राधाप्रिय ललिता सखी के जन्म पर मुस्कुराई ब्रजभूमि, प्रधानसखी के जन्मोत्सव में नाच उठीं ग्वालिन
शनिवार दोपहर अभिषेक के साथ अरांभ हुआ राधा की प्रिय सखी का जन्मोत्सव। गुर्जर समाज की महिलाएं कर रहीं नृत्य। राधा कृष्ण के मन के भावों को समझती थीं ललिता।
आगरा(जेएनएन): बृषभानु दुलारी की सबसे प्रिय व प्रधान सखी ललिता का जन्मोत्सव राधाष्टमी से दो दिन पहले शनिवार को पारंपरिक ढंग से मनाया गया। इस मौके पर उनका निज ऊंचा गाव राधारानी और ललिता सखी के जयकारों से गूंज उठा। कार्यक्रम में अनुराग सखी के बधाई गायन व गुर्जर महिलाओं के लोकनृत्य ने श्रद्धालु का मन मोह लिया।
मथुरा जिले में बरसाना के ऊंचागाव में ललिता अटोर नामक पहाड़ी पर बने भव्य ललिता मंदिर में दोपहर 12 बजे उनका जन्म अभिषेक कराकर 5246 वा जन्मोत्सव मनाया गया। सेवायत ब्रजाचार्य पीठ के पीठाधीश्वर गोस्वामी उपेंद्र नारायण भट्ट, ललिता पीठ के पीठाधीश्वर गोस्वामी कृष्णनंद तैलंग, ब्रजाचार्य पीठ के प्रवक्ता घनश्याम राज भट्ट, सर्वेश भट्ट, रोहित भट्ट, अरूण भट्ट आदि ने ललिता सखी के श्रीविग्रह को घी, दूध, दही, शहद, बूरा, केसर, जटामसी, चंदन चूरा, नागरमोथा, अगर- तगर, पंच मेवा, गुलाब जल, इत्र, गो घृत आदि के पंचामृत से अभिषेक कराया।
इस दौरान मंदिर में घटा-घड़ियाल बजते रहे और चहुंओर ललिता व राधारानी के जयकारों से वातावरण गूंज रहा था। अभिषेक दर्शन के लिए श्रद्धालुओं का हूजूम उमड़ पड़ा। अनुराग सखी ने ललिता सखी के जन्मोत्सव पर बधाई गायन व गुर्जर समुदाय की महिलाओं ने लोकनृत्य प्रस्तुत किया। कौन थीं ललिता सखी: ललिता को कान्हा और राधा के अंतरमन के भाव और गति को समझने वाली बताया गया है। उन्हें कई कलाओं का मर्मज्ञ भी बताया गया है। ललिता के रूप, स्वभाव और गुणों का उल्लेख ब्रजाचार्य श्रील नारायण भट्ट और गौड़िय आचार्य रूप गोस्वामी ने किया है। बरसाना में लाड़िलीजी के प्राकट्यकर्ता श्रील नारायण भट्ट ललिता तो राधा को दो दिन बड़ी बताते हैं। वहीं रूप गोस्वामी उन्हें 27 दिन बड़ा बताते हैं। दोनों आचार्यों के मुताबिक वह राधा-कृष्ण के बीच में प्रेम जगाने वाली प्रेमाचार्य हैं। ललिता का मूल नाम अनुराधा है। ललिता का स्वभाव वाम प्रखरा है, वाम प्रखरा का मतलब सीघे को उल्टा करना और उल्टे को सीधा करना। ललिताजी की स्तुति में रूप गोस्वामी की ओर से रचित ललिताष्टक में वर्णन है। राधा को कृष्ण से मिलने के लिए नीली और केसरिया साड़ी पहनाती है और स्वयं मयूरपंखी पोशाक धारण करती है। ललिता की माता का नाम सादनी और पिता का नाम विशोक हैं। स्वकिया भक्ति में पति का नाम गोपनीय रखा जाता है। परकिया भाव में ललिता के पति काक नाम भैरव गोप है, जो गोवर्धन गोप के सखा थे।
अकबरकालीन है मंदिर: ऊंचागाव स्थित ललिता अटा अटोर नामक पहाड़ी पर बने भव्य अकबर कालीन इस मन्दिर का निर्माण अकबर के राजस्व मंत्री टोडरमल ने श्रीलनारायण भट्ट के आदेश से कराया था। आज से 563 वर्ष पहले श्रील नारायण भट्ट तमिलनाडु के मुद्राईपतनम से आये थे। उन्होंने ही ललिता जी की दिव्य प्रतिमा को प्राकट्य किया था। इस बार ललिता जी का 5246वा जन्मोत्सव तथा 565वा प्राकट्योत्सव मनाया जा रहा है।