दूरियों को पार कर पिकनिक मनाने आ गए खूबसूरत विदेशी मेहमान, जानिये कहां हुआ है आगमन
सर्दियों के आते ही मेहमान पक्षियों ने बनाया आशियाना। गे्रलेक गीज, वारहैड गीज, मेलार्ड जैसे पक्षियों की गूंज रही चहचहाट गूंज रही पक्षी विहारों में।
आगरा, जेएनएन। वृक्षों की कतारें। पानी का दरिया। कश्ती के इशारे पर लहरों को चीरती नावें। पंख फडफ़ड़ाकर उड़ान भरते रंग-बिरंगे, अजीब- गरीब पङ्क्षरदे। और फिर सर्द मौसम की मेहरबानीं। ऐसा ही मनमोहक नजारा अगर अपनी आंखों में कैद करना है तो चले आइए आगरा और इसके आस पास के जिलों के पक्षी विहारों में। बर्फ जमा देने वाली सर्दी के मौसम में विदेशी पङ्क्षरदे सात समंदर की दूरी अपने पंखों से ही नापकर यहां आ चुके हैं। दुर्लभ प्रजाति के ये पक्षी यहां पिकनिक मना रहे हैं। भरतपुर के केवलादेव नेशनल पार्क में साइबेरिया, पूर्वी यूरोप, अफगानिस्तान, मध्य एशिया, मंगोलिया व श्रीलंका से गे्रलेक गीज, वारहैड गीज, व्हाइट स्टार्क, पिनटेल्स, विजंस, मेलार्ड, गेडबेल, शावलर्स, डील्स, पीपिटस, लैपबिग जैसे पङ्क्षरदों की चहचहाहट आपका मन मोह लेगी। विशालकाय दायरे में फैली खूबसूरत झील में नौका विहार का अलग ही आनंद उठा सकेंगे। एटा का पटना पक्षी विहार तो खजूर के वृक्षों के झुरमुट और लहरों की कलकल करती झील गोवा के समंदर जैसे बीच का अहसास करा रही है। हजारों कोसों से उड़ान पर आए पखेरूओं का कलरव इस स्थल को और रमणीक बना रहा है। दुर्लभ प्रजाति के पक्षियों की फाका मस्ती के कहने ही क्या। मैनपुरी के किशनी में समान पक्षी विहार भी किसी प्राकृतिक अभ्यारण से कम नहीं है। सर्दियों की आमद के साथ ही आधा सैंकड़ा से ज्यादा प्रजातियों के विदेशी मेहमानों ने भी दस्तक दे दी है। प्रकृति की गोद में अपना आशियाना सजा लिया है। यहां भी साइबेरिया, मध्यचीन, आस्ट्रेलिया तथा मंगोलिया के अलावा हिमालय के तराई वाले क्षेत्रों से हजारों की तादात में यहां आए हैं। आगरा में सूर सरोवर पक्षी विहार में भी विदेशी मेहमान पङ्क्षरदे स्वछंद रह रहे हैं।
केवलादेव नेशनल पार्क (घना पक्षी विहार)
भरतपुर का केवलादेव नेशनल पार्क (घना) विश्वविख्यात है। करीब 29 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले एशिया के सबसे बड़ा राष्ट्रीय उद्यान असाधारण रूप से विलक्षण प्राकृतिक सौंदर्य स्थल है। गोवर्धन कैनाल, पांचना बांध और अजान बांध से मिलने वाले पानी से ये उद्यान समंदर सरीखा नजर आता है। पश्चिमी देशों में जमा देने वाली सर्दी के मौसम में साइबेरिया, पूर्वी यूरोप, अफगानिस्तान, मध्य एशिया, मंगोलिया व श्रीलंका से 100 से अधिक प्रजातियों के ये विदेशी यहां कलरव कर रहे हैं। विदेशी पङ्क्षरदों में गे्रलेक गीज, वारहैड गीज, व्हाइट स्टार्क, पिनटेल्स, विजंस, मेलार्ड, गेडबेल, शावलर्स, डील्स, पीपिटस, लैपबिग आदि शामिल हैं। व्हाइट स्टार्क पक्षी तो करीब पंद्रह वर्ष बाद नजर आया है। ये बहुत ही खूबसूरत पक्षी है।
