कृष्णकालीन हरियाली बढ़ा रही गोवर्धन पर्वत की आभा, ऐसे निखर रहा रूप Agra News
गोवर्धन पर्वत पर कृष्णकालीन वृक्षों की पांत नजर तो आती थी लेकिन बिखरी-सूखी टहनियों के रूप में। अब इन वृक्षों के सहारे गोवर्धन की सुंदरता लौट रही है नया रूप ले रही है।
आगरा, रसिक शर्मा। गोवर्धन पर्वत की अप्रतिम सुंदरता का वर्णन धर्मग्रंथों में मिलता है। वह आभा कहीं खो गई थी। कृष्णकालीन हरियाली के साक्षी वृक्षों की पांत नजर तो आती थी, लेकिन नीरस तनों, बिखरी-उलझीं सूखी टहनियों के रूप में। पतझड़ के मौसम में हरापन लिए मगर बगैर पत्तियों वाले तने शिलाओं के नीचे दबी जड़ों के संकेत देते थे। सालों साल तक हरियाली से अछूते रहे करीब साढ़े तीन खरब वर्ष पुराने गोवर्धन पर्वत पर अब सुंदर हरियाली नजर आने लगी है।
पानी और परवरिश से करीब पांच हेक्टेयर क्षेत्र में हरियाली को पुनर्जीवन मिलना शुरू हो गया है। यह संभव हुआ है वन विभाग के प्रयासों से। वन विभाग के अधिकारियों ने करीब छह महीने गोवर्धन पर्वत पर सूखे पेड़, पर्वत के अंदर दबीं जड़ों, बिखरीं टहनियों और मिट्टी का निरीक्षण-परीक्षण किया। यहां कृष्णकालीन पौधे वृक्ष धौ (करधई), करील (टेंटी), पापरी, नागफनी, कैरी आदि के अवशेष मिले। करीब पांच हेक्टेयर क्षेत्र में इन पौधों के अवशेषों को संरक्षित करने का काम शुरू किया गया। अब यहां हरियाली दिखने लगी है।
पर्वत पर पानी की उपलब्धता न होने की वजह से पेड़-पौधे नष्ट हो गए थे। बरसात में कुछ पेड़-पौधे हरे-भरे होते थे, लेकिन कुछ समय बाद फिर सूख जाते थे। इस संकट से निपटने के लिए बड़ी परिक्रमा मार्ग पर अनुमानित 80 हजार लीटर की क्षमता वाले चरणामृत कुंड को नजदीक स्थित काष्र्णि आश्रम के महंत हरिओम बाबा ने अपने प्रयास से लबालब कराया। वन विभाग ने इस कुंड से पाइप के जरिए पर्वत तक पानी पहुंचाकर बौछार कराई। पर्वत के बीच में दबी जड़ों को कुरेदकर उनमें पानी पहुंचाया गया। करीब छह महीने की इस मेहनत के बाद पौधों को पुनर्जीवन मिलने लगा।
वन क्षेत्रधिकारी ब्रजेश सिंह परमार बताते हैं कि करीब पांच हेक्टेयर में अनुमानित छह हजार पौधों को पुनर्जीवन मिलने के बाद अब पूरे पर्वत पर 48 हेक्टेयर में अनुमानित 50 हजार पौधों के संवर्धन की योजना बनाई है। इतिहास और धार्मिक पुस्तकों के पन्नेे पलट कर इन पुरातन पौधों की प्रजातियां खोजी गई हैं। इनमें से तमाम प्रजातियों के पौधों को रोपा जाएगा जबकि अन्य को पुनर्जीवन देने का प्रयास होगा। ये प्रस्ताव उप्र ब्रज तीर्थ विकास परिषद को सौंप दिया है।
वैज्ञानिकों की टीम ने दिखाई राह
पिछले साल वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट, देहरादून के डीन डॉ. जीएस रावत के नेतृत्व में आई टीम ने पर्वत पर हरियाली का अवलोकन किया था। आकलन कर डॉ. रावत ने बताया था कि गोवर्धन पर्वत तकरीबन साढ़े तीन खरब साल का है। उन्होंने ही वन विभाग को हरियाली के लिए राह सुझाई थी।
सरकार को भेजा गया प्रस्ताव
वन विभाग के प्रस्ताव को सरकार को भेज दिया गया है। वहां से स्वीकृत होते ही काम शुरू कर दिया जाएगा। जल्द ही पूरा गोवर्धन पर्वत हरा-भरा हो जाएगा।
नगेंद्र प्रताप, सीईओ, ब्रज तीर्थ विकास परिषद