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जीत तब होती है, जब ठान लिया जाता है

बच्चे दे रहे कोरोना से लड़ने की सीख बड़ों का बढ़ा रहे हौसला

By JagranEdited By: Published: Fri, 23 Oct 2020 08:15 AM (IST)Updated: Fri, 23 Oct 2020 08:15 AM (IST)
जीत तब होती है, जब ठान लिया जाता है
जीत तब होती है, जब ठान लिया जाता है

यह ताज जो तूने पहना है, जिससे है तुझे यह नाम मिला

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करके बीमार लेता है जान, क्या यही है तुझको काम मिला।।

आफत में है डाला दुनिया को, लोग नाम से तेरे डर रहे हैं,

तुझसे संक्रमित होने वाले अनगिनत लोग मर रहे हैं।

आसान नहीं है इलाज तेरा, तो क्या इंसान हार जाएगा,

तुझे जड़ से उखाड़ फेंकेगा, मानवता को संवारा जाएगा।। वो मार्च की बात थी, जब मैंने पहली बार कोविड-19 वायरस के बारे में न्यूज चैनल, अखबार व समाचार पत्रों में पढ़ा था। तब तक कोरोना वायरस चीन में भयावह रूप ले चुका था। चीन में हजारों लोग काल के गाल में समा चुके थे। धीरे-धीरे यह बीमारी दूसरे देशों में भी अपने पांव जमा रही थी।

उन्हीं दिनों हमारी वार्षिक परीक्षाएं समाप्त हुई थीं। इसलिए वे दिन मजे से बीत रहे थे। तभी 21 मार्च को हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रात्रि आठ बजे अपने संबोधन में यह बताया कि यह महामारी हमारे देश में धीरे-धीरे अपने पैर पसार रही है। उस दिन उन्होंने एक दिन के जनता क‌र्फ्यू का आह्वान किया।

उस दिन हमें बहुत प्रसन्नता हुई क्योंकि हमें पूरे दिन अपने परिवार के साथ व्यतीत करने का अवसर मिला। दो दिन बाद ही संपूर्ण लाकडाउन की घोषणा की गई। प्रधानमंत्री द्वारा इस घोषणा से मैं व्याकुल हो उठी। मैं घबरा गई क्योंकि इससे पहले हमने लाकडाउन जैसा कोई शब्द नहीं सुना था। तब मेरे दादाजी ने बताया कि यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें हमारा पूरा देश संपूर्ण रूप से बंद रहेगा। कोई भी स्कूल, कालेज, सिनेमा हाल, मार्केट नहीं खुलेगा। अब कुछ दिनों तक हम सभी परिजन 24 घंटे साथ रहने वाले थे।

पहले तो मैं बहुत प्रसन्न थी कि कुछ और दिनों के लिए स्कूल से छुट्टी मिल गई। लेकिन फिर मेरी मम्मी ने स्थिति की गंभीरता बता मुझे जागरूक किया कि यह एक भयानक महामारी है। एक से दूसरे व्यक्ति में तेजी से फैलती है। इसलिए अब हमें कुछ दिनों के लिए सभी काम स्वयं करने होंगे। पहले यह सब करने में बहुत आनंद आया। पर धीरे-धीरे यह उबाऊ हो गया। समाचारों में देखकर व अखबारों में पढ़कर अब स्थिति की भयावहता समझ आने लगी थी कि यह साधारण बीमारी नहीं है। वास्तविकता समझने के बाद मेरा हृदय कांप उठा। मेरे पिताजी ने मुझे धैर्य बंधाया और समझाया कि इस महामारी से हमें दो ही नियम बचा सकते हैं, दो गज की दूरी और स्वच्छता।

मेरे मन में अनेक आशंकाएं उत्पन्न होने लगी क्योंकि लाकडाउन के खुलने की कोई समय सीमा तय नहीं। अब कब स्कूल खुलेगा और कब मैं अपनी पढ़ाई शुरू करूंगी। तब हमारे स्कूल प्रबंधन ने आनलाइन कक्षाएं शुरू कराईं। लाकडाउन में ढील मिलने पर हमने पुस्तकें लीं। उस दिन में अपने शिक्षकों व मित्रों से मिलकर बहुत खुश हुई क्योंकि दोस्तों से आनलाइन ही सही, मुलाकात तो हूई। हमें कुछ लोगों की मदद करने का भी मौका मिला। जैसे हमारी कामवाली अम्मा, चौकीदार के घर राशन व सामान पहुंचाया।

फिर व्यस्तता बढ़ी और शिक्षण कार्य शुरू हो गया था। पढ़ाई भी पटरी पर आ गई। आनलाइन शिक्षण से पढ़ाई तो प्रभावित होने से बच गई। अब ईश्वर से प्रार्थना है कि इस महामारी को देश व विश्व से जल्द से जल्द दूर करें, ताकि सब मिल-जुलकर एक साथ रह सकें।

हार हो जाती है जब मान लिया जाता है,

जीत तब होती है, जब ठान लिया जाता है। अनुष्का अग्रवाल, कक्षा- 10, जीडी गोयनका पब्लिक स्कूल।


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