वर्षा ऋतु में आशियाना बनाकर करते हैं प्रजनन
घना पक्षी विहार में पक्षियों के लिए सर्दी के साथ ही वर्षा ऋतु भी मुफीद हैं। वर्षा ऋतु में व्हाइट आइविस, कारमोरैंट, हैरान, पेंटेड स्टार्क, फीजेन्ट, देसी सारस, ओपिन बिल स्टार्क, इंडियन सैग, स्नेक बर्ड, स्पूनबिल आदि पक्षी बड़ी संख्या में आते हैं। इस दौरान वे यहां घोंसले बनाते हैं। यह मौसम इनके प्रजनन काल का होता है। इनकी नोंकझोंक, मेल-मिलाप और प्रेयसी के साथ जोड़े बनाने के लिए अपनाए जा रहे तरीके देखने योग्य होते हैं। प्रजनन काल में जब अंडों से ब'चे निकल आते हैं, तो बच्चों की चहचहाट से पूरा पक्षी विहार गुंजायमान हो उठता है।
ऐसे पहुंचें घना पक्षी विहार
आगरा- जयपुर हाईवे पर भरतपुर शहर स्थित है। ये आगरा से 35 किमी दूर है। हाईवे पर भरतपुर शहर के मुख्य तिराहे से केवलादेव नेशनल पार्क(घना पक्षी विहार) बमुश्किल आधा किमी दूर है। दिल्ली-मुंबई रेल मार्ग पर भरतपुर रेलवे स्टेशन से करीब तीन किमी दूर है। बस स्टैंड से भी इतनी ही दूरी है। ये उद्यान सुबह 8 बजे से शाम पांच बजे तक खुला रहता है। यहां पर प्रवेश शुल्क है। वोटिंग का अलग से चार्ज है।
पक्षियों के कलरव से गूंज रहा समान पक्षी विहार
मैनपुरी का समान पक्षी विहार परदेसी परिंदों के कलरव से गूंजने लगा है। सर्दियों की आमद के साथ ही आधा सैकड़ा से ज्यादा प्रजातियों के विदेशी मेहमानों ने भी दस्तक दे दी है। प्रकृति की गोद में अपना आशियाना सजा लिया है। मैनपुरी के विकास खंड किशनी के समान में तीन वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में पक्षी विहार बना हुआ है। लगभग पांच हजार किमी की दूरी की उड़ान भरकर विदेशी परिंदे साइबेरिया, मध्यचीन, आस्ट्रेलिया तथा मंगोलिया के अलावा हिमालय के तराई वाले क्षेत्रों से हजारों की तादात में यहां आए हैं। ये पङ्क्षरदे यहां फरवरी तक रुकेंगे।
ये पक्षी बढ़ा रहे शोभा
पक्षी विहार में डक, पिंटेल, लिटिल कार्मोरेंट, लार्ज कार्मोरेंट, पर्पिल, हेरान, ग्रेहेरान, परपिल मोर हेन, बिचलिंग तील, गेडवाल, छोटा लालसर, ब्रिजन, कामन फीचर्ड, स्पार्ट बिल डक, वाइटनेट स्ट्राक, बिसलिंग टील, किंग फिशर, ब्रजबिन जैकान जैसे हजारों प्रवासी पक्षी यहां आते हैं। एशियन विल स्ट्रांग, कार्मोरेंट, पिंटेल ने झील में घोंसले बनाकर अंडे भी दिए हैं। यहां दूर-दूर से सैलानी भी पक्षी विहार में भ्रमण के लिए आ रहे हैं।
ऐसे पहुंचें
मैनपुरी मुख्यालय से किशनी रूट पर बस संचालन है। इटावा और करहल से भी यहां पहुंचा जा सकता है।
पङ्क्षरदों से गुलजार पटना पक्षी विहार
