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भजन सम्राट के लिए छोटा पड़ गया था सूरसदन, कद्रदानों को लगा सदमा

-डेढ़ दशक पूर्व हुई थी शहर में पहली भजन संध्या, एंट्री पास के लिए मची थी मारामारी -वर्ष 2006 से मुरलीधर मनुहार द्वारा नव संवतसर पर आयोजित भजन संध्या में आ रहे थे

By JagranEdited By: Published: Wed, 07 Nov 2018 07:00 AM (IST)Updated: Wed, 07 Nov 2018 07:00 AM (IST)
भजन सम्राट के लिए छोटा पड़ गया था सूरसदन, कद्रदानों को लगा सदमा
भजन सम्राट के लिए छोटा पड़ गया था सूरसदन, कद्रदानों को लगा सदमा

आगरा: भजन सम्राट विनोद अग्रवाल मंगलवार को नश्वर शरीर को छोड़ श्रीधाम चले गए। ताजनगरी से उनका नाता ऐसा जुड़ा कि वर्ष दर वर्ष यह और प्रगाढ़ होता चला गया। आगरा में उनकी पहली भजन संध्या डेढ़ दशक पूर्व सूरसदन में हुई थी। उनके दीवानों के आगे सूरसदन छोटा पड़ गया था और आयोजकों को श्रोताओं से माफी मांगनी पड़ी थी।

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भजन सम्राट विनोद अग्रवाल की ताजनगरी में पहली भजन संध्या डेढ़ दशक पूर्व सूरसदन ऑडिटोरियम में हुई थी। केसी श्रीवास्तव बताते हैं कि भोले बाबा डेरी द्वारा भजन संध्या कराई गई थी। मैं आयोजन सचिव था। हर व्यक्ति भजन संध्या के एंट्री पास चाहता था। उनके आने से पहले ही सूरसदन पूरा भर चुका था। सीढि़यों पर लोग बैठे हुए थे। सभी गेट बंद करने पड़े थे और बाहर खडे़ लोग प्रवेश के लिए दबाव बना रहे थे। पुलिस को व्यवस्था संभालनी पड़ी थी। आयोजकों ने जनता से माफी मांगी थी। तब यह तय किया गया था कि विनोद अग्रवाल की भजन संध्या किसी ऑडिटोरियम में न कराकर खुले मैदान में कराई जाएगी। वो सरल स्वभाव के और बहुत ही मिलनसार थे। उनका जाना समाज की अपूर्णीय क्षति है।

इसके बाद तो जैसे आगरा से भजन सम्राट का नाता ही जुड़ गया। संस्था मुरलीधर मनुहार द्वारा ¨हदू नववर्ष के शुभारंभ पर उनकी भजन संध्या वर्ष 2006 में ताजनगरी फेस वन में कराई गई। वर्ष 2007 व 2008 में तारघर मैदान में भजन संध्या हुई। इसके बाद जीआइसी मैदान उनकी प्रस्तुति का साक्षी बनता रहा। इस साल 20 मार्च को जीआइसी मैदान में हुई भजन संध्या में तो अनुपम प्रस्तुति देखने को मिली थी। कृष्ण भक्त विनोद अग्रवाल और राधा भक्त राहुल चौधरी के बीच हुई जुगलबंदी का साक्षी शहर बना था। संस्था के अध्यक्ष पुष्पेंद्र त्रिवेदी बताते हैं कि वर्ष 2019 में छह अप्रैल को भजन संध्या तय हो गई थी। उनके यूं चले जाने की उम्मीद नहीं थी। वो जब भजन गाते थे तो भक्ति-विभोर हुए श्रद्धालुओं की आंखों से अश्रुधारा बहने लगती थी।


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