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भगवा दल की बिसात पर विरोधियों का हर मोहरा पिटा, हुई कुशल रणनीति की जीत

भाजपा की रणनीति ने गिराई वजूद पर बिजली। आगरा व सीकरी में कार्यकर्ताओं के बीच समन्वय आया काम।

By Tanu GuptaEdited By: Published: Fri, 24 May 2019 05:15 PM (IST)Updated: Fri, 24 May 2019 09:27 PM (IST)
भगवा दल की बिसात पर विरोधियों का हर मोहरा पिटा, हुई कुशल रणनीति की जीत
भगवा दल की बिसात पर विरोधियों का हर मोहरा पिटा, हुई कुशल रणनीति की जीत

आगरा, संजीव जैन। बात आगरा की हो या फिर फतेहपुर सीकरी की। भाजपा ने जिस कौशल से सधी रणनीति के तहत बिसात बिछाई, उस पर विरोधी चारों खाने चित हो गए। न केवल प्रत्याशी हारे, बल्कि दलों के उनके वजूद पर भी भाजपाई बिजली गिर गई।

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वर्तमान सांसद प्रोफेसर रामशंकर कठेरिया और कैबिनेट मंत्री एसपी सिंह बघेल में जुबानी जंग के बीच जिस सलीके से भाजपा ने कठेरिया का टिकट काट एसपी सिंह बघेल को थमाया, वह कहीं न कहीं रामशंकर के खिलाफ अंदरखाने चल रही खिलाफत का डैमेज कंट्रोल था। हालांकि कठेरिया को बाद में इटावा से मैदान में उतार दिया गया। कठेरिया का आगरा से पत्ता साफ होने से पार्टी में जो भी डैमेज हुआ, उसे कंट्रोल करने की जिम्मेदारी खुद संघ और पार्टी के अन्य नेताओं ने उठाई। बड़े नेताओं की जनसभाएं और कार्यकर्ताओं के साथ समन्वय ने बघेल की राह आसान कर दी। पहले राजनीतिक दल भाजपा से अलग-अलग मुकाबिल थे, लेकिन इस बार तीन दलों की एक साथ मुकाबले को तैयार। ऐसे में अपना वोट बैंक बचाने से कहीं ज्यादा चिंता दूसरों का वोट अपने पाले में करने की रही। कहीं हद तक भाजपा के रणनीतिकार इसमें सफल भी हो गए। हाल ये हुआ कि सपा-बसपा और रालोद एकजुट होने के बाद भी भाजपा का सियासी दुर्ग भेद नहीं सके। एससी की राजधानी कहे जाने वाली ताजनगरी में बसपा इस बार भी पस्त हो गई।

सीकरी की चौसर पर पीट दिए सब मोहरे

जाट बाहुल्य फतेहपुर सीकरी में भले ही चौधरी बाबूलाल का टिकट काटा गया, लेकिन जाटों को साधने के लिए राजकुमार चाहर पर दांव लगाया गया। राज बब्बर जैसे बड़े नाम के सामने चुनाव लडऩा इतना आसान नहीं था, लेकिन कदम-कदम पर जो सियासी बिसात बिछाई, उसे भेदना न कांग्रेस के बूते का रहा और न ही गठबंधन के। बात बहुत पहले की नहीं है। इसी सीकरी के रण में बसपा ने 2009 में पहली जीत दर्ज की। तब ब्रज की छह सीटें मैनपुरी, फीरोजाबाद, एटा, मथुरा, आगरा और फतेहपुर सीकरी में पहली बार बसपा का खाता खुला था। जाहिर है इस चुनाव में भाजपा की रणनीति यहां स्थानीय माहौल के अनुरूप नहीं रही, लेकिन 2014 में मोदी लहर में यहां कमल खिला, तो उसकी पंखुडिय़ों को सहेज कर रखने के लिए भाजपा ने इस बार भी कोई कसर नहीं बाकी रही। नतीजा बड़ी जीत के रूप में सामने आया।  

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