गुरु बिन जीवन अधूरा, गुरु कृपा से होगा सपना पूरा
आगरा: भविष्य के उजाले की चाबी गुरु के हाथ में होती है। गुरु चाहे तो शिष्य के जीवन को तरक्की की राह पर ले जा सकता है।
आगरा: भविष्य के उजाले की चाबी गुरु के हाथ में होती है। गुरु चाहे तो शिष्य के जीवन को तरक्की की रोशनी से रोशन कर दे, न चाहे तो अंधेरा भर दे। देश के महाकवियों ने गुरु के रिश्ते को सत्य निष्ठा से निभाया है। ये बातें छत्रपति साहूजी महाराज यूनिवर्सिटी कानपुर के पूर्व कुलपति डॉ. बीके सिंह ने कहीं।
गुरुवार को दैनिक जागरण की जागरण संस्कारशाला के तहत शिक्षक का महत्व विषय पर कार्यक्रम आयोजित हुआ। इसमें डॉ. बीके सिंह ने कहा कि छात्रों में संस्कारों की कमी है और बिना संस्कार भविष्य संकट में है। उन्होंने कहा कि गुरु का सम्मान न करने पर भविष्य व वर्तमान अधूरा रह जाता है। क्योंकि हमारे देश के महाकवि सूरदास ने अपने गुरु बल्लभाचार्य, तुलसीदास ने नरहरिदास और कबीरदास ने अपने गुरु रामानंद के हर वचन को पूरा किया। यहां तक कि शिवाजी के गुरु रामदास ने उनसे कहा कि मुझे शेरनी का दूध लाकर दो, तो शिवाजी ने शेरनी का दूध लाकर दिया। उन्होंने कहा यही हाल गुरु का है, जो गुरु अयोग्य होता है उसके शिष्य भी अयोग्य होते हैं।
उन्होंने कहा, दैनिक जागरण समय- समय पर छात्र व गुरुओं को रिश्ते को गहरा करने के लिए इस प्रकार के कार्यक्रम आयोजित करता है। बहुत सराहनीय कदम है। गुरु की महत्ता को भूलने वाले छात्रों को गुरु का दर्जा याद आता है। उन्होंने कहा सबसे पहला गुरु माता होती है। अगर, माता निरक्षर है तो समाज भी निरक्षर होगा। शिक्षक समाज का वह अंग है, जो देश के भविष्य की नीव रखता है। उन्होंने छात्रों के संस्कारवान बनने के विषय पर कहा कि गरीब, अमीर, अछूत, छूत और निचले तबके को साथ लेकर चलना अच्छे संस्कारों का परिचय देता है। स्कूल की प्रधानाचार्य सुमन लता यादव ने कहा कि संस्कार ही बच्चों को अच्छे भविष्य की ओर ले जाते हैं।
हमको शिक्षकों का सम्मान करना चाहिए। शिक्षक हमारी गलती पर सख्ती करते हैं। उसका हमें बुरा नहीं मानना चाहिए।
शिवानी रावत, कक्षा नौ इस वक्त आधुनिकता की दौड़ में शिक्षकों का महत्व भूलते जा रहे हैं। जबकि घर से लेकर स्कूल तक हर राह में शिक्षक चलना सिखाता है।
कामिनी यादव, कक्षा 8 शिक्षक हमें सत्यता के रास्ते में चलना सिखाता है। थोड़ा सा कठिन होता है, लेकिन उसका फल बहुत मीठा होता है।
गौरव रावत, कक्षा दस दैनिक जागरण के इस कार्यक्रम ने हमें अपना फर्ज याद दिला दिया है। अब मैं किसी शिक्षक को अनसुना नहीं करूंगी।
खुशबू, कक्षा नौ