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नारद के श्राप से 'खारी' हुई नारखी

शिमला मिर्च की खेती के लिए प्रसिद्ध फिरोजाबाद जिले में कई इतिहास छुपे हैं। जिले का गांव नारखी भी कई रोचक इतिहास की गवाही देता है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 08 Jun 2018 12:02 PM (IST)Updated: Fri, 08 Jun 2018 12:02 PM (IST)
नारद के श्राप से 'खारी' हुई नारखी
नारद के श्राप से 'खारी' हुई नारखी

राहुल सिंघई, आगरा: पश्चिमी उप्र में शिमला मिर्च की खेती के लिए मशहूर फीरोजाबाद जिले के नारखी का एक और रोचक व पौराणिक इतिहास है। देवों के ऋ षि देवर्षि नारद का इकलौता मंदिर इसी जगह है। यह वह गाव है जो हजारों साल बाद अब भी महर्षि नारद के श्राप को झेल रहा है। शापित गाव महर्षि की पूजा आराधना करता है, मगर अब तक खारे पानी के श्राप से मुक्ति नहीं मिल पाई है। इसके अलावा खेती के लिए उन्नत माने के जाने वाले इस गाव की और भी पौराणिक और धार्मिक कथाएं हैं।

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जिला मुख्यालय से लगभग 20 किमी दूर बसा है नारखी गाव। लगभग दो दशक पहले तक सामान्य खेती हुआ करती थी। इसके बाद शिमला मिर्च और अचारी मिर्च की खेती शुरू हुई तो देश में इसकी अलग पहचान बन गई। इस नई पहचान के साथ-साथ नारखी की पुरानी पहचान महर्षि नारद के श्राप से है। गाव के खारे पानी के पीछे बुजुर्ग बताते हैं कि नारदजी एक बार नारखी में विश्राम के लिए ठहरे थे। उस वक्त उन्हें प्यास लगी तो गाव वालों ने पानी नहीं दिया। इससे क्रोधित होकर नारदजी ने श्राप दे दिया कि मुझे पानी नहीं दिया, अब गाव में रहने वाले लोग पानी होने के बावजूद इसे पी नहीं सकेंगे। श्राप देने के बाद नारदजी चले गए और गाव के कुओं का पानी खारा हो गया। तब से अब तक भूगर्भ जल इतना खारा है कि इसे पिया नहीं जा सकता। अचानक पानी खारा होने के बाद गाव वालों को श्राप का एहसास हुआ। उसके सालों बाद यहा आए एक ऋ षि ने नारदजी का मंदिर स्थापित किया। जहा आज भी लोग पूजा अर्चना के लिए जाते हैं। बुजुगरें के मुताबिक नारदजी के श्राप का असर गाव तक ही सीमित रहा। गाव के अंदर पानी खारा है और गाव के बाहर का पानी मीठा है। खेतों में लगे जल स्रोत से मीठा पानी आता है। ग्रामीण अपने पीने के लिए खेतों से पानी भरकर ले जाते हैं। गाव की बाहरी सीमा में बने ब्लॉक, कोतवाली व अन्य सरकारी भवनों में भी मीठा पानी आता है।

स्वामी जी के साथ नदी में नहाता था शेर

नारखी को लेकर एक और कहानी प्रचलित है। कहते हैं यहा पर वनखंडेशवर महराज मंदिर पर आए संत के साथ नाहर (शेर)रहता था। मंदिर से लगभग एक किमी दूर स्थित सिरसा नदी के दह में संत के साथ नाहर भी जाता और दोनों यहीं स्नान करते। इसके चलते गाव का नाम नाहर की हो गया तो बाद में अपभ्रंश के रूप में नारखी हुआ। विलुप्त हो चुकी नदी में वह स्थान अब भी दिखाई देता है, जहा पर संत और नाहर दोनों स्नान किया करते थे।

यह भी बताया गया है वनखंडेश्वर मंदिर से नारद मंदिर तक एक गुफा भी थी। नाहर की का उल्लेख ग्वालियर से प्रकाशित होने वाली पूर्व सासद योगानंद सरस्वती की पत्रिका अखंड प्रभा में भी मिलता है।

स्वामी योगानंद ने बनाया था आश्रम

वनखंडेश्वर मंदिर परिसर में 33 मुनियों की समाधिया भी हैं। बताते है कि लगभग तीन दशक पहले यहा ग्रामीण जाने से डरते थे। इसके बाद भिंड मप्र के सासद रहे स्वामी योगानंद सरस्वती जी आए और नारखी में अपना आश्रम स्थापित कराया। इसके बाद वनखंडेश्वर मंदिर परिसर में सभी देवी-देवताओं के मंदिरों की स्थापना कराई। योगानंद जी का कई सालों तक लगातार आना-जाना रहा।


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