खजूर के वृक्षों के झुरमुट और लहरों की कलकल करती झील गोवा के समंदर जैसे बीच का अहसास कराती है। झील में तैरती नावें और सात समंदर पार से आए पखेरूओं का कलरव इस स्थल को और रमणीक बना देता है। एटा जिले के जलेसर के निकट स्थित पटना पक्षी विहार का नजारा ही कुछ ऐसा है। जलेसर से पांच किलोमीटर दूर पटना पक्षी विहार में खूबसूरत दुर्लभ प्रजाति के पक्षियों की फाका मस्ती यहां पर्यटकों को लुभाती है। यहां पर विदेशी साइबेरियन सारस के अलावा ङ्क्षकगफिशर प्रजाति के तमाम पङ्क्षरदे पहुंच चुके हैं। सोवलर, पिटेल, कॉमन टील, कॉटन टील, विषङ्क्षलग, कॉमन पोचार्ड, कॉमन डक, स्कॉट बिल, कूट ब्रह्मनी, आईविश, ब्लैक आईविश, पैटेंड स्टोर्क, ब्लैक नैक स्टोर्क, व्हाइट नैक स्टोर्क, पर्पल मोर हैन, जयकान, डबचिक, स्नेक बर्ड, कॉमन मोर हैन आदि प्रजातियों के पक्षी भी नजर आते हैं। खजूर के वृक्षों की वजह से यहां आकर्षण और ज्यादा बढ़ जाता है। तमाम पक्षी इन वृक्षों पर भी अपना बसेरा बनाते हैं। यहां तजाकिस्तान, पाकिस्तान, चीन, हिरात, मंगोलिया, साइवेरिया, अफगानिस्तान, आस्ट्रीया, आस्ट्रेलिया, वर्मा, म्यामार, तिब्बत, भूटान, श्रीलंका, बांग्लादेश आदि देशों से पक्षी आए हैं।
इस तरह पहुंचें पटना पक्षी विहार
एटा से निधौलीकलां या अवागढ़ होते हुए पहले जलेसर और फिर पक्षी विहार पहुंचा जा सकता है। आगरा से आंवलखेड़ा होते हुए पहुंचा जा सकता है। आगरा से पक्षी विहार की दूरी 53 किमी है। अलीगढ़ और कासगंज की ओर से आने वाले सिकंदराराऊ होते हुए पहुंच सकते हैं। सिकंदराराऊ से पक्षी विहार की दूरी 17 किमी है।
कीठम के आंगन में मेहमानों का बसेरा
कीठम का आंगन मेहमानों का मन मोह रहा है। मौसम अनुकूल होते ही विदेशी पक्षियों का आना शुरू हो गया। कीठम का आंगन करीब 15 हजार पक्षियों की चहचहाहट से गुलजार हो रहा है। सबसे ऊंची उड़ान भरने वाले पक्षी बार हेडेड गीज ने भी कजाकिस्तान और यूरोप क्षेत्र से यहां आकर डेरा डाल दिया है। इसके अलावा विदेशी पक्षियों में साउथ अमेरिका से पेलिकन, फ्लेमिंगो, यूरोप एशिया और नार्थ अमेरिका से पिनटेल पक्षी भी आ चुके हैं। यूरोप से आए फ्लेमिंगो ने चार नवंबर को ही कीठम में दस्तक दी, लेकिन अगले ही दिन यहां से उड़ गए। फिर अपने साथियों के साथ आठ नवंबर को यहां पहुंच गए। स्थानीय पक्षियों में कॉमन टील, रीवर लैपिंग, ब्लैक नेक्ड स्ट्रोक आदि पक्षी भी कीठम की झील में पहुंचने लगे हैं। कीठम के वार्डन एके सिंह बताते हैं कि दिसंबर में ठंड अधिक बढऩे पर पक्षियों की संख्या में काफी इजाफा होगा।
बिना भूले राह थामे रखना है विस्मयकारी
अंतरराष्ट्रीय पक्षी विज्ञानी डॉॅ. सलीम बताते हैं कि दूर देशों से बिना भूले अपने रास्ते पक्षियों का आना और फिर वापस जाना विस्मयकारी है। हजारों फीट ऊंची बर्फीली चोटियों, तूफानों और रेगिस्तानी रास्तों को पार करते हुए इन पक्षियों का आना-जाना अवश्य ही वैज्ञानिक युग में राडार से लैस विमानों के अपने लक्ष्य से भटकने जैसी बातों को चुनौती है।