Bakrid 2020: ताजनगरी के धर्मगुरुओं की अपील, खुले में न करें कुर्बानी, घर पर अदा करें ईद-उल-अजहा की नमाज
Bakrid 2020 शहर के धर्मगुरुओं की अपील ईद-उल-फितर की तरह बनाए रखें शांति।
आगरा, जागरण संवाददाता। ज्यादा वक्त नहीं गुजरा जब लॉकडाउन में ईद-उल-फितर मनाई थी। संक्रमण का जोर आज भी बरकरार है। खुद को सुरक्षित रखने के लिए स्वास्थ विभाग की गाइडलाइन का पालन जरूरी है। ऐसे में शहर के धर्मगुरुओं ने आवाम से गुजारिश की है कि ईद-उल-फितर की तरह ही शांति के साथ खुशी बांटें। घरों में ही बकरीद (ईद-उल-अजहा) की नमाज अदा करें। फज्र की नमाज के बाद चाश्त की चार रकात अदा करें।
-घरों में नमाज अदा करें और सार्वजनिक स्थानों पर कुर्बानी करने से बचें।
इनायत अली, सज्जादानशीं, दरगाह हजरत अबुल उल्लाह
कुर्बानी अपने घरों में नज्म रखें। शासन व प्रशासन की गाइडलाइन का पालन करें। जिससे किसी भी शख्स को परेशानी न हो।
मौलाना उजैर आलम, प्रधानाचार्य, मदरसा मोईन-उल-इस्लाम
हमें पशुओं के अवशेषों को लेकर सावधानी बरतनी है।
सूफी मुबीन उद्दीन, सज्जादानशीं, दरगाह अल्लाह दाद कादरी
चार रकात नमाज चाश्त पढ़ी जाएगी। घर पर कुर्बानी करें।
मोहम्मद रशीद मिया हुसैनी
सभी को अपने घर पर चाश्त की चार रकात के साथ नमाज अदा करनी है।
मौलाना रियासत अली, इमाम, नामनेर मस्जिद
आवाम को कुर्बानी घरों में करनी चाहिए, ताकि किसी को परेशानी न हो।
हाफिज अनस कादरी
कुर्बानी का असली मतलब
विद्वानों ने इस किस्से की व्याख्या में यह लिखा है कि हजरत इब्राहिम का यह कर्म उनके जज्बे को दर्शाता है और व्यक्ति का यही जज्बा खुदा तक पहुंचता है न कि किसी जानवर की कुर्बानी। कुरान में आता है कि खुदा तक तुम्हारी कुर्बानी नहीं पहुंचती बल्कि पहुंचती है व्यक्ति की परहेजगारी (22:37)। हज और ईद-उल-अजहा हजरत इब्राहिम और उनके परिवार द्वारा दी गई स्वयं की इच्छाओं की कुर्बानी को याद करने का ही दूसरा नाम है। आज कई महीनों से पूरा विश्व कोविड-19 से दिन-रात लड़ रहा है। जिसके चलते इस बार उतनी बड़ी संख्या में लोग हज नहीं अदा कर पाएंगे जैसा हर साल करते थे। सऊदी अरब के हज मंत्रालय का कहना है कि इस साल लगभग 1,000 हजयात्रियों को ही हज करने की अनुमति दी जाएगी, जो संख्या गत वर्षो में लगभग पचीस लाख थी। मंत्रालय का कहना है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य को संरक्षित करने के उद्देश्य से यह फैसला लिया गया है। इस्लामिक आस्था से जुड़े इतने महत्वपूर्ण पर्व पर इतना बड़ा फैसला लेना सऊदी सरकार के लिए कोई छोटी बात नहीं थी।आज भारत में रह रहे मुस्लिम समुदाय के नेतृत्व को भी दरकार है कि स्वयं सरकार के साथ मिलकर समाज में इस बात को रखें कि इस साल लोग कुर्बानी की कुर्बानी करें। कुर्बानी का असल भाव जो हजरत इब्राहिम से हमें मिलता है हम हर स्थिति में स्वयं को ढाल लें और शिकायत करने से बचें। आज महामारी के चलते अनेक परिवारों की आर्थिक स्थिति बिगड़ चुकी है। बेहतर होगा कि हम कुर्बानी में खर्च होने वाले पैसों को इस साल ऐसे परिवारों तक पहुंचाएं। यही सच्चे मायने में इस साल सभी की कुर्बानी होगी।