शहादत के जख्मों को मौला पर भरोसा, जल्द देगा सबको राहत
- हजरत इमाम हुसैन की शहादत पर मजार-ए-सालिस पर शिया समुदाय ने किया मातम - दो माह आठ दिन से चल रही थीं मजलिस
आगरा: सत्य की राह में लाख मुश्किलों का सामना करेंगे। शियाओं के ग्यारहवें इमाम हुसैन की शहादत की याद में बदन से बहता लहू इस बात का गवाह है। इसके बावजूद मानवता की तरक्की के लिए बलिदान से भी परहेज नहीं। इमाम हुसैन की शहादत की याद के जख्मों का मौला भरेगा। ये बातें न्यू आगरा स्थित मजार-ए-सालिस में प्रोफेसर मौलाना रऊज ने कहीं।
शनिवार को हुसैन की शहादत के अंतिम दिन मजार-ए-सालिस में फर्स-ए-अजा पर मजलिस पढ़ी गई। मौलाना ने कहा कि जिंदगी में खुदा से फरामोशी नहीं करनी चाहिए। मुसलमानों को हमेशा उनकी शहादत में वक्त गुजारना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमारे इमाम ने हमेशा हक का साथ दिया है और सत्य का दामन थामे रखा।
इसके बाद नौजवानों ने हुसैन की याद में जंजीरों का मातम किया। 15 वर्ष से मातम करने वाले बिलाल असगर ने बताया कि मेरे पिता मकसूद हसन की 55 वर्षो से बनी अंजुमन है। हर वर्ष जंजीरों का मातम करते हैं, लेकिन गुलाब जल से ही जख्म भर जाते हैं। उन्होंने कहा कि बचपन में मां ही मातम के लिए प्रेरित करती थीं। 30 वर्षों से मातम करने वाले अली अब्बास ने बताया कि मौला की याद में हुए जख्म केवल पांच दिन में भर जाते हैं। मौलाना बाकर जैदी ने हुसैन की बहादुरी पर प्रकाश डाला। मौलाना कमर हसनैन ने कर्बाल की जंग के बारे में बताया। मौलाना इरफान हैदर छौलसी ने मजलिस पढ़ी। महिलाओं की जुबां पर या हुसैन..
हुसैन की शहादत की याद में हर दिन मजलिस हुईं। शनिवार को आठवीं रविअव्वल पर उनकी शहादत का अंतिम दिन था। मुरादाबाद, धौलपुर, ग्वालियर आदि शहरों से महिला जायरीन मजार पर पहुंचीं। शाम को मातम में उनकी जुबान से केवल या हुसैन.. गूंजता रहा।