बंजारों का वास्ता सिर्फ गांव की सरकार से, दिल्ली-लखनऊ से हैं ये अंजान
जागरूक लोगों ने बंजारा जाति के लोगों को मतदाता बनवा दिया। सरकारी अभिलेखों में इनकी संख्या करीब 300 हैं।
आगरा, मिथलेश कुमार। ये बंजारे हैं। कई पीढिय़ों से यहां रहते-रहते अब ये घुमंतू नहीं रहे। यहीं पर झाड़-फूस का आशियाना बनाकर अपनी बस्ती भी बसा ली। पेट पालने को फूस की चटाई बुनते हैं। ये बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं, मगर पेट की आग में इनके सपने भुन चुके हैं। नई पीढ़ी ने चटाई बुनाई के पुश्तैनी पेशे को ही विरासत मान लिया है। ये वोटर हैं और वोट भी डालते हैं मगर गांव की 'सरकार' के लिए ही। न तो इन्हें लखनऊ और दिल्ली की सरकार के बारे में पता है और न किसी ने ये पता कराने की जरूरत समझी।
फरह कस्बे से बमुश्किल दो किमी दूर एक गांव है मकदूम। केंद्रीय बकरी अनुसंधान केंद्र के कारण ये गांव पशुपालन क्षेत्र में अब किसी परिचय का मोहताज नहीं है। इसी गांव से करीब पांच सौ मीटर दूर झुग्गी-झोपडिय़ों की बस्ती नजर आती है। आसपास के इलाके में इसे नगला बंजारा नाम से पुकारा जाता है। जागरूक लोगों ने इनको मतदाता बनवा दिया। सरकारी अभिलेखों में इनकी संख्या करीब 300 हैं। ये वोट डालते हैं, मगर गांव की सरकार के लिए ही। लोकसभा चुनाव के बारे में पूछने पर युवक मुंशी ने अनभिज्ञता जताई। उल्टा सवाल किया- ये चुनाव कब होता है और क्यों? हमने तो कभी इस चुनाव में वोट डाला ही नहीं। और विधायकी के चुनाव में? इस सवाल का जवाब भी पहले जैसा ही था। अपने जवाब के तर्क में मुंशी ने खुद ही बताया कि यहां पर तो कभी कोई विधायक या सांसद आए ही नहीं, तो हम उनके बारे में क्या जानें।
इस बार वोट डालेंगे मगर....
बुजुर्ग अन्ना लाल कहते हैं कि इस बार हम इस चुनाव में भी वोट डालने जाएंगे। लेकिन हमारे बारे में भी तो उन्हें सोचना होगा। बंशीलाल ने कहा कि पड़ोस के गांव के स्कूल में कक्षा आठ तक पढऩे के बाद बच्चों को चटाई बुनाई में लगा लिया। इंटर तक पढ़ाई कर चुके चेतन ने कहा कि आगे की पढ़ाई कैसे करें? परिवार का पेट भी तो भरना है। नौकरी है नहीं तो इसी काम में जुट गए। जो पार्टी रोजगार की बात करेगी, उसी को इस बार वोट डालेंगे। चेतन को पिछले चुनाव में एक प्रत्याशी का वादा याद है। कहा था कि उनकी सरकार बन जाएगी तो रोजगार मिलेगा, गरीबी दूर हो जाएगी। कुछ नहीं हुआ।
चार महीने काम, पूरे साल का इंतजाम
इस बस्ती में सभी लोग घास-फूस से जेबरी और सरकंडे से चटाई बुनने में व्यस्त थे। इसके लिए रॉ मैटेरियल लेकर राजस्थान, गुजरात से व्यापारी खुद दे जाते हैं और तैयार माल ले जाते हैं। धर्मेंद्र, मंजू देवी आदि ने बताया कि मार्च, अप्रैल, मई व जून तक हमारा काम चलता है। एक दिन में 200 से 300 रुपये तक का काम कर लेते हैं। इसी कमाई से पूरे साल तक पेट भरना पड़ता है। इनका कहना है कि उन्हें अगर माल यहां पर ही मिल जाए तो काम बढ़ेगा और मुनाफा भी ज्यादा मिलेगा। पूरे साल भर काम कर सकते हैं।
हम तो नहीं पहुंचे, मगर कोई तो जरूर गया होगा
नगला बंजारा का नाम सुना है। सांसद या हम भले ही गांव में नहीं पहुंच पाए, मगर संगठन का कोई न कोई पदाधिकारी जरूर गया होगा। सांसद निधि से भी कोई काम तो जरूर कराया गया होगा।
-जनार्दन शर्मा
सांसद प्रतिनिधि
पिछली विधायकी में लगवाया था हैंडपंप
हम प्रचार में गए थे। एक विवाह समारोह में कन्यादान भी लिया था। हमने पिछले कार्यकाल में हैंडपंप भी लगवाया। बस्ती की अन्य समस्याओं का समाधान भी कराएंगे।
पूरन प्रकाश
विधायक, बलदेव