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आयकर सर्वे: जानिये कैसे बोगस कंपनियां बनाकर डाला जा रहा था गरीबों के हक पर डाका

पूर्व राज्यमंत्री शिवकुमार राठौर, भाइयों, साथी कारोबारी व बिल्डर और ठेकेदार से पौने तीन सौ करोड़ से ज्यादा की अघोषित आय सामने आने के सुबूत मिले।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Sat, 09 Feb 2019 05:11 PM (IST)Updated: Sat, 09 Feb 2019 05:11 PM (IST)
आयकर सर्वे: जानिये कैसे बोगस कंपनियां बनाकर डाला जा रहा था गरीबों के हक पर डाका
आयकर सर्वे: जानिये कैसे बोगस कंपनियां बनाकर डाला जा रहा था गरीबों के हक पर डाका

आगरा, जागरण संवाददाता। बुधवार सुबह 28 ठिकानों पर शुरू हुई आयकर विभाग की कार्रवाई 55 घंटे बाद जब पूरी हुई तो होश उड़ाने वाली सचाई सामने आई।

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पूर्व राज्यमंत्री शिवकुमार राठौर व उनके भाइयों, उनके साथी कारोबारी व बिल्डर पीएल शर्मा और एनएचएआइ ठेकेदार संतोष शर्मा के आवास और प्रतिष्ठानों पर जांच में पौने तीन सौ करोड़ से ज्यादा की अघोषित आय सामने आने के सुबूत मिले हैं। 1.39 करोड़ की नकदी मिली है।

आयकर विभाग की टीमों ने पीएल शर्मा के लॉयर्स कॉलोनी स्थित आवास व संजय प्लेस, जीजी नर्सिंग होम के पास स्थित महेश एडिबल ऑयल इंडस्ट्री लि. के ऑफिस पर निषेधात्मक आज्ञा (पीओ) लगाए हैं। कार्रवाई निदेशक आयकर जांच अमरेंद्र कुमार के निर्देशन व डीडीआइटी आरके गुप्ता के मार्गदर्शन में जेडीआइटी तरुण कुशवाहा व एडीआइटी योगेश मिश्रा ने अंजाम दी।

पीएल शर्मा ने मांगी मोहलत

बिल्डर व कारोबारी पुंदी लाल (पीएल) शर्मा की गाड़ी से जीजी नर्सिंग होम के पास स्थित कॉरपोरेट पार्क में तीन बेसमेंट व 2622 वर्गमीटर का प्लॉट के कागजात मिले हैं। यहां कुल 1.82 लाख वर्गमीटर की प्रॉपर्टी अघोषित मिली। कार से सेलिंग लेटर व चैक एवं कैश से भुगतान किए जाने के साक्ष्य भी मिले, जिन्हें वह छुपाने की कोशिश कर रहे थे। दस्तावेजों में दर्ज था कि करीब 50 फीसद रकम ब्लैक में कैश ली गई। इसका आंकड़ा भी 10 करोड़ से ज्यादा होने की आशंका है। उनके आवास से 21 लाख रुपये नकद मिले हैं। फिलहाल उन्होंने जांच टीम से अघोषित आय सरेंडर करने के लिए चार-पांच दिन की मोहलत मांगी है। इसके बाद विभाग ने उनके लॉयर्स कॉलोनी स्थित आवास पर निषेधात्मक आज्ञा लगा दी है। संभव है कि इनसे प्लॉट खरीदने वाले भी कार्रवाई की जद में आ सकते हैं।

संतोष शर्मा ने सरेंडर किए 12 करोड़

एनएचएआइ ठेकेदार संतोष शर्मा ने जांच टीम के साथ सहयोग किया। साथ ही, खुद की 12 करोड़ की अघोषित आय सरेंडर की।

राठौर ने लिख कर दिया, उनके पास अघोषित आय नहीं

पूर्व मंत्री शिवकुमार राठौर ने आयकर विभाग को लिखित बयान दिया है कि उनकी कोई अघोषित आय नहीं है। इस पर विभाग गंभीर है क्योंकि उसके पास उनकी अघोषित आय होने के पुख्ता सुबूत हैं। आयकर विभाग के सूत्रों ने बताया कि पूर्व राज्यमंत्री राठौर ने जांच में सहयोग नहीं किया, अभद्र भाषा का भी प्रयोग किया। इस मामले में पूर्व राज्यमंत्री ने कहा कि जांच टीम को हमारे यहां सर्वे में कुछ नहीं मिला। अभद्रता के आरोप गलत हैं।

