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फूलों की खुशबू से महकेगी रसखान समाधि, काव्‍य प्रेमियों के लिए होगा आकर्षण Agra News

समाधि स्थल का हो रहा कायाकल्प। चारों ओर होगा गार्डन। संग्रहालय व विश्रामालय हो रहे तैयार।

By Prateek GuptaEdited By: Published: Mon, 27 Jan 2020 12:15 PM (IST)Updated: Mon, 27 Jan 2020 12:16 PM (IST)
फूलों की खुशबू से महकेगी रसखान समाधि, काव्‍य प्रेमियों के लिए होगा आकर्षण Agra News
फूलों की खुशबू से महकेगी रसखान समाधि, काव्‍य प्रेमियों के लिए होगा आकर्षण Agra News

आगरा, जेएनएन। महावन-गोकुल रोड पर रमणरेती आश्रम के सामने स्थित महाकवि रसखान का समाधि स्थल अब फूलों की खुशबू से महकेगा। ये रसखान के प्रति आस्था है कि कंटीली बबूल और झाडिय़ों के बीच स्थित इस समाधि स्थल पर कृष्ण भक्त जरूर जाते हैं।

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समाधि स्थल का कायाकल्प हो रहा है। एक संग्रहालय तैयार किया जा रहा है। यहां महाकवि रसखान द्वारा रचित रचनाएं दोहे, छंद, कविता और पद आदि लोगों को पढऩे के लिए मुहैया कराए जाएंगे। यहां श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए विश्राम गृह, शौचालय, जलपानगृह की सुविधा होगी। समाधि स्थल के चारों ओर गार्डन तैयार किया जाएगा। इसमें रंग-बिरंगे फूल गुलाब, चमेली, मोंगरा, गेंदा से बगीचे को संवारा जाएगा। इनकी खुशबू से रसखान की समाधि महकेगी। ये काम ब्रज तीर्थ विकास परिषद करा रहा है। परिषद के उपाध्यक्ष शैलजाकांत मिश्र ने बताया कि समाधि स्थल पर गुणवत्ता परक काम करने के निर्देश दिए गए हैं।

रसखान ने तीन वर्ष तक सुनी थी भगवान श्रीकृष्ण की कथा

भक्त प्रवर रसखान का जन्म दिल्ली में वर्ष 1533 में एक शाही पठान वंश में हुआ था। मुगल शासक हमायूं के अंतिम दिनों में दिल्ली की कलह की वजह से परेशान हो कर वर्ष 1551 में रसखान ब्रज चले आए। यहां भक्तों के बीच घूमते रहे। 252 वैष्णव की वार्ता में 245वीं वार्ता भक्त कवि रसखान की है। उनके अनुसार रसखान गोस्वामी विट्ठलनाथजी के कृपा पात्र सेवक हुए। रसखान ने 1570 ईसवीं में गोकुल में विट्ठलनाथजी से वैष्णो धर्म की दीक्षा ग्रहण की। यहां उन्होंने तीन वर्ष तक भगवान श्रीकृष्ण की कथा सुनी। 1614 में प्रेम वाटिका ग्रंथ की रचना की, जिसमें 53 दोहे हैं। महाकवि रसखान ने अनेक दोहों से श्रीकृष्ण की लीलाओं का वर्णन किया है। भक्त रसखान का स्वर्गवास 85 वर्ष की अवस्था में वर्ष 1618 के आसपास हुआ।  


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