सोच समझकर बनवाएं नाबालिगों का DL, कहीं बच्चा पहुंचा न दे जेल Agra News
अभिभावकों के लिए मुसीबत खड़ी कर सकती है नियमों की अनदेखी। किसी काम का नहीं आरटीओ ऑफिस से बनने वाला नाबालिगों का डीएल।
आगरा, यतीश शर्मा। आपका बच्चा 16 साल का हो गया है। आपने स्कूल और कोचिंग जाने के लिए दुपहिया वाहन दिला दिया और परिवहन विभाग से ड्राइविंग लाइसेंस (डीएल) भी बनवा दिया। इतना करके आप निश्चिंत हो गए। अगर आपने ऐसा किया है तो यह आपके लिए मुसीबत साबित हो सकता है। क्योंकि आरटीओ ऑफिस से नाबालिगों के लिए 50 सीसी इंजन वाले बिना गियर के वाहन का लाइसेंस जारी किया है, जबकि आपका बच्चा 100 सीसी या उससे ऊपर की क्षमता वाले वाहन से फर्राटा भर रहा है। दुर्घटना होने पर वह सलाखों के पीछे भी पहुंचा सकता है।
दो-तीन दशक पहले बनते थे 50 सीसी के वाहन
आत्माराम ऑटो मोबाइल के जनरल मैनेजर मदन मोहन मित्तल, तारा टीवीएस के मालिक रितेश अरोरा एवं खेमका बजाज ऑटो मोबाइल के मैनेजर मनीष खेमका के अनुसार 50 सीसी इंजन की क्षमता के दुपहिया वाहन दो-तीन दशक पहले तक बनाए जाते थे। वर्तमान में वाहन टेक्नोलॉजी में आए बदलाव के बाद से 50 सीसी के वाहन बनने बंद हो गए हैं। अब लगभग 100 सीसी या उससे ऊपर के दुपहिया वाहन बनाए जा रहे हैं।
दुर्घटना होने पर अवैध माना जाएगा लाइसेंस
आगरा के सीनियर एडवोकेट राम भरत गुर्जर ने बताया कि संसोधित मोटर व्हीकल एक्ट के सेक्शन 3, 4, और 5 में परिवहन विभाग इस उम्र के बच्चों को केवल 50 सीसी इंजन वाले वाहन चलाने की अनुमति देता है। नए कानून के मुताबिक 16 से 18 साल तक के बच्चों को 50 सीसी से ज्यादा का वाहन चलाने पर नाबालिग के साथ वाहन मालिक को भी दोषी माना जाएगा। यदि ऐसे में कोई दुर्घटना होती है और घायल की मौत हो जाती है तो भारतीय दंड संहिता की धारा 304 ए के तहत कार्यवाही की जा सकती है।
वाहनों का पंजीकरण नहीं, लाइसेंस बन रहे रोजाना
आरटीओ कार्यालय में पिछले चार सालों में 50 सीसी क्षमता वाला एक भी वाहन पंजीकृत नहीं हुआ है, लेकिन ऐसे वाहनों को चलाने के लिए ड्राइविंग लाइसेंस लगातार जारी किए जा रहे हैं। आरटीओ ऑफिस में रोजाना 10 से 12 इस तरह के लाइसेंस बनाए जाते हैं। वर्तमान में करीब 25 हजार नाबालिगों के लाइसेंस बनाए जा चुके हैं।
केवल लाइसेंस चेक करती है पुलिस
यातायात पुलिस व परिवहन विभाग की प्रवर्तन टीम या तो नाबालिगों को पकड़ती नहीं है, कभी पकड़ भी ले तो केवल लाइसेंस चेक करती है। यह नहीं देखती कि बिना गियर के लाइसेंस में नाबालिग गियर वाला वाहन तो नहीं चला रहा।
बैटरी चलित गाड़ी दिलाना है बेहतर
16 से 18 साल के बच्चों का अभिभावक स्वयं आकर लाइसेंस बनवाते हैं। ऐसे में उनकी जिम्मेदारी है कि वह नियम का पालन कराएं। यदि बाजार में 50 सीसी की गाड़ी नहीं आ रही हैं तो बैटरी चलित गाड़ी दिलाएं। यदि कोई नाबालिग आवेदन करता है तो उसका लाइसेंस बनाना हमारी जिम्मेदारी है।
अनिल कुमार सिंह, एआरटीओ (प्रशासन)