गोर ये गोरांदे माता खोल कीवाड़ी की गूंज के साथ गणगौर पूजन कर रहीं सुहागिनें
नवरात्र के तीसरे दिन महिलाओं ने की गणगौर माता की पूजा। मंदिरों और घरों में समूह बनाकर महिलाओं ने शिव पार्वती की आराधना की अमर सुहाग की कामना की।
आगरा, जागरण संवाददाता। चिर सुहाग की कामना लिए हाथों में पूजन की थाली और होंठों पर ईसर गौरा के गीत गुनगुनाती महिलाएं नवरात्र के तीसरे दिन गणगौर माता का पूजन कर रही हैं। मिट्टी के शिव पार्वती और गणेश बनाकर समूह में घरों और मंदिरों में गणगौर माता का पूजन किया जा रहा है।
नवरात्र के तीसरे दिन यानि चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाने वाला गणगौर का व्रत स्त्रियों के लिए अखण्ड सौभाग्य प्राप्ति का पर्व है। गणगौर दो शब्दों से मिलकर बना है,'गण' और 'गौर'। गण का तात्पर्य है शिव (ईसर) और गौर का अर्थ है पार्वती। वास्तव में गणगौर पूजन मां पार्वती और भगवान शिव की पूजा का दिन है।
गणगौर पूजा की पौराणिक मान्यता
शास्त्रों के अनुसार मां पार्वती ने भी अखण्ड सौभाग्य की कामना से कठोर तपस्या की थी और उसी तप के प्रताप से भगवान शिव को पाया। इसी दिन भगवान शिव ने माता पार्वती को तथा पार्वती जी ने समस्त स्त्री जाति को सौभाग्य का वरदान दिया था। माना जाता है कि तभी से इस व्रत को करने की प्रथा आरम्भ हुई और इसी से प्रभावित होकर विवाह योग्य कन्याएं सुयोग्य वर पाने के लिए पूर्ण श्रद्धा भक्ति से यह पूजन-व्रत करती हैं। वहीं सुहागिन महिलाएं अपने पति की दीर्घायु व मंगल कामना के लिए शिव -गौरी पूजन करती हैं।
गणगौर पूजा विधि
गणगौर पूजन के लिए कुंवारी कन्याएं व विवाहित स्त्रियां प्रात:काल सुंदर वस्त्र एवं आभूषण पहन कर सिर पर लोटा लेकर बाग़-बगीचों में जातीं हैं। वहीं से ताज़ा जल लोटों में भरकर उसमें हरी-हरी दूब और फूल सजाकर सिर पर रखकर गणगौर के गीत गाती हुईं घर आती हैं। इसके बाद शुद्ध मिट्टी के शिव स्वरुप ईसर और पार्वती स्वरुप गौर की प्रतिमा बनाकर स्थापित करती हैं। शिव-गौरी को सुंदर वस्त्र पहनाकर सम्पूर्ण सुहाग की वस्तुएं अर्पित करके चन्दन, अक्षत, धूप, दीप, दूब व पुष्प से उनकी पूजा-अर्चना की जाती है। दीवार पर सोलह-सोलह बिंदियां रोली, मेहंदी व काजल की लगाई जाती हैं।