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रिश्तों के 'चक्रव्यूह' में घिरे मुलायम, जानिए सैफई परिवार के दरकते रिश्‍तों की कहानी

मुलायम मैनपुरी से चार बार सांसद निर्वाचित हो चुके हैं। 2014 के चुनाव में मोदी लहर मेें भी उनकी जीत का अंतर एक रिकॉर्ड था।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Wed, 10 Apr 2019 12:29 PM (IST)Updated: Wed, 10 Apr 2019 12:29 PM (IST)
रिश्तों के 'चक्रव्यूह' में घिरे मुलायम, जानिए सैफई परिवार के दरकते रिश्‍तों की कहानी
रिश्तों के 'चक्रव्यूह' में घिरे मुलायम, जानिए सैफई परिवार के दरकते रिश्‍तों की कहानी

आगरा, राजेश मिश्रा। समाजवादी पार्टी के संस्थापक और अब संरक्षक। कभी न झुकने वाले और न कभी डरने वाले। माफिक वक्त में मिशन को बुलंदी तक पहुंचाया तो खिलाफत के दौर में उम्मीदें मरने नहीं दीं। न खुद निराश हुए और न अपनों को हताश होने दिया। मिट्टी के अखाड़े के इस माहिर खिलाड़ी ने सियासत में भी ऐसे दांव खेले कि विरोधी धोबी पछाड़ खा गए। मगर, ऐसे ही जुनूनी मुलायम सिंह यादव अब जज्बातों में घिरे हुए हैं।

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राजनीति मन और मतभेदों ने निहायत ही पारिवारिक रिश्तों में दरार डाल दी है। कई रिश्तेदारों ने न केवल मुंह मोड़ लिया है बल्कि सियासी राह भी जुदा कर ली है। इस चुनावी महासमर में उन्हें हालांकि अपनी चिंता नहीं है। वे तो 'अपनों' के लिए चिंतित हैं। कभी किसी से न नाराज होने और न किसी को नाराज करने वाले मुलायम सिंह रिश्तों के ऐसे चक्रव्यूह में घिरे हुए हैं जिसे तोड़ पाना नामुमकिन नहीं तो मुश्किल जरूर लग रहा है।

वर्ष 1985 का वाकया है। शिकोहाबाद के एनडी डिग्री कॉलेज में सुबह की कक्षाएं शुरू हो चुकी थीं। अचानक शोर हुआ- मुलायम सिंह आए हैं! (बस यात्रा पर आए थे)। साथी छात्रों की तरह मैं भी कक्षा छोड़कर सीधे कॉलेज परिसर के मैदान की ओर दौड़ लिए। साधारण की चप्पल और सादा कुर्ता-धोती पहने मुलायम सिंह तब तक छात्रों को संबोधित करने लगे थे। पूरा संबोधन तो मुझे याद नहीं, मगर दो वाक्य अभी तक जेहन में है वो थे- 'अत्याचार और अन्याय बर्दाश्त न करना। आगे बढऩे के लिए संघर्ष करते रहना।'

सियासत में मुलायम सिंह की उत्तरोत्तर कामयाबी देखने के बाद अब उनके द्वारा बोला गया एक-एक शब्द याद आता है। मुलायम सिंह ने उस समय जो कहा, उस पर खुद भी अमल किया। इसी के बूते राजनीति के पहले पायदान से लेकर रक्षामंत्री तक पहुंचे भी। बुलंदी तक पहुंचने का जुनून अभी जवां है। कोशिश जारी है। इसलिए एक बार फिर मैनपुरी के चुनावी मैदान के सबसे ताकतवर पहलवान के रूप में ताल ठोंक दी है। मुलायम यहां से चार बार सांसद निर्वाचित हो चुके हैं। 2014 के चुनाव में मोदी लहर मेें भी उनकी जीत का अंतर एक रिकॉर्ड था। इस चुनाव में भी उन्हें अपनी चिंता नहीं हैं। चिंता तो उन रिश्तों की है तो दरक चुके हैं।

