भारतीय साड़ी और कपड़ों के दीवाने सीमा पार से आए मेहमान
अबु उल्लाह दरगाह के 379वें में उर्स में शामिल होने आए बांग्लादेशी जायरीन। भारतीय साड़ी और कपड़ों के हैं दीवाने, पाकिस्तान का दोगलापन नहीं पसंद।
आगरा [संदीप शर्मा]: बांग्लादेशी भारतीय साड़ी और कपड़ों के दीवाने हैं। यहां की मेहमाननवाजी भी उन्हें खूब भाती है। खानपान तो समान है, लोगों का अपनापन और प्यार उन्हें हर बार यहां खींच लाता है। यह कहना है न्यू आगरा स्थित अबु उल्लाह दरगाह के 379वें उर्स में शामिल होने आए बांग्लादेशी जायरीनों का।
बांग्लादेश,चिटगांव से आए 10 सदस्यीय दल में शामिल सरफराज ने दैनिक जागरण को बताया कि वह अक्सर भारत आते हैं, यहां खानपान, रहन सहन सब घर जैसा है, इसलिए उन्हें घर जैसा अहसास होता है। लेकिन सबसे ज्यादा यहां की मेहमाननवाजी पसंद आती है। यहां का अपनापन और प्यार देखकर नहीं लगता कि वह देश से बाहर हैं।
साड़ी और कपड़ों के हैं दीवाने
बांग्लादेश की यूनिवर्सिटी ऑफ ढाका के फिलॉसिफी विभाग प्रोफेसर डॉ. शाह कौसर मुस्तफा अबुलुयाई परिवार के साथ आएं हैं। एएमयू से पीएचडी डॉ. कौसर ने बताया कि बांग्लादेशी लोग भारतीय साड़ी और कपड़ों के दीवाने हैं। यहां का संगीत भी उन्हें खूब भाता है।
उनका आगे कहना है कि भारत की तरह बांग्लादेश के मुस्लिमों का दिल और तालीम भी सूफी है, इसलिए वे मोहब्बत पसंद है। कïट्टरता न होने से हीं दोनों ही देशों में फिरकापरस्त ताकतें सफल नहीं हुईं, हालांकि कोशिश की, कुछ लोग प्रभाव में भी आएं लेकिन बड़ी आबादी अमन पसंद है।
भारत से प्यार, पाक से तकरार
बांग्लादेशी जायरिनों ने बताया कि पाक मुस्लिम देश है, फिर भी मुस्लिम भारत में ज्यादा सुरक्षित हैं। वह यहां निश्चिंत होकर रहते हैं। भारत की ही तरह बांग्लादेश के रिश्ते भी पाक से तल्ख हैं।
अनपढ़ देते हैं जेहाद को धर्म का नाम
डॉ. कौसर ने बताया कि कोई धर्म ङ्क्षहसा और आतंकवाद का संदेश नहीं देता। जियारत मौला के संपर्क में आकर खुद को उनके सुपुर्द कर ताल्लुक जोडऩे का नाम है। लेकिन आतंकवाद फैलाने वाले अनपढ़ हैं। उन्हें दीन का उद्देश्य नहीं पता, इसलिए जेहाद के नाम पर भटक जाते हैं।