तीन अक्षर की महामारी, चुनौतियां भारी
कोरोना को हराने में बच्चों की भी रही है अहम भूमिका। बड़ों को करते रहे हैं जागरूक
आगरा, जागरण संवाददाता। कोरोना, तीन अक्षर के इस चीनी वायरस ने हम सभी के जीवन में समस्या पैदा कर दी है। स्थिति यह है कि हर कदम पर इसके संक्रमण का डर और खौफ रहता है और दिमाग में यही जिद्दोजहद रहती है कि कैसे खुद को और परिवार को इससे सुरक्षित रखा जा सके।
इस तीन अक्षर की महामारी ने मानव जाति के सम्मुख तीन बड़ी चुनौतियां खड़ी कर दी हैं, जिनमें पहले रोग से बचाव, दूसरी मनोरोग से बचाव व तीसरी मनोयोग का बहाव है।
कोरोना की गति में बेड़ियां डालने के लिए हमें अपने पैरों में बेड़ियां डालनी पड़ीं और सरकार द्वारा लाकडाउन का निर्णय लिया गया। इससे जीवन की रफ्तार ऐसी थमी, मानो चमकते हुए सूरज को बादलों ने अपनी गोद में छिपा लिया हो। किसी के भी पास लाकडाउन रोग का निदान तो नहीं था, लेकिन रोग से बचाव की ²ष्टि से इसे एक अत्यंत सराहनीय ठोस कदम माना गया। कहते हैं स्वस्थ मन ही स्वस्थ तन और स्वस्थ समाज का निर्माण करता है। किसी सकारात्मक सोच के साथ लाकडाउन को सीढ़ी बनाकर कोरोना से बचने का प्रयास किया गया।
लाकडाउन एक असाधारण, असहज और अप्रत्याशित स्थिति थी। प्रत्येक व्यक्ति भयाक्रांत था कि कहीं मैं या मेरा परिवार अथवा अन्य प्रियजन इस महामारी की चपेट में न आ जाएं। नौकरी, काम धंधे की चिता ने भी दिल का चैन व मन का सुकून छीन लिया था। हमारा परिवार भी जान है तो जहान है की उक्ति को ध्यान में रखते हुए लाकडाउन के नियमों का पालन करता रहा।
घर का जो भी सदस्य किसी आवश्यक कार्य से बाहर जाता, तो आकर सबसे पहले वह साबुन से अपने हाथों को अच्छी तरह धोता, फिर सभी कपड़ों को सैनिटाइज करता है। घर से बाहर निकलते समय मास्क अवश्य पहनता और किसी से भी बात करते समय दो गज की दूरी का अनिवार्य रूप से पालन किया जाता। जहां चाह है, वहां राह है। इससे प्रेरित होकर मैंने इन विषम परिस्थितियों में भी अपने परिवार को ही नहीं, बल्कि दूसरों को भी इस आपदा से निपटने के लिए प्रेरित किया।
लोगों को जागरूक करने के लिए मैंने अपने मित्रों की एक टोली बनाई, जिसने सोशल नेटवर्क के माध्यम से समाज को लाकडाउन के नियमों का पालन करने के लिए प्रेरित किया। तालाबंदी ने केवल घरों पर ताले लगाए, मनुष्य की सोच पर नहीं। अत: पौधारोपण करना, उनकी देखभाल करना, गरीबों की मदद करना, योगाभ्यास आदि के माध्यम से स्वस्थ रहने और इन सभी कार्यों को दिनचर्या का हिस्सा बनाने के लिए लोगों को भी प्रेरित किया। कहने को यह छोटे-छोटे प्रयास थे, लेकिन इनके माध्यम से हमने खुद के साथ परिवार व अपने प्रियजनों को महामारी से बचाने का प्रयास किया। लेकिन लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है, इसलिए अब सावधानी और जरूरी है, लिहाजा इन प्रयासों को रोकने की जगह आगे भी इनका पालन करना है क्योंकि अभी वैक्सीन आना बाकी है। हमें उम्मीद है कि यह मुश्किल समय भी जल्द गुजर जाएगा और पीछे छोड़ जाएगा खट्ठे-मीठे अनुभव व रोचक यादें।
लिहाजा वर्तमान की विषम परिस्थितियों को स्वीकार करते हुए अपने जीवन को गतिमान व जीवंत बनाना होगा। स्वस्थ समाज की नींव रखनी होगी, ताकि मानव स्वस्थ और स्वच्छ पर्यावरण में उन्मुक्त विचरण कर सके। जीवन को नवीन गति व अवसर प्रदान कर सके। कांची गुप्ता, कक्षा 10, गायत्री पब्लिक स्कूल।