सैफई परिवार देश का सबसे बड़ा सियासी परिवार है। प्रधानी से लेकर सांसदी तक। मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक। राजनीति का हर पद इस परिवार के खाते में न हो या रहा हो। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले सैफई कुनबा ही नहीं, रिश्तेदारियों में भी मन-मतभेद हो चुके हैं। सबसे प्रमुख रिश्ता शिवपाल का है जो खुल्लमखुल्ला सैफई परिवार से बागी हो चुका है। शिवपाल हालांकि मुलायम के प्रति पूरा आदर दर्शाते रहे हैं, सम्मान अभी भी प्रदर्शित कर रहे हैं। मुलायम ने भी कभी ऐसा कुछ नहीं कहा कि वे शिवपाल के साथ नहीं हैं। वे हमेशा आशीर्वाद देते रहे हैं। वे मैनपुरी से सोमवार को नामांकन करेंगे। उन्हें अपनी चिंता नहीं है। फीरोजाबाद में प्रोफेसर रामगोपाल के बेटे अक्षय यादव के सामने शिवपाल मैदान में हैं। सपा से अलग होकर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी बनने के बाद मुलायम शिवपाल की इस पार्टी के मंच पर भी जा चुके हैं। फीरोजाबाद में शिवपाल अपने चुनावी प्रचार में मुलायम की मौजूदगी की चाहत जरूर चाहेंगे। कहने को वे कुछ भी कहें मगर मुलायम निश्चित रूप से दुविधा में होंगे।

मुलायम के भतीजे सपा सांसद धर्मेंद्र यादव की बहन संध्या यादव फीरोजाबाद जिले के भारौल गांव में ब्याही हैं। संध्या मैनपुरी की जिला पंचायत अध्यक्ष हैं। उनके पति अनुजेश फीरोजाबाद में भाजपा में शामिल हो चुके हैं। फीरोजाबाद में धर्मेंद्र की दूसरी बहन ब्याही हैं। उनके बहनोई इंजीनियर राजीव यादव की मां रामसिया फीरोजाबाद की जिला पंचायत अध्यक्ष भी रही हैं। फीरोजाबाद के सिरसागंज के विधायक हरिओम यादव के बड़े भाई रामप्रकाश यादव मैनपुरी से सांसद तेज प्रताप यादव के नाना हैं। हरिओम बागी हो चुके हैं और वे शिवपाल के साथ आ गए हैं। जसराना के पूर्व विधायक रामवीर सिंह भी सैफई परिवार से नजदीकी से जुड़े हैं मगर सपा से अलग होकर भाजपा में शामिल हो चुके हैं। उनके पुत्र अमोल यादव फीरोजाबाद से जिला पंचायत अध्यक्ष हैं। अगर सैफई परिवार में बिखरा नहीं होता तो ये सभी अक्षय यादव के लिए काम करते। वर्ष 2014 के चुनाव में ऐसा हुआ भी था। मगर, अब हालात जुदा हैं। देखना ये होगा कि फीरोजाबाद में चुनाव प्रचार में अगर मुलायम सिंह जाते हैं तो इन रिश्तों को क्या पुकारेंगे।

बसपा से गठबंधन को लेकर वे खुले मंच से तंज कस चुके हैं। अखिलेश उनके बेटे हैं, इसलिए घुटने पेट की ओर ही मुड़ गए। बेमन से इस गठबंधन को स्वीकार कर लिया। अब गठबंधन की चुनावी रैलियों का शैडयूल बन चुका है। इसके तहत अखिलेश और मायावती साथ-साथ चुनावी सभाएं करेंगीं। मायावती की सभा मैनपुरी में भी प्रस्तावित है। मुलायम सिंह के लिए एक और असहज स्थिति हो सकती है। लोगों को आशंका है कि क्या मुलायम सिंह के लिए वोट की अपील करने की भी नौबत आएगी, वो भी मैनपुरी में। मायावती के साथ मुलायम के मंच को साझा करने को लेकर भी तरह-तरह से कयास लगाए जा रहे हैं। लेकिन वो मुलायम सिंह हैं। वक्त को अपने माफिक करने में माहिर। सियासत के धुरंधर। उन्हें रिश्तों को बनाना आता है तो निभाना भी। और, वे फिर 'नेताजी' बनकर ही उभरेंगे। 


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