बारादरी को लांघ मैदान तक पहुंची रामलीला
आगरा: आगरा की रामलीला शुरू होते ही शहर व प्रदेश ही नहीं उत्तर भारत तक के लोग खुद को यहां आने से नहीं रोक पाते।
आगरा: आगरा की रामलीला शुरू होते ही शहर व प्रदेश ही नहीं उत्तर भारत तक के लोग खुद को यहां आने से नहीं रोक पाते। सवा सौ साल पूर्व शुरू हुआ आयोजन एक बड़ा इतिहास समेटे हुए है। इस दौरान निकलने वाली रामबरात और जनकपुरी भव्यता के लिए दूर-दूर तक प्रसिद्ध है। एक माह तक चलने वाले रामलीला महोत्सव की शुरुआत रविवार को भगवान गणेश व मुकुट पूजन से होगी।
रामलीला महोत्सव की शुरुआत लाला कोकामल ने करीब 130 साल पूर्व तीन दिवसीय महोत्सव के रूप में रावतपाड़ा स्थित लाला चन्नौमल की बारादरी में कराई थी। तब से लेकर आज तक रामलीला के मंचन के दौरान शहर में सामाजिक समरसता और सौहार्द्र भी देखने को मिलता है। हर वर्ग इससे जुड़ा है। महोत्सव में दूसरे दिन मन:कामेश्वर नाथ के मुकुट की सवारी माहौर-कोरी समाज निकालता है।
रामलीला कमेटी के महामंत्री श्रीभगवान अग्रवाल बताते हैं कि रामलीला की शुरुआत में भगवान राम के वनवास तक की लीलाएं बारादरी और उसके बाद दशहरा तक की लीलाएं रामलीला मैदान में होती थीं। बाद में बारादरी में जगह कम पड़ने पर रामलीला मैदान में ही सभी लीलाएं होने लगीं। हाथियों पर निकलते थे स्वरूप
रामलीला में पूर्व में भगवान राम और उनके अनुजों के स्वरूपों को हाथियों पर निकाला जाता था। पांच-छह साल पूर्व रोक लगी तो फाइबर का हाथी तैयार कराया गया। दिक्कत होने पर स्वरूपों को रथों में निकाला जाने लगा। चांदी का रथ रहता है आकर्षण
रामबरात में निकलने वाला चांदी से बना रथ आकर्षण का केंद्र होता है। इसमें भगवान विष्णु और लक्ष्मी के स्वरूप विराजमान होते हैं। चार दशक पूर्व रामलीला कमेटी ने इसे तैयार कराया था। इस दिन होती है शुरुआत
रामलीला की शुरुआत भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को होती है। वहीं रामबरात अश्वनी मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को निकलती है।