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Shoe Industry of Agra: आगरा के बूट कारोबार को एक और झटका, अब गुजरात पुलिस के टेंडर से भी हुआ बाहर

जेम पोर्टल पर टेंडर की शर्तों को ओवर रूल कर तीन माह बाद आगरा की कंपनियों को दिखाया गया बाहर का रास्ता। टेंडर में टर्नओवर व अन्य शर्तों के चलते आगरा के जूता कारोबारी टेंडर में भाग नहीं ले पा रहे हैं।

By Nirlosh KumarEdited By: Published: Mon, 18 Oct 2021 04:28 PM (IST)Updated: Mon, 18 Oct 2021 04:28 PM (IST)
Shoe Industry of Agra: आगरा के बूट कारोबार को एक और झटका, अब गुजरात पुलिस के टेंडर से भी हुआ बाहर
आगरा में बूट निर्माता जूता इकाइयां बंदी के कगार पर।

आगरा, जागरण संवाददाता। ताजनगरी के घरेलू जूता कारोबार विशेषकर बूट कारोबारियों को एक और झटका लगा है। गुजरात पुलिस के जूतों के टेंडर से भी तीन माह के बाद आगरा की छोटी कंपनियों को बाहर कर दिया गया है। टेंडर में टर्नओवर व अन्य शर्तों के चलते आगरा के जूता कारोबारी टेंडर में भाग नहीं ले पा रहे हैं। कुछ दिन पूर्व केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल सीआइएसएफ, दिल्ली के टेंडर में शामल होने के लिए 25 करोड़ रुपये टर्नओवर की शर्त लगाकर आगरा के जूता कारोबारियों को बाहर कर दिया गया था। हालांकि, आगरा के कारोबारियों द्वारा शिकायत किए जाने के बाद सीआइएसएफ नें टेंडर तो निरस्त कर दिया, लेकिन स्थिति को स्पष्ट नहीं किया है।

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बूट मैन्यूफैक्चरर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष सुनील गुप्ता ने बताया कि आगरा का घरेलू जूता उद्योग अंतिम सांसें गिन रहा है। केन्द्र सरकार से प्रदेश सरकार तक हर जगह गुहार लगा ली, लेकिन सिर्फ आश्वासन मिलता है। तीन माह पहले गुजरात पुलिस के जूतों के टेंडर में आगरा की फर्में शामिल हुई थीं। उन्होंने टेंडर की शर्तों को क्वालीफाई भी कर लिया था, लेकिन भ्रष्टाचार के चलते जो शर्तें पहले टेंडर में नहीं थीं, उन्हें लगा दिया गया। टेंडर की शर्तों को मनमानी कर ओवर रूल कर दिया गया। एसोसिएशन के सचिव अनिल महाजन ने बताया कि पहले 40 फीसद सप्लाई आॅर्डर मांगे गए, जिन्हें पूरा कर दिया गया। फिर प्लांट मशीनरी के बिल मांगे गए, वह भी दिखा दिए गए। इसके बाद एफडीडीआई से प्लांट एंड मशीनरी के निरीक्षण की शर्त लगा दी गई। जबकि एफडीडीआई जूते की गुणवत्ता का निरीक्षण करने वाली संस्था है। एसोसिएशन के पदाधिकारियों का कहना है कि उप्र बेसिक शिक्षा परिषद के जूतों के टेंडर में भी एफडीडीआई ने निरीक्षण किया था। इसके बावजूद उसमें 550 करोड़ का घपला हुआ, जिसका संज्ञान हाईकोर्ट को लेना पड़ा। आरोप है कि दिल्ली-एनसीआर की फर्में टेंडर को मैनेज करती हैं, जिससे एमएसएमई की छोटी फर्में खत्म हो रहीं हैं। ऐसे में सरकार का लघु व कुटीर उद्योग को बढ़ावा देने का नारा बेमानी साबित हो रहा है।


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