श्राद्ध पक्ष में रखेंगे अगर इन बातों का ध्यान तो मिलेगा पितरों का आशीर्वाद
पितृपक्ष की सोमवार से हुई शुरूआत। श्राद्ध करते वक्त करें नियमों का पालन। संगव काल में ही कराएं ब्राहमणों को भोजन।
आगरा: श्रद्धा से श्राद्ध, तभी पूर्वजों का मिल सकेगा आशीर्वाद। 16 दिनों का महापर्व सोमवार से शुरू हो गया है। पूर्णिमा तिथि पर दिवंगत हुई आत्माओं के मोक्ष के लिए लोगों ने तर्पण किया। गंगा- यमुना घाटों पर लोगों ने जहां अपने पितरों को तर्पण किया वहीं मथुरा के सर्वकर्म पांड्य समिति के महामंत्री पंडित गोपालाचार्य ने बताया कि यहां पिछले कई वर्षों से पितृपक्ष के प्रथम दिन ज्ञात- अज्ञात अतृप्त आत्माओं के लिए तर्पण करते आ रहे हैं। इसी श्रंखला में पितृ पक्ष के पहले दिन अतृप्त आत्माएं, जिनकी मौत आकस्मिक हुई हो, देश के लिए शहीद हुए वीर जवानों को, प्राकृतिक आपदा में मारे गए आदि वे लोग जिनका कभी तर्पण या जलदान नहीं हुआ है, उन पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध पक्ष के पहले दिन ब्राह्मणों ने एकत्रित होकर विधि विधान से तर्पण किया।
श्राद्ध क्या है
ऋषियों का कहना है कि अपने पितरों की स्मृति में श्रद्धापूर्वक किया गया दान आदि कर्म ही श्राद्ध है। ज्योतिषाचार्य डॉ. शोनू मेहरोत्रा के अनुसार अपने पूर्वजों की स्मृति में दान भोजन दान के अलावा पेड़ लगाना, किसी असहाय की सहायता करना, रोगी की आर्थिक या शारीरिक सहायता करना, पुस्तक, वस्त्रदान करना भी श्राद्ध के अंतर्गत ही आता है।
कब करें श्राद्ध
हर मास की अमावस्या पितरों को पितरों की दोपहर होती है। दोपहर में ही भोजन किये जाने का नियम होने से हर अमावस्या को पितरों की तिथि मानकर अन्न आदि का दान करने का नियम है। किसी मंगल कार्य के अवसर, ग्रहण काल, पूर्वजों की मृत्यु तिथि पर, तीर्थ यात्रा में भी श्राद्ध करना कल्याण कारक होता है। सूर्य के कन्या राशि में रहने के दौरान कन्या- गत या कनागत या श्राद्ध मानने का नियम है।
कौन कर सकता है श्राद्ध
पिता का श्राद्ध सभी भाई कर सकते हैं लेकिन सबसे बड़े के लिए आनिवार्य होता है। जो लोग किसी भी प्रकार का पितृ कार्य नहीं करते हैं उनके घरों में असंतोष, बरकत में कमी और अशांति रहती है। उनके वंश की बेल आगे चलने में भी बाधा रहती है। यदि एक पिता के चार पुत्र हैं और वे सभी अलग- अलग रहते हैं तभी चारों पुत्र एकसाथ या अलग अलग भी अपने घर में श्राद्ध कर सकते हैं।
कैसा हो श्राद्ध का भोजन
श्राद्ध का भोजन शुद्ध मन से स्नान आदि करके पकाएं, शुद्ध घी से पकाए गए खाद्य पदार्थ, दूध एवं शुद्ध घी से बने मिष्ठान, दही एवं उड़द की दाल का विशेष महत्व है।
यदि भोजन बनाने का समय न हो
यदि घर में भोजन बनाकर श्राद्ध नहीं कर सकते हों तो बाजार से तैयार भोजन देकर श्राद्ध कर सकते हैं। इसके अलावा नियत तिथि पर चावल- दूध, दही, जल, घी और फल का दान करके श्राद्ध कर सकते हैं। श्राद्ध में जब ग्रहण का सूतक लगा हो या घर की स्त्री मासिक धर्म से हो तब भी बिना पकी भोजन सामग्री से श्राद्ध कर देना चाहिए। ध्यान से उसमें कुश या तुलसी दल जरूर रख दें लेकिन श्राद्ध के लिए नकद पैसे देना वर्जित होता है। यदि पैसे दें तो फल के साथ ही दें।
किस वक्त करें श्राद्ध
श्राद्ध को सदा दोपहर से पहले ही संपन्न कर लेना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार श्राद्ध संगव काल में होता है। पूरे दिन के बराबर पांच हिस्से करें तो दूसरा हिस्सा संगव काल कहलाता है। यानि सुबह के नाश्ते के समय से दोपहर के भोजन के समय तक सुविधानुसार श्राद्ध कर सकते हैं।
कैसे करें श्राद्ध
सामने समस्त खाद्य पदार्थ परोस कर हाथ में जल, काले तिल, जौ, रोली, फूल लेकर पितरों को जलाजंलि देनी चाहिए। इसके बाद भोजन अग्नि को समर्पित करें। गाय, कौवा, कुत्ता और चिटियों को भोजन कराकर ब्राह्मणों को भोजन कराएं।
जब ब्राह्मण न मिले
जब ब्राह्मण न मिलें तो किसी आदरणीय व्यक्ति, नाती, बहनोई या कोई भी सदाचारी युवक, माता- पिता का सम्मान करने वाले निर्धन व्यक्ति, शिष्य, बंधु- बांधव और कोई भी गृहस्थ भोजन करने का अधिकारी होता है।
क्या करें श्राद्ध के दिन
सुबह स्नान अवश्य करें, इस दिन अपनी नित्य पूजा न छोड़ें। श्राद्ध के भेाजन में तुलसी के पत्ते रखने अनजानी भूल चूक का दोष नहीं लगता। इस दिन केले के पत्ते पर भोजन करना या कराना भी वर्जित है। श्राद्ध के लिए बर्तनों का ही प्रयोग करें।
किस स्थान पर करें श्राद्ध
यदि श्राद्ध दूसरे के स्थान पर किया जाए तो उसके पितर आपके द्वारा किये गए श्राद्ध कर्म का विनाश कर देते हैं। घर में किये गए श्राद्ध का पुण्य तीर्थ स्थल पर किये गए श्राद्ध से आठ गुणा अधिक होता है। यदि विवशता के कारण दूसरे के घर या भूमि में श्राद्ध करना पड़े तो सबसे पहले उस भूमि का मूल्या या किराया उस भूमि के स्वामी को दें।
भूल से भी न करें ये
क्रोध और कठोर भाषण से बचते हुए सबको भोजन कराने बाद ही भोजन करें। दिन में सोना, झूठ बोलना, युद्ध, वाद विवाद, अधिक भोजन, शराब पीना, जुआ खेलना, मैथुन, सिर या शरीर पर तेल लगाना भी वर्जित है।
जब न हो तिथि का ज्ञान
माताओं का श्राद्ध नवमी के दिन किया जाता है। शहीद, प्राकृतिक आपदा आदि में मारे गए और जिनका मृत शरीर न मिल पाने से दाह संस्कार न किया गया हो उनका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को किया जा सकता है। अमावस्या को सभी पूर्वजों के निमित्त श्राद्ध कर सकते हैं।