Gandhi Jyanti 2019: समय के साथ बदल गया बापू का चरखा, ये आए बदलाव Agra News
गांधी का एक तकली का सुदर्शन चरखा अब आठ तकली के एनएमसी (न्यू मॉडल चरखा) में बदल गया है।
आगरा, गौरव भारद्वाज। अंग्रेजों के लिए हथियार बन गया साबरमती के संत का चरखा समय के साथ बदल गया है। कई तरह के चरखे प्रचलन में हैं। गांधी का एक तकली का सुदर्शन चरखा अब आठ तकली के एनएमसी (न्यू मॉडल चरखा) में बदल गया है।
गांधी चरखा
गांधी जी ढोल के आकार वाले सुदर्शन चरखे का इस्तेमाल करते थे। यह चरखा फतेहपुर सीकरी के आश्रम व ताज सिटी म्यूजियम में मौजूद है।
देसी चरखा
एक तकली वाले यह चरखे क्षेत्रीय गांधी आश्रम और मोतीगंज के आश्रम में उपलब्ध हैं। इनसे अधिक सूत कातना मुश्किल होता है।
अंबर चरखे
करीब 22 साल पहले अंबर चरखों का चलन शुरू हुआ। इनमें आठ तकलियों से सूत की कताई होती है। इनका प्रयोग प्राय: खादी के वस्त्र बनाने वाले समूह करते हैं।
एनएमसी
इनका प्रयोग बुनकर करते हैं। इनसे मोटी खादी तैयार होती है। सूत कातना आसान होता है।
खादी पर भी आधुनिकता का रंग
गांधी आश्रम के मंत्री श्री चौबे का कहना है कि खादी तैयार करने में जलवायु की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। बंगाल के वातावरण में नमी है। इसके चलते वहां काफी महीन सूत तैयार हो जाता है। इस क्षेत्र में कुछ मोटी खादी तैयार होती है। एक ही तरह के डिजाइन की शिकायत दूर करने को अब डिजाइनरों की सेवाएं ली जा रही हैं।
युवा पसंद कर रहे हैं खादी
संजय प्लेस स्थित खादी आश्रम के मैनेजर रमाकांत राय के मुताबिक युवाओं में आधी बाजू का कुर्ता और जैकेट की डिमांड बढ़ी है।