ब्रज की धरा पर घर घर पधारेंगे गजानन, ऐसे मिली गणेश उत्सव को यहां भव्यता Agra News
सोमवार को है गणेश चतुर्थी। दस दिन तक शहर में रहेगी गजानन की धूम।
आगरा, आदर्श नंदन गुप्ता। बुद्धिविनायक भगवान गणपति के पूजन के लिए मंदिरों में मनाया जाने वाला गणेशोत्सव अब गली-गली, मुहल्ले-मुहल्ले पहुंच गया है। पूरा शहर 10 दिन तक गणेशमय हो जाता है, जगह-जगह पंडाल लगा कर पूजे जाते हैैं विघ्न विनाशक। प्रतिदिन सांस्कृतिक कार्यक्रम और प्रतियोगिताएं होती हैैं।
करीब तीन दशक पहले तक यह गणेश चतुर्थी एक ही दिन मनाई जाती थी। घरों में मिट्टïी के गणपति महिलाएं स्वयं बनाती थीं, उनका पूजन किया जाता था। मंदिरों में भी बहुत ज्यादा प्रभाव नहीं था। सामान्य पूजन किया जाता था।
होता था विद्या ग्रहण करने का शुभारंभ
गणेश चतुर्थी को बच्चों का पट्टी पूजन किया जाता था। इस दिन पट्टी पर कलम से गणेशाय: नम: लिख कर शिक्षा की शुरूआत की जाती थी। जब पट्टियां नहीं रही तो स्लेट, फिर कापियोंं पर यह अंकित किया जाने लगा। घरों में भुने हुए गेंहू को गुड़ में मिला कर गुड़धानी से गजानन का पूजन किया जाता था। माता-पिता द्वारा बच्चोंं की सद्बुद्धि के लिए प्रार्थना की जाती थी।
डंडे खेलने की परंपरा
बस्ती-मोहल्लों में डंडे खेलते, लोकगीत और भजन गाते हुए लोगोंं को झुंड निकलते थे। बच्चों के खेलने के लिए भी रंग-बिरंगे डंडे लाए जाते थे। जिससे बच्चे आपस में खेलते हुए इस उत्सव को मनाते थे।
गोकुलपुरा से हुई शुुरूआत
गोकुलपुरा में आगरा का प्राचीन गणेश मंदिर है, जो करीब दो सौ साल पुराना है। यहीं एकमात्र ऐसा मंदिर हैैं, जहां पर लकड़ी से बनी प्राचीन गणेश मूर्ति है। कहा जाता है कि इस मंदिर की स्थापना आगरा के आखिरी मराठा शासक दौलतराव सिंधिया ने कराई थी।
गुजराती समाज ने यहां गणेश चतुर्थी का विशेष पूजन शुरू किया। उसके बाद यहां दो दिवसीय आयोजन होने लगा। बैैंडबाजों के साथ इस मंदिर से आज भी शोभायात्रा निकाली जाती है।
अब तेजी से बढ़ रही आयोजनों की संख्या
करीब एक दशक से गणेशोत्सवों की संख्या हजारों में पहुंच गई है। विसर्जन के लिए अनंत चतुर्दशी पर अब प्रशासन को विशेष व्यवस्थाएं करनी होती हैैं। पूरे शहर में रंग-गुलाल उड़ऩे लगता है। कोई सड़क ऐसी नहीं होती जहां विसर्जन यात्रा नहीं निकल रही होती हैैं।
यूपी की सबसे बड़ी मूर्ति का दावा
कमला नगर-बल्केश्वर में 12 वां गणेशोत्सव इस बार दो सिंतबर से मनाया जाएगा। आयोजकों को दावा है कि प्रतिवर्ष प्रतिष्ठापित होने वाली मूर्ति यूपी की सबसे बड़़ी होती है। इस बार भी यहां जिस मूर्ति की स्थापना होगी, वह 23 फुट ऊंची होगी। जिसका वजन 5500 किलोग्राम होगा। इसलिए इसे कमला नगर और बल्केश्वर का राजा भी कहा जाता है।