यह किया जब्त

आयकर विभाग ने सर्च में चार ठिकानों से 1.39 करोड़ का कैश बरामद किया, जिसमें से 92 लाख का सीजर हुआ। काफी अघोषित ज्वैलरी भी बरामद हुई है।

मिले चार लॉकर

जांच में संतोष शर्मा के यहां दो लॉकर मिले, जिनमें एक संतोष व दूसरा उषा शर्मा के नाम है। वहीं पीएल शर्मा व मथुरा की फर्म का भी एक-एक लॉकर सीज किया गया है। आयकर सूत्रों ने बताया कि विभागीय जांच के बाद शासन, जीएसटी व ईडी जैसी एजेंसी को भी जांच सौंपी जाएगी।

बोगस खरीद के लिए करते थे गरीबों के नामों का इस्तेमाल

आयकर विभाग को महेश एडिबल ऑयल इंडस्ट्री की जांच में कई चौंकाने वाले साक्ष्य मिले हैं। महज ढाई दशक में साम्राज्य खड़ा करने के लिए थोक में बोगस खरीद दिखाई गई। पिराई पर आने वाली सरसों की गलत रिपोर्ट लगा किसानों के हक पर भी डाका डाला गया। सिर्फ यहीं से करीब 125 करोड़ से ज्यादा की अघोषित आय की संभावना है।

निदेशक आयकर (जांच) अमरेंद्र कुमार के मुताबिक एक फिल्म की तरह यहां सब कुछ सोच-समझकर तैयार किया गया, ताकि ज्यादा से ज्यादा लाभ कमाया जा सके, साथ ही टैक्स भी बचता रहे। जांच की शुरूआत बोगस खरीद को आधार मानकर शुरू हुई। खरीदारों के नाम जानकर जब टीमों ने जांच शुरू की तो हैरान कर देने वाले तथ्य सामने आए। कंपनी जिनसे सरसों की खरीद करती थी, उन सभी के जीएसटी व टिन नंबर और बैंक एकाउंट थे। रिफंड भी फाइल होते थे। लेकिन जब विभाग ने उनमें से छह लोगों की जांच की, तो उनमें से कोई खिलौने की दुकान, तो कोई मजदूरी, करता मिला। पूछताछ में बताया कि उनसे चैक और परचेज ऑर्डर पर साइन कराकर सौ रूपये दिए जाते थे, जो तीन से चार लाख की होती थी। इसके बाद उनके एजेंट बोगस खरीद दिखाकर टैक्स रिफंड का लाभ भी ले लेते थे। इससे खरीद नियमानुसार होकर प्रॉफिट के आंकड़े को कम कर देती थी।

एक व्यक्ति से दिखाई 45 करोड़ की खरीद

बोगस खरीद कुछ हजार या लाख की नहीं, करोड़ों में होती थी। एक ऐसे ही व्यक्ति का रिकॉर्ड निकालने पर करीब आठ माह में 45 करोड़ की बिक्री उसके खाते से दिखाई गई।

सैकड़ों ट्रक नहीं हुए पास

बोगस परचेज के साथ फर्जी ईवे बिल भी जारी किए जाते, लेकिन हाइवे पर एक भी ट्रक ने टोल नाका को क्रास नहीं किया। इसका भी रिकॉर्ड विभाग ने तलाश लिया है। ऐसे एक या दो ट्रक नहीं, बल्कि सैकड़ों ट्रक का रिकॉर्ड मिला है। एक ट्रक में तीन सौ पैकेट सरसों आती है, जिसकी कीमत करीब 10 से 12 लाख होती है।

किसानों को दिए फर्जी सर्टीफिकेट

जांच पूरी करते समय विभागीय टीमों को एक और हैरान करने वाला सुबूत मिला। पिराई पर आने वाली सरसों की पहले ग्र्रेडिंग कर उसमें तेल व अन्य चीजों की टेस्टिंग कराई जाती थी। इसकी लैब शमसाबाद स्थित फैक्ट्री में ही है। टीमों ने वहां से जो कागज बरामद किए हैं, उनमें सरसों की सभी रिपोर्ट 28 से 32 फीसद वाली दी जाती थी, जबकि हकीकत वाली रिपोर्ट भी विभाग के हाथ लगी, जिसमें सरसों का तेल 38 से 42 फीसद तक होता था। इस तरह से वह 10 फीसद तक किसानों का मार्जिन अपने पास रख लेते थे।

