जैव विविधता के लिए गाजरघास बड़ा खतरा
आगरा: जैव विविधता के लिए बड़ा खतरा बन चुकी गाजरघास को लेकर कृषि वैज्ञानिक चिंतित हैं।
आगरा: जैव विविधता के लिए बड़ा खतरा बन चुकी गाजरघास को लेकर कृषि वैज्ञानिक चिंतित हैं। किसानों को इससे निजात दिलाने के लिए जागरूक किया जा रहा है। इसके लिए 22 अगस्त तक गाजरघास जागरूक सप्ताह का आयोजन होगा।
कृषि विज्ञान केंद्र के कार्यक्रम समन्वयक डॉ. आरएस चौहान ने बताया कि गाजरघास को पार्थेनियम, सफेद टोपी, चटक चांदनी आदि नामों से भी जाना जाता है ये कृषि उपयोगी भूमि के लिए बड़ा खतरा है। ये विदेशी खरपतवार है, जो देशभर में 35 मिलियन हेक्टेयर में फैल चुकी है। ये मुख्यता रेलवे लाइन के किनारे, पार्को, बगीचों और अनुपयोगी स्थानों पर होती है। इसका प्रकोप पिछले कुछ समय से खाद्यान्न फसलों, सब्जियों और उद्यानों में तेजी से बढ़ रहा है। इससे हमारी कृषि उपयोगी भूमि के लिए संकट खड़ा हो गया है। गाजरघास का पौधा तीन से चार महीने में अपना जीवन चक्र पूरा कर लेता है। ऐसे कर सकते हैं बचाव
- अक्टूबर-नवंबर में चकोड़ा के बीज एकत्रित कर उन्हें फरवरी, मार्च में छिड़क देना चाहिए। यह वनस्पति, गाजरघास की वृद्धि को रोकती है।
- जिन क्षेत्रों में बारिश अधिक होती है उनमें ढेंचा, ज्वार, बाजरा, मक्का आदि फसलें करनी चाहिए।
- घर के आसपास गेंदा के पौधे लगाकर इसके फैलाव को रोका जा सकता है।
- बरसात के दिनों में गाजरघास को फूल आने से पहले जड़ से उखाड़कर कम्पोस्ट या वर्मी कम्पोस्ट बनाना चाहिए। ये हैं इसके दुष्प्रभाव
विशेषज्ञों के अनुसार गाजरघास से प्रमुख रूप से त्वचा संबंधी बीमारियां होती है। इससे एक्जिमा, एलर्जी, बुखार, दमा आदि बीमारियां फैलती है। पशुओं के लिए भी जहरीली होती है। इसके कारण उपयोगी वनस्पतियां खत्म होने लगती हैं।