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Anant Chaturdashi 2020: 14 गांठों का अनंत सूत्र बाधंने से पहले जान लें क्या है नियम

Anant Chaturdashi 2020 1 सितंबर को है अनंत चतुर्दशी व्रत। भगवान विष्णु की अराधना का होता है विशेष महत्व।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Mon, 31 Aug 2020 03:05 PM (IST)Updated: Mon, 31 Aug 2020 03:05 PM (IST)
Anant Chaturdashi 2020: 14 गांठों का अनंत सूत्र बाधंने से पहले जान लें क्या है नियम
Anant Chaturdashi 2020: 14 गांठों का अनंत सूत्र बाधंने से पहले जान लें क्या है नियम

आगरा, जागरण संवाददाता। मंगलवार यानि एक सितंबर को अनंत चतुर्दशी है। भगवान विष्‍णु की साधना, उनकी पूजा का यह दिन अनंत सुख दायक बनता है जब इस दिन अनंतसूत्र धारण किया जाए। इस विशेष धागे को धारण करने से पहले कुछ विशेष नियम भी ध्यान रखने चाहिए। ज्योतिषाचार्य डॉ शाेनू मेहरोत्रा के अनुसार भविष्य पुराण में भाद्र महीने की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को अनंत चतुर्दशी कहा गया है। इस दिन कच्चे धागों से बने 14 गांठ वाले धागे को बाजू में बांधने से शेषनाग की शैय्या पर शयन करने वाले भगवान विष्णु जो आदि अनंत से परे हैं उनकी बड़ी कृपा होती है। इस धागे को बांधने की विधि और नियम को लेकर पुराणों में कुछ नियम और कथाएं बताई गईं हैं।

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पूजन विधि

भाद्र शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन कच्चे धागे में 14 गांठ लगाकर कच्चे दूध में डूबोकर ‘ओम अनंताय नमः’ मंत्र से भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। वैसे आजकल अनंतसूत्र बाजार में भी मिलते हैं जिनकी पूजा करके पुरुषों को दाएं बाजू में और महिलाओं को बाएं बाजू में धारण करना चाहिए।

क्‍या है नियम

अनंतसूत्र धारण करने वाले को कम से कम 14 दिन इसे धारण करके रखना चाहिए और इस बीच मांसाहार से परहेज रखना चाहिए। वैसे नियम यह है कि इसे पूरे साल बांधकर रखें तो उत्तम फल मिलता है।

अनंत सूत्र की कथा

कैण्डिल्य ऋषि ने अपनी पत्नी की बाजू में इसे बंधा देखकर इसे जादू टोने का धागा मान लिया और इसे जला दिया। इससे कौडिल्य ऋषि को बड़े दुखों का सामना करना पड़ा। भूल का अहसास होने पर इन्होंने खुद 14 वर्षों तक अनंत व्रत किया इससे प्रसन्न होकर अनंत भगवान ने इन्हें फिर से धन वैभव प्रदान किया। इसलिए कहा गया है कि अनंत का सूत्र बड़ा ही चमत्कारी है।

व्रत कथा

एक बार महाराज युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ किया। उस समय यज्ञ मंडप का निर्माण सुंदर तो था ही, अद्भुत भी था वह यज्ञ मंडप इतना मनोरम था कि जल व थल की भिन्नता प्रतीत ही नहीं होती थी। जल में स्थल तथा स्थल में जल की भांति प्रतीत होती थी। बहुत सावधानी करने पर भी बहुत से व्यक्ति उस अद्भुत मंडप में धोखा खा चुके थे। एक बार कहीं से टहलते-टहलते दुर्योधन भी उस यज्ञ-मंडप में आ गया और एक तालाब को स्थल समझ उसमें गिर गया। द्रौपदी ने यह देखकर 'अंधों की संतान अंधी' कह कर उनका उपहास किया। इससे दुर्योधन चिढ़ गया। यह बात उसके हृदय में बाण समान लगी। उसके मन में द्वेष उत्पन्न हो गया और उसने पांडवों से बदला लेने की ठान ली। उसके मस्तिष्क में उस अपमान का बदला लेने के लिए विचार उपजने लगे। उसने बदला लेने के लिए पांडवों को द्यूत-क्रीड़ा में हरा कर उस अपमान का बदला लेने की सोची। उसने पांडवों को जुए में पराजित कर दिया।

पराजित होने पर प्रतिज्ञानुसार पांडवों को बारह वर्ष के लिए वनवास भोगना पड़ा। वन में रहते हुए पांडव अनेक कष्ट सहते रहे। एक दिन भगवान कृष्ण जब मिलने आए, तब युधिष्ठिर ने उनसे अपना दुख कहा और दुख दूर करने का उपाय पूछा। तब श्रीकृष्ण ने कहा- 'हे युधिष्ठिर! तुम विधिपूर्वक अनंत भगवान का व्रत करो, इससे तुम्हारा सारा संकट दूर हो जाएगा और तुम्हारा खोया राज्य पुन: प्राप्त हो जाएगा।  


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