कंपनियों का जाल बिछा कर आकाओं तक पहुंचाया रुपया

इनर रिंग रोड पार्ट टू का मामला, आयकर जांच के बाद फिर सुर्खियों में है। कारण, दो साल तक राजनीतिक आकाओं को खुश करने के लिए प्रोजेक्ट की पूरी राशि विभिन्न कंपनियों में घुमाकर उन्हें पहुंचाई गई। आरपी इंफ्रावेंचर प्रा.लि. से मिले करीब 100 करोड़ की अघोषित संपत्ति के आंकड़ों की जांच भी जारी है।

निदेशक आयकर (जांच) अमरेंद्र कुमार ने बताया कि संतोष शर्मा से पूछताछ में पता चला कि टेंडर लेने को आरपी इंफ्रावेंचर प्रा.लि. नाम से नई कंपनी बनाई गई, जिसकी ज्यादा हैसियत नहीं थी, इसलिए ठेकेदार संतोष शर्मा को 26 जुलाई 2016 को कंपनी में 50 फीसद हिस्सेदारी दिखा बिना शेयर होडिंग के निदेशक बनाया गया। राजनीतिक रसूख के दम पर 27 जुलाई को इनररिंग रोड पार्ट टू का कंपनी ने 250 करोड़ का टेंडर पा लिया। टेंडर संतोष शर्मा के नाम आठ करोड़ की एफडीआर और शेयरमनी दिखाकर मिला। टेंडर का पैसा मिलने के बाद सब कांट्रेक्ट दिए गए। उन्हें आरटीजीएस व चैक से पेमेंट किया और उनसे कैश में वापस लेकर कुछ फीसद राजनीतिक आकाओं तक पहुंचाया गया।

हिस्सेदारी को लेकर हुआ बिगाड़ खाता

जांच में पता चला कि संतोष शर्मा का दिनेश राठौर से हिस्सेदारी मांगने पर बिगाड़ खाता हो गया था। दिनेश भी आरपी इंफ्रावेंचर प्रा.लि. में निदेशक हैं। शुरूआत में दिनेश ने संतोष को 50 फीसद हिस्सेदार बनाया था, लेकिन बाद में उसे सिर्फ उसकी शेयर एप्लीकेशन मनी वापस देकर हटा दिया। तब उसने नियम विरुद्ध दिए गए टेंडर को लेकर सीएम पोर्टल आदि पर शिकायत भी की थी।

94 करोड़ रुपये की मिली अघोषित एफडी

आरपी इंफ्रा के खाते से वर्ष 2016-17 में छह करोड़ के क्रेडिटर, 94 करोड़ की एफडी और डेढ़ करोड़ के सब कांट्रेक्ट से मिले। जबकि वर्ष 2017-18 में एफडीआर 114 करोड़, क्रेडिट 19 करोड़ जबकि सिक्योरिटी साढ़े छह करोड़ हो गई।

दिल्ली ऑफिस में मिली खाट

आरपी इंफ्रावेंचर प्रा. लि का रजिस्टर्ड पता दिल्ली के जसोला में है। इसके कार्यालय में टीम को सिर्फ एक चारपाई मिली। कोई भी बुक्स नहीं थी। इस पर दोबारा से टीम ने आगरा में खंगाला तो सारी बुक्स और रिकॉर्ड मिल गया।

कंपनियों का बिछाया था मकडज़ाल

टेंडर मिलने के बाद उसकी राशि किकबेक करने के लिए आलोक गर्ग व महेश चंद बंसल को सब टेंडर दिए गए। मथुरा में इन आठ कंपनियों के निदेशक एक ही परिवार के थे। इनमें से एक झांसी में मिट्टी डालने का काम करता था। दो साल तक टेंडर का पैसा इन कंपनियों को चेक और आरटीजीएस से भुगतान कर उनसे कैश ले लिया गया। किसी भी कंपनी के पास उसके खर्च का कोई रिकॉर्ड नहीं मिला।


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