गुम हुई धायं की आवाज लेकिन अब भी जिंदा है दो सौ साल पुरानी ये परंपरा
216 साल पुराना है कोटला का फूल डोल मेला। बंदूक से फूल पर निशाना साधते थे निशानेबाज। विजेता को कंधे पर बिठाकर घूमाते थे आयोजक।
आगरा, राजीव शर्मा। डोलते फूल पर लगते थे निशाने। निशानेबाज एक आंख बंद कर दूसरी से लक्ष्य को ताड़ते थे और फिर आवाज आती थी धायं। दो सदी पुराने मेले की इस परंपरा में बदलाव होता गया। फीरोजाबाद में बस्ती बसती गई और निशानेबाज खत्म होते गए, मगर 216 साल पुराने फूल डोल मेले की परंपरा आज भी कायम है। होली के बाद तीज पर शनिवार यह मेला सजेगा, इसकी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं।
फीरोजाबाद के कोटला मुहल्ला में लगने वाला यह मेला शहर में होली के तीन से चार दिन खेले जाने की गवाही देता है। यहां हुरियारों की भीड़ जुटती थी। इन्हीं में निशानेबाजी की प्रतियोगिता होती थी। एक पेड़ पर फूल बांधकर लटका दिया जाता था। उसे बंदूक से निशाना बनाया जाता था। जो जीतता था उसे मेला के आयोजन कंधे पर बिठाकर घुमाते थे, लेकिन अब यहां घनी आबादी होने के कारण प्रशासन ने बंदूक से निशानेबाजी पर रोक लगा दी है। हालांकि मेला अब भी लगता है। फूल डोल मेला समिति के अध्यक्ष हेमंत यादव के अनुसार मेला राजाओं के जमाने से लग रहा है। 15-20 साल पहले तक निशानेबाजी होती रही है।
शिवपाल यादव करेंगे उदघाटन
मेला समिति के पदाधिकारी अनीप यादव ने बताया कि शनिवार को फूल डोल मेले का उदघाटन प्रसपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव करेंगे। मेले को भव्य रूप देने के लिए शुक्रवार को भी तैयारी चलती रही।
क्यों पड़ा फूल डोल मेला नाम
मेला किसने शुरू किया इसकी जानकारी तो नहीं है, लेकिन यह निशानेबाजी के लिए प्रसिद्ध रहा। नीम के पेड़ पर लटक रहे फूल पर निशान लगाना होता था।
श्याम सिंह यादव, पूर्व सभासद कोटला मुहल्ला
पहले यहां आसपास के कई इलाकों से चौपाईयां आती थीं, उन्हीं के बीच पेड़ पर लटके फूल को निशाना बनाने की प्रतियोगिता होती थी। इसीलिए इसका नाम फूल डोल मेला है।
भूरी सिंह यादव, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष यादव महासभा