Solar Eclipse: ईसा से 4000 वर्ष पहले हो गई थी खगोलीय रहस्य की जानकारी, इन्हें हुआ था ज्ञान Agra News
अत्रिमुनि थे सूर्य ग्रहण का ज्ञान प्राप्त करने वाले पहले आचार्य। महाभारत में है सूर्य ग्रहण का वर्णन।
आगरा, तनु गुप्ता। वर्ष का अंतिम सूर्य ग्रहण गुरुवार को है। ग्रहण का नाम आते ही जनमानस में मन मस्तिष्क इसके प्रभाव और दुष्प्रभाव के सवाल कौंधने लगते हैं। लेकिन एक सवाल और भी उत्पन्न होता है। आखिर ग्रहण का इतिहास है क्या। कुछ लोग इसे धर्म से जोड़ते हैं तो कुछ विज्ञान से। लेकिन सही अर्थों में यदि देखा जाए तो यह खगोलिय घटनाक्रम किसी न किसी रूप से ग्रह नक्षत्रों को प्रभावित करता है। जब आसमान के नक्षत्र प्रभावित होते हैं तो किसी न किसी रूप से आम लोगों के जीवन पर भी इसका असर दिखाई देता हैैै। धर्म विज्ञानिक पंडित वैभव जोशी के अनुसार सनातन संस्कृति के शास्त्रों में सूर्य ग्रहण का काफी महिमा मंडन किया गया है। सूर्य ग्रहण के वैज्ञानिक पहलुुओं की इसमें विस्तृत व्याख्या की गई है और सूर्य ग्रहण के प्रभाव के बारे में बताया गया है। वैदिक शास्त्रों के अनुसार ग्रहण का खगोलीय ज्ञान हमारे पूर्वजों को ईसा से चार हज़ार वर्ष पहले हो गया था। वेदांग ज्योतिष में सूर्य और चंद्र ग्रहण के संबंध में विस्तार से बताया गया है।
ऋग्वेद के अनुसार अत्रिमुनि और उनके परिवार को ग्रहण का बेहतर ज्ञान था। महर्षि अत्रि मुनि ग्रहण का ज्ञान को देने वाले पहले आचार्य माने जाते हैं। इसके बाद खगोल शास्त्र के रहस्य वेद-पुराणों में खुलते चले गए। जिसमें आसमान में टिमटिमाते तारों से लेकर अज्ञात ग्रहों का अध्ययन शामिल था। ऋग्वेद के एक मन्त्र में सूर्य ग्रहण का वर्णन करते हुए लिखा है कि हे सूर्यदेव असुर राहु ने हमला कर आपको अंधकार के आगोश में ले लिया है और मनुष्य आपको देख नहीं पा रहा है। उस समय महर्षि अत्रि ने अपने ज्ञान के दम पर छाया को हटाकर सूर्य का उद्धार किया। एक अन्य मंत्र में बताया गया है कि कैसे इन्द्र ने अत्रि मुनि की सहायता से ही राहु की सीमा से सूर्य की रक्षा की थी।
महर्षि अत्रि के पास इस तरह की काबिलियत कैसे आई इसको लेकर दो मत प्रचलित है। पहला मत यह है कि वह कठिन तपस्या कर सूर्य ग्रहण के प्रभाव पर असर डालने में समर्थ हुए, तो दूसरा मत यह है कि उन्होंने एक यंत्र बनाया था, जिसकी मदद से वह सूर्य ग्रहण को दिखालाने और उसके अध्ययन में सक्षम हुए थे। महाभारत में भी सूर्य ग्रहण का वर्णन है।
धनु राशि में रहेंगे 6 ग्रह
पंडित वैभव जोशी कहते हैं कि 2019 का अंतिम सूर्य ग्रहण मूल नक्षत्र और धनु राशि में होगा। ग्रहण के समय सूर्य, बुध, गुरु, शनि, चंद्र और केतु धनु राशि में एक साथ रहेंंगे। केतु के स्वामित्व वाले नक्षत्र मूल में ग्रहण होगा और नवांश या मूल कुंडली में किसी प्रकार का अनिष्ट योग नहीं होने से प्रकृति को नुकसान की संभावना नहीं है। इस बार सूर्य ग्रहण के पूर्व चंद्र ग्रहण नहीं हुआ है एवं आगे भी चंद्र ग्रहण नहीं होने से प्रकृति को बड़े नुकसान की संभावना नहीं है। ग्रहण का प्रभाव मूल नक्षत्र और धनु राशि वालों पर ज्यादा रहेगा।
ग्रहण का सूतक काल
सूर्य ग्रहण का सूतक काल ग्रहण से 12 घंटे पूर्व से माना जाता है। 25 दिसंबर की रात 8 बजे से ही सूतक काल शुरू हो जाएगा, जो ग्रहण के मोक्ष के साथ समाप्त होगा।
क्या करें क्या नहीं
ग्रहण काल में खान-पान, शोर, शुभ कार्य, पूजा-पाठ आदि करना निषेध होता है। गुरु मंत्र का जाप, किसी मंत्र की सिद्धी, रामायण, सूंदर कांड का पाठ, तंत्र सिद्धि ग्रहण काल में कर सकते हैं। ग्रहण के बाद पवित्र नदियों में स्नान, शुद्धिकरण आदि करके दान देना चाहिए। इस समय में गर्भवती स्त्रियों को घर से बाहर नही निकलना चाहिए। ग्रहण काल में सूर्य से पराबैंगनी किरणे निकलती हैं, जो गर्भस्थ शिशु के लिए हानिकारक होती हैं। त्वचा, आंख और एलर्जी के रोगियों को भी ग्रहण के समय घर से बाहर निकलने से बचना चाहिए। अगर घर से बाहर निकलना जरूरी हो तो मोटे कपड़े पहनकर बाहर निकल सकते हैं। इससे ग्रहण की किरणों के बुरे असर से बच सकते हैं।
सभी 12 राशियों के लोग रहें संभलकर
इस बार का सूर्य ग्रहण सभी 12 राशियों के लिए बुरा असर लेकर आ रहा है। इसीलिए सभी लोगों को सावधानी रखनी होगी। किसी भी काम में अति उत्साह न दिखाएं, धैर्य से काम करेंगे तो परेशानियों से बच सकते हैं। धन संबंधी कामों में किसी अनजान पर भरोसा न करें। जितनी मेहनत करेंगे, उतना लाभ मिल जाएगा।