आजमगढ़ को छोड़ अखिलेश यादव ने चुना करहल से चुनाव लड़ना, वजह एक नहीं कई हैं इसके पीछे
मैनपुरी में ही विधानसभा और लोकसभा के छह चुनाव जीत चुके हैं मुलायम सिंह। अखिलेश सहित परिवार के सदस्यों को जिला पंचायत से लोकसभा तक 13 बार मिली जीत। सवा लाख मतदाता है करहल में यादव समाज के। सैफई से नजदीक भी।
आगरा, दिलीप शर्मा। सैफई परिवार को मैनपुरी और फिरोजाबाद सहित नजदीकी जिलों की सियासत रास आती रही है। इनमें मैनपुरी और फिरोजाबाद मुलायम सिंह और उनके परिवार के अन्य सदस्यों को सबसे ज्यादा पसंद रहे हैं। मैनपुरी में अकेले मुलायम सिंह एक विधानसभा और पांच लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं। जबकि समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव सहित उनके परिवार के सदस्यों ने दाेनों जिलों में जिला पंचायत, विधानसभा और लोकसभा में 13 चुनावों में बाजी मारी है। इस बार आजमगढ़ को छोड़ करहल से चुनाव लड़ने का फैसला आखिरी वक्त पर लेने के पीछे कई वजह रहीं। इनमें से बड़ी वजह ये है कि करहल में सवा लाख मतदाता यादव समाज के हैं और सैफई से महज तीन से चार किलोमीटर की दूरी पर ही करहल विधानसभा क्षेत्र शुरू हो जाता है। सैफई की ही तीन ग्राम पंचायतें इस विधानसभा के अंतर्गत आती हैं।
मैनपुरी लोकसभा में मुलायम सिंह यादव 1996 में पहली बार लड़े थे और जीत हासिल की थी। इसके बाद उन्होंने 2004, 2007, 2014 और 2019 में भी लोकसभा चुनाव जीता। इस सीट पर उनके भतीजे धर्मेंद्र यादव 2004 में और पौत्र तेजप्रताप यादव 2014 में लोकसभा उपचुनाव जीत चुके हैं। समधिन उर्मिला यादव 1993 और 1996 में तत्कालीन घिरोर विधानसभा सीट से जीती थीं, हालांकि 2002 में पराजित हुईं थीं। दामाद अनुजेश यादव 2007 में हारे थे। जबकि भतीजी संध्या यादव 2016 में निर्विरोध जिला पंचायत बनी थी। हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव के समय संध्या यादव और उनके पति अनुजेश यादव भाजपा में चले गए थे। फिर 2021 में संध्या भाजपा की टिकट पर जिपं सदस्य का चुनाव लड़ीं तो उनको हार का सामना करना पड़ा था।
फिरोजाबाद में भी सैफई परिवार की पकड़ मजबूत
फिरोजाबाद की बात करें तो 2009 में अखिलेश लोकसभा चुनाव लड़े थे और जीत हासिल की थी। सीट छोड़ने के बाद हुए उपचुनाव में अखिलेश की पत्नी डिंपल यादव मैदान में उतरी थीं, परंतु कांग्रेस प्रत्याशी राजबब्बर ने उनको हरा दिया था। इसके बाद 2014 के लोस चुनाव में मुलायम के भतीते अक्षय यादव जीते। 2019 में अक्षय यादव को हार का सामना करना पड़ा। वहीं मुलायम सिंह के भाई शिवपाल सिंह ने प्रसपा बनाकर 2019 में फिरोजाबाद से ही चुनाव लड़ा, परंतु जीत नहीं सके। शिवपाल सिंह यादव अब सपा से गठबंधन में हैइनके अलाव जसराना विस सीट पर मुलायम सिंह के समधी रामवीर सिंह यादव 1993, 1996 और 2002 में सपा से चुनाव लड़े और जीत की हैट्रिक बनाई। 2007 के विस चुनाव में वह निर्दलीय लड़े तो हार गए। फिर 2012 में उन्हें पार्टी ने बाहर का रास्ता दिखाया तो निर्दलीय चुनाव लड़े और जमानत जब्त हो गई। इसके बाद भाजपा में चले गए। अब फिर से सपा में वापसी हो गई है।
मुलायम के समधी हरिओम यादव भी जीते चुनाव
शिकोहाबाद सीट से मुलायम सिंह के दूसरे समधी हरिओम यादव 2002 में पहली बार सपा से चुनाव लड़े और जीते। 2007 में फिर से मैदान में उतरे, लेकिन निर्दलीय प्रत्याशी अशोक यादव से हार गए थे। सिरसागंज विस सीट से मुलायम के समधी हरिओम यादव 2012 और 2017 में सपा की टिकट पर विधायक बने। 2018 में बागी हो गए और लोस चुनाव में शिवपाल सिंह का साथ दिया, जिसके बाद उन्हें पार्टी से बर्खास्त कर दिया। अब भाजपा में है और सिरसागंज से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ेंगे। शिकोहाबाद सीट से 2017 का चुनाव मुलायम सिंह के समधी रामप्रकाश नेहरू व विधायक हरिओम यादव के भाई निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़े थे, परंतु जीत नहीं सके थे। एटा और इटावा में भी जीत चुका है सैफई परिवार वर्ष 1993 में सपा के पहले विधानसभा चुनाव में मुलायम सिंह ने मैनपुरी जिले की तत्कालीन शिकोहाबाद सीट, एटा की निधौलीकलां और इटावा की जसवंतनगर सीट से चुनाव लड़ा था। तीनों चुनावों में जीत हासिल की थी। तब उन्होंने शिकोहाबाद और निधौलीकलां सीटें छोड़ दी थीं। 1996 के विस चुनाव जसवंतनगर सीट उन्होंने अपने भाई शिवपाल सिंह यादव को सौंप दी। तबसे हर विस चुनाव में शिवपाल सिंह यादव ने जीत हासिल की है।