Bhadli Navami 2020: देवशयन से पहले आखिरी शुभ मुहूर्त, जानिए क्या है महत्व और पूजन विधि
Bhadli Navami 2020 29 जून को है भड़ली नवमी। भगवान विष्णु की होती है इस दिन विशेष पूजा।
आगरा, जागरण संवाददाता। आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को भड़ली नवमी मनाई जाती है। देवशयनी एकादशी से पहले का यह आखिरी शुभ मुहूर्त होता है। इस दिन बिना कोई पंचांग शुद्धि देखे विवाह संपन्न् किए जाते हैं। यह आषाढ़ी गुप्त नवरात्रि का अंतिम दिन भी होता है। इसलिए यह दिन बहुत महत्वपूर्ण है, जो लोग विवाह आदि शुभ कार्यों के लिए चार माह चातुर्मास की प्रतीक्षा नहीं कर सकते, वे इस दिन विवाह आदि संपन्न् करते हैं। इस वर्ष भड़ली नवमी 29 जून सोमवार को है। ज्योतिषाचार्य डॉ शोनू मेहरोत्रा के अनुसार वर्ष में कुछ ऐसे मुहूर्त होते हैं जिनमें किसी भी शुभ कार्य को करने के लिए पंचांग शुद्धि देखने की आवश्यकता नहीं होती है। इन्हें अबूझ मुहूर्त कहा जाता है। ये खास दिन हैं वसंत पंचमी, फाल्गुन शुक्ल पक्ष की दूज फुलेरा दूज, राम नवमी, जानकी नवमी, वैशाख पूर्णिमा, गंगा दशमी, भड़ली नवमी, अक्षय तृतीया। भड़ली नवमी महत्वपूर्ण इसलिए मानी गई है क्योंकि इसके दो दिन बाद देवशयनी एकादशी से चार माह के लिए शुभ कार्यों पर रोक लग जाती है। इसलिए देवशयनी एकादशी से पूर्व यह अंतिम शुभ मुहूर्त होता है जिसमें बिना पंचांग देखे समस्त शुभ काम किए जा सकते हैं।
ये है महत्व
डॉ शोनू कहती हैं कि भड़ली नवमी मुख्यत: भगवान लक्ष्मीनारायण को समर्पित है। शयन काल में जाने से पूर्व भगवान लक्ष्मीनारायण अपने भक्तों को आशीर्वाद देकर जाते हैं। इस दिन भगवान लक्ष्मीनारायण की पूजा का विधान है। कई राज्यों में इस दिन व्रत रखकर शाम के समय भगवान लक्ष्मीनारायण की पूजा की जाती है। यह पूजा सत्यनारायण पूजा की तरह होती है। इस दिन परिवार, मित्रों आदि बंधु-बांधवों को बुलाकर लक्ष्मीनारायण की पूजा, कथा की जाती है। प्रसाद वितरण किया जाता है और सामूहिक भोज किया जाता है। चातुर्मास शुरू होने से दो दिन पूर्व इस दिन उत्सव मनाया जाता है और चातुर्मास में संयम, नियम धर्म से रहते हुए भगवान विष्णु की निरंतर आराधना का संकल्प भी लिया जाता है।
ऐसे करें पूजन
डॉ शोनू मेहरोत्रा के अनुसार इस दिन परिवार, मित्रों, रिश्तेदारों आदि को बुलाकर लक्ष्मी नारायण की पूजा और कथा की जाती है। भड़ली नवमी पर साधक को स्नान कर धुले कपड़े पहन कर मौन रहकर पूजा-अर्चना करनी चाहिए। अर्चना के दौरान भगवान को फूल, धूप, दीप और नैवेद्य चढ़ाना चाहिए। पूजा में बिल्व पत्र, हल्दी, कुमकुम या केसर से रंगे हुए चावल, पिस्ता, बादाम, काजू, लौंग, इलाइची, गुलाब या मोगरे का फूल, किशमिश, सिक्का आदि का प्रयोग करना चाहिए। अर्चना के बाद पूजा में प्रयोग हुई सामग्री को किसी ब्राह्मण को दान कर देना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार इसी दिन इंद्राणी ने व्रत पूजन के माध्यम से देवराज इंद्र को प्राप्त किया था। भड़ली नवमी पर विवाह, आभूषणों की खरीदारी, वाहन, भवन और भूमि आदि भी खरीदना शुभ माना गया है। भड़ली नवमी के दो दिन बाद देवशयनी एकादशी से चातुर्मास लग जाता है। जिसका अर्थ है कि आने वाले चार महीनों तक विवाह या अन्य शुभ-मांगलिक कार्य नहीं किए जा सकते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस अवधि में सभी देवी-देवता निद्रा में चले जाते हैं।