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कारोबारियों का गड़बड़ाया 'सेरोटोनिन केमिकल', इन हालातों ने बनाया मनोरोगी Agra News

नोटबंदी जीएसटी और माहौल बना रहा मनोरोगी हताशा और निराशा में आ रहे आत्महत्या के विचार। इंडियन साइक्यिाट्री सोसायटी की प्रिवेंटिव साइक्यिाट्री सेक्शन की कार्यशाला में चर्चा।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Mon, 23 Sep 2019 03:43 PM (IST)Updated: Mon, 23 Sep 2019 03:43 PM (IST)
कारोबारियों का गड़बड़ाया 'सेरोटोनिन केमिकल', इन हालातों ने बनाया मनोरोगी Agra News
कारोबारियों का गड़बड़ाया 'सेरोटोनिन केमिकल', इन हालातों ने बनाया मनोरोगी Agra News

आगरा, अजय दुबे। नोटबंदी, उसके बाद वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी), इन दोनों बदलावों से पिछले तीन सालों में कारोबारियों का सेरोटोनिन न्यूरोट्रांसमीटर (केमिकल) का स्तर गड़बड़ा गया है। व्यापारिक क्षेत्र में हताशा और निराशा का माहौल बना हुआ है, इससे कारोबारी मनोरोगी हो रहे हैं। डिप्रेशन के साथ आत्महत्या के विचार आ रहे हैं। मनोरोग की रोकथाम पर रविवार को होटल डबल ट्री बाई हिल्टन में आयोजित इंडियन साइक्यिाट्री सोसायटी की प्रिवेंटिव साइक्यिाट्री सेक्शन की कार्यशाला में चर्चा हुई।

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कार्यशाला में मनोरोग की रोकथाम पर देश भर के मनोचिकित्सकों ने चर्चा की। नोटबंदी और जीएसटी के बाद मनोरोगी हो रहे कारोबारियों के केस पर चर्चा की गई। इन दो बदलावों से कारोबारियों को व्यापार में नुकसान, बिक्री कम होना, देनदारी बढऩे से जूझना पड़ा। यह पिछले तीन सालों से है, इस माहौल में रह रहे कारोबारियों में सेरोटोनिन न्यूरोट्रांसमीटर का स्तर कम हो गया है। यह न्यूरोट्रांसमीटर तनाव से बाहर निकलने में मदद करता है और प्रसन्नता लाता है। ऐसे में स्तर कम होने से कारोबारी डिप्रेशन के शिकार होने लगे हैं, उन्हें नींद नहीं आ रही है। चिड़चिड़ापन और गुमसुम रहने लगे हैं। कुछ लोगों के दिमाग में आत्महत्या करने के विचार आने लगे हैं, वे मनोचिकित्सकों से परामर्श ले रहे हैं। इससे बाहर निकलने में समय लग सकता है।

2030 तक मनोरोग बड़ी समस्या, स्कूलों में चलाएं अभियान

कार्यशाला का शुभारंभ बिग्रेडियर एमएस वीके राजू अध्यक्ष सार्क प्रिवेंटिव साइक्यिाट्री ने कहा कि इलाज से काम नहीं चलेगा। यही हाल रहा तो 2030 तक पहले नंबर पर मनोरोगी होंगे, इसके बाद दुर्घटना। बदले दौर में नशे की लत सबसे बड़ी समस्या है, इसके लिए स्कूलों में छात्रों को जागरूक करने के लिए मनोचिकित्सक अभियान चलाएंगे। माता पिता अपने बच्चों को क्वालिटी समय दें, जिससे बच्चों को गलत संगत से बचाया जा सके। आयोजन अध्यक्ष डॉ. यूसी गर्ग, डॉ. अजीत बिडे, बैंगलूरू, डॉ. एस नागेंदर, मुरादाबाद, डॉ. आदर्श त्रिपाठी लखनऊ, डॉ. अनुकांत, मुंबई, डॉ. संतोष पटना, सचिव डॉ. अनिल गौर, मानसिक स्वास्थ्य संस्थान के निदेशक डॉ. सुधीर कुमार, प्रमुख अधीक्षक डॉ. दिनेश राठौर, डॉ. आशुतोष गुप्ता आदि मौजूद रहे।

विशेषज्ञों की राय

हमारे यहां नए बदलाव को स्वीकार नहीं किया जाता है, ऐसे में नोटबंदी, उसके बाद जीएसटी से कारोबारियों में हताशा का माहौल बना दिया। इससे सेरोटोनिन का स्तर कम होने पर लोग डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं।

डॉ. यूसी गर्ग, चेयरमैन, इंडियन साइक्यिाट्री सोसायटी की प्रिवेंटिव साइक्यिाट्री सेक्शन (इंडिया)

डिप्रेशन के शिकार और मनोरोगियों के बारे में लोग कहते हैं कि वह खुद को संभाल नहीं सका, इसलिए समस्या हुई है। ऐसा नहीं है, यह माहौल है, जो मनोरोगी बना रहा है।

डॉ. कबीर गर्ग, इंग्लैंड

नोटबंदी के पांच साल के अंतराल पर जीएसटी लागू करना चाहिए था, इससे लोगों को स्वीकार करने में समस्या नहीं आती। इतनी जल्दी हुए बदलाव ने कारोबारियों को मनोरोगी बना दिया है।

डॉ. वेणु गोपाल झनवार, बनारस  


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