवी ने समीप रखे रथ के पहिए पर 108 दीप रखे और प्रज्वलित कर नाचने लगीं। इसी नृत्य को चरकुला नृत्य का कहा जाता है। ग्रामीण श्रीकांत के अनुसार 1845 में गांव के प्यारेलाल बाबा ने लकड़ी का घेरा, लोहे की थाल एवं लोहे की पत्ती और मिट्टी के 108 दीपक रख पांच मंजिला चरकुला बनवाया था। इस नृत्य कला से इस गांव को रोजगार मिला। तमाम लोग इस कला के माध्यम से विदेश तक की सैर कर आए हैं। यह कला शुक्रवार को एक बार फिर मुखराई में जीवंत होगी। वहीं शुक्रवार को ही हरदेवजी महाराज का प्राकट्योत्सव मनाया जाएगा। हरदेवजी का डोला बैंड बाजों के साथ बिछुआ कुंड तक जाएगा तथा विभिन्न आयोजनों के बीच प्रभु फूल बंगला में विराज दर्शन देंगे। यादव कुल पुरोहित गर्गाचार्य ने गर्ग संहिता लिखी है। इसमें उल्लेख है कि हरदेव मंदिर वही जगह है जहां श्रीकृष्ण ने इंद्रदेव का मान मर्दन करने के लिए गोवर्धन धारण किया था।

गर्गाचार्य कृष्ण के समकालीन हैं, इसलिए जानकार इसे सबसे महत्वपूर्ण तथ्य मानते हैं। इतिहास के पन्नों में दर्ज है कि मंदिर का निर्माण मध्यकाल में मानसिंह के पिता राजा भगवान सिंह ने कराया था। मंदिर निर्माण के लिए मुगल बादशाह अकबर ने राजा भगवान सिंह को शाही खदान के लाल पत्थरों के उपयोग की इजाजत दी। इतिहास में यह भी लिखा है कि राजा भगवान सिंह ने अकबर को एक युद्ध में बचाया था। इसके बाद सम्राट अकबर ने भगवान सिंह को मुलतान का गवर्नर नियुक्त कर अपना विश्वासपात्र बना लिया। सेवायत केशवाचार्य गोस्वामी ने बताया कि मंदिर के संचालन को राजाज्ञा के तहत पर्याप्त जमीन मिली थीं। इस मंदिर के संरक्षण के लिए 1871 में तत्कालीन कलेक्टर एफएस ग्राउज ने इसे राष्ट्रीय स्मारक की श्रेणी में बताया